घर में पड़ा था ढेर कबाड़, इससे पहले कि घरवाले कबाड़ी को देते बेटे ने बना दी गजब मशीन
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यह हैं बाबूलाल। इनका यह आविष्कार कुछ साल पहले मीडिया की सुर्खियों में आया था। ये गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। खेती-किसानी के लिए आधुनिक मशीनें नहीं खरीद सकते थे। घर में ढेर-सारा कबाड़ पड़ा था। इससे पहले कि घरवाले उसे किसी कबाड़ी को बेचते, उन्होंने यह मशीन बना दी। इस मशीन से खेतों की बुआई से लेकर दवा के छिड़काव तक हो जाता है। आगे पढ़ें-लॉकडाउन में काम-धंधा चौपट हो गया, तो जुगाड़ से रोजगार के ऐसे तरीके क्यों नहीं आजमाते
पुणे. महाराष्ट्र. पुणे के रहने वाले युसूफ फारुख शेख गाड़ियों के पंचर सुधारने का काम करते हैं। पहले वो एक गुमटी में दुकान चलाते थे। इससे उतनी कमाई नहीं थी। फिर उन्होंने एक आइडिया लगाया और अपने पुराने स्कूटर में ही एयर टैंक और कम्प्रेसर लगाया। अब वे मोबाइल पंचरवाला बन गए हैं। किसी के बुलाने या रास्ते में किसी की गाड़ी का पंचर सुधारकर वे अब इतना कमाने लगे हैं कि परिवार का खर्च अच्छे से चल सके। 39 वर्षीय फारुख ने देखा कि रास्ते में पंचर होने वाली गाड़ियों के लोगों को परेशान होना पड़ता है। वे पंचर सुधरवाने दोगुने तक पैसे देने को तैयार रहते हैं। तभी फारुख ने स्कूटर को मॉडिफाई करने का सोचा। आगे पढ़ें इसी की कहानी...
फारुख को अपने स्कूटर का मॉडिफाई करने में करीब 12000 रुपए का खर्चा आया। अब युसूफ पंचर सुधारने के 50 रुपए तक लेते हैं। लोग यह पैसा बिना मुंह बिचकाए देते हैं, क्योंकि उनको ऑन द स्पॉट सुविधा मिल जाती है। आगे पढ़ें इसी की कहानी...
इस यूनिक आइडिया के बाद फारख की कमाई दोगुना हो गई है। पहले वे बमुश्किल 4-5 हजार रुपए कमा पाते थे, लेकिन अब 8-10 हजार रुपए महीना कमा लेते हैं। इससे उनके परिवार का खर्च अच्छे से चल जाता है। आगे पढ़ें-पंचर बनाने वाले के बेटे ने जुगाड़ से बना दी बैट्री से चलने वाली बाइक
मिर्जापुर, यूपी. इस युवक के पिता पंचर बनाने की दुकान चलाते हैं। यह पिता के काम में हाथ बंटाता है और कॉलेज में पढ़ता भी है। एक दिन इसके दिमाग में आइडिया आया। इसने दुकान में पड़े कबाड़ उठाए और महीनेभर की मेहनत के बाद यह जुगाड़ की बाइक तैयार कर दी। एक बार बैट्री चार्ज करने पर यह 50 किमी चलती है। यह हैं मिर्जापुर के रहने वाले नीरज मौर्य। इनकी जुगाड़ वाली बाइक में रिवर्स गीयर भी लगता है। इस बाइक को बनाने में करीब 30 हजार रुपए का खर्च आया। इसकी स्पीड सामान्य बाइक जैसी ही है। आगे पढ़ें-बिजली ने रुलाया, तब जल उठी दिमाग की बत्ती, देखिए बाइक से कैसे किए गजब के जुगाड़
बाड़मेर/छतरपुर। कोल्हू में बैल की जगह 'जुती' बाइक की पहली तस्वीर राजस्थान के बाड़मेर की है। जबकि दूसरी तस्वीर कुछ समय पहले मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में सामने आई थी। पहले जानते हैं बाड़मेर की खबर। आमतौर पर फसल जैसे तिली, सरसों आदि से तेल निकालने के लिए मशीनों का इस्तेमाल होता है।लेकिन यहां एक युवक ने बाइक को कोल्हू का बैल बना दिया। उदाराम घाणी(कोल्हू) में बैल जोतने के बजाय बाइक के जरिए तिली का तेल निकाल रहे हैं। उदाराम कोल्हू का काम करते हैं। वे भीलवाड़ा में रहते हैं। लेकिन इस समय कोल्हू के काम से बाड़मेर में हैं। भीलवाड़ा से बाड़मेर तक बैल लाने में दिक्कत थी। इसलिए जिस बाइक से वे बाड़मेर आए, उसी को कोल्हू में लगा दिया। आगे पढ़िए इसी खबर के बारे में...
उदाराम बताते हैं कि कोल्हू में बैल जोतने पर उसके लिए चारा-पानी आदि का इंतजाम करना पड़ता है। यह महंगा पड़ता था। बाइक से यह काम सस्ता पड़ रहा है। उनके कोल्हू की चर्चा आसपास के कई गांवों तक फैल गई। इससे लोग तेल निकलवाने के बहाने इस कोल्हू को देखने आ रहे हैं। उदाराम ने बाइक की स्पीड कार्बोरेट के जरिये फिक्स कर दी है। इससे बाइक पर बैठकर गीयर बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। आगे पढ़ें-जुगाड़ से बनीं गजब मशीनें...
बालोद, छत्तीसगढ़. मूंगफली को फसल से अलग करना पेंचीदा काम होता है। इसके लिए महंगी-महंगी मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन गरीब किसान हाथों की मेहनत यह काम करते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की बालोद स्थित बटालियन के जवानों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जिनसे यह काम आसान कर दिया। यह मामला पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में आया था। इसमें साइकिल को उल्टा करके जब पिछले पहिये में मूंगफली की फसल फसाई गई, तो वो अलग-अलग हो गई। इससे समय की बचत हुई और महंगी मशीन खरीदने का खर्चा भी बचा। साइकिलिंग के जरिये इन जवानों ने 20-30 किलो मूंगफली साफ करके दिखाया था।
यह है राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के अमरगढ़ में रहने वाले किसानों की कहानी। यहां के गांवों में बिजली की बड़ी दिक्कत थी। इसलिए किसान डीजल के इंजन पर निर्भर थे। लेकिन डीजल इतना महंगा पड़ता था कि उन्हें टेंशन होने लगती थी। बस फिर क्या था...कुछ किसानों ने दिमाग लगाया और रसोई गैस से इंजन चलाने का तरीका खोज निकाला। किसानों ने बताया कि डीजल से एक घंटे इंजन चलाने पर 150 रुपए से ज्यादा का खर्चा आता था। लेकिन गैस सिलेंडर से चलाने पर एक चौथाई खर्चा।