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उत्तराखंड तबाही: सुरंग से जिंदा लौटे मजदूर की आपबीती जान फट जाएगा कलेजा, नाखून नीले और शरीर पड़ गया सुन्न
देहरादून. उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को आए सैलाब ने कई परिवारों को तबाह कर दिया। किसी के पिता की तो किसी के बेटे की इस प्रलय में मौत हो गई। ग्लेशियल फटने के चार दिन होने के बाद भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। भारतीय सेना, ITBP,NDRF और के SDRF के 600 से ज्यादा जवान तबाही के बाद दलदल में फंसे लोगों को तलाशने की कोशिश में जुटे हुए हैं। मीडिया सूत्रों के मुताबिक अभी तक 32 निकाले जा चुके हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस सैलाब में 8 घंटे तक टनल में एक रॉड और लोहे के सरिया को पकड़े लटके रहे। उन्होंने इस भयानक हादसे के बाद भी अपने हौसले को बनाए रखा। उन्होंने कैसे अपनी सांसों को इस मौत की सुरंग में बचाए रखा वह तारिफे काबिल है। जिनके बारे में जानकर हर किसी के रोंटगे खड़े हो जाएंगे। आइए जानते हैं ऐसे युवकों के बारे में जो मौत के मुंह से बचकर आए...
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रविवार के दिन रेस्क्यू टीम ने तपोवन की टनल से करीब 12 लोगों को जिंदा निकला था, उन्हीं में से एक खुद किस्मत शख्स हैं 27 साल के राकेश भट्ट जो मौत को मात देकर बाहर आए हैं। राकेश ने मीडिया को अपनी आपबीती बताई तो सुनने वालों का भी कलेजा फट गया। उन्होंने कहा कि वह तबाही से पहले सुरंग में काम कर रहे थे। तभी अचानक ऊपर से मिट्टी और बोल्डर गिरने लगे, देखते ही देखते हमारे सामने ढेर लग गया। कुछ समझ पाते इससे पहले ही टनल मिट्टी पानी और कीचड़ से भर गई। हम चीखते रहे, लेकिन किसी की आवास सुनाई दी। जब राकेश के जोशीमठ में रहने लाले परिवार को इस भयानक हादसे के बारें पता चला तो घर में मातम की चीखे सुनाई देने लगीं। बूढ़ी मां अपने बेटे का नाम लेकर इधर-उधर भाग रही थी, कहीं तो उसे उसका लाल दिख जाए।
राकेश ने बताया कि इस प्रलय के बाद हमको लगा कि अब हम जिंदा नहीं बचेंगे, लेकिन फिर हमने किसी तरह अपने आप को हिम्मत दी। मेरे साथ और भी लोग सुरंग में फंसे हुए हुए थे। सबके आंखों में आसूं और खौफ साफ दिख रहा था। फिर किसी तरह हम लोगों ने टलन में एक रॉड पकड़ ली उसपर झूलकर लटक गए। लेकिन खतरा बढ़ता जा रहा था, नीचे पानी और कीचड़ थी, अगर गलती से गिरते तो मलबे में दब जाते। जिंदगी की सांसों से वास्ता तब तक कायम रखा जब तक कि रेस्क्यू की टीम उनके पास पहुंच न गई।
इस भयानक मंजर की आपबीती बताते हुए राकेश रो पड़े, कहने लगे पता नहीं भगवान का कैसा चमत्कार है की वह जिंदा बच गए। उन्होंने बताया कि लोहे की रॉड से लटके-लटके हाथ के पंजे का खून जमने लगा, नाखून नीले पड़ गए और शरीर के नीचे का हिस्सा सुन्न पड़ गया। ऐसा लग रहा था कि अब शरीर में ब्लड सर्कुलेशन होना बंद हो गया है। लेकिन फिर भी जिंदा रहने की उम्मीद थी, जिसे बचाए रखा। सोचते अगर रॉड छोड़ते हैं तो मर जाएंगे, इससे अच्छा है उम्मीद को बनाए रखो। कहीं से कुछ चमत्कार हो जाए। फिर सेना के जवानों ने अपनी जानपर खेलकर हमें आठ घंटे बाद जिंदा बाहर निकाला।
यह तस्वीर यूपी के लखीमपुर खीरी गांव की है, जहां के एक साथ 33 लोग इस तबाही में लापता हुए हैं। प्रशासन उनको तलाशने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। परिवार के लोग बिलख रहे हैं, इनमें से कई के घर तो चार दिन होने के बाद भी चल्हा तक नहीं चला है।
इस तस्वीर को देख आप समझ सकते हैं कि किस तरह से भारतीय सेना और आईबीटी के जवान रात के अंधेरे में भी लोगों की जिंदगी बचाने के लिए जुटे हुए हैं। जवान मंगलवार रातभर रेस्क्यू वर्कर्स टनल को साफ करने में जुटे रहे।