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करोड़ों में होती है यह खतरनाक बीमारी..एक बेटा खो चुकी दूसरे को नहीं खोना चाहती मां..पूरा शहर कर रहा दुआ

बाड़मेर (राजस्थान). अक्सर हम लोगों की जबान से सुनते हैं कि ''स्वास्थ्य से बड़ी कोई दौलत नहीं''। यह बिल्कुल सही है, क्योंकि कब किसी को कौन सी बीमारी घेर ले यह भरोसा नहीं। एक ऐसी ही मार्मिक कहानी राजस्थान के बाड़मेर से सामने आई है। जहां एक नाबालिग बच्चे को एक ऐसी खतरनाक बीमारी ने जकड़ रखा है, जो पूरे देशभर में एक दो लोगों को होती है। जिसके इलाज में हर साल  2 करोड़ 75 लाख का खर्चा आता है। इस मासूम बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए शहर के लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए पीएम मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से गुहार लगाई है।

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Asianet News Hindi
Published : Feb 20 2021, 02:19 PM IST
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यह दुखद कहानी है, बाड़मेर जिले के रहने वाले, बेटे ललित सोनी की, जिसको 'पोम्पे' नाम की बीमारी है। वह पिछले एक साल से पलंग पर लेटा हुआ है। माता-पिता ने सब कुछ बेंचकर बेटे के इलाज में खर्च कर दिया। लेकिन फिर भी यह रोग ठीक नहीं हुआ। क्योंकि उसके इलाज में कोरोड़ों रुपए खर्च जो आता है। इतना ही नहीं एक साल पहले  ललित के बड़े भाई की भी इस दुर्लभ बीमारी से जूझते हुए मौत हो गई। अब  मां-बाप  अपने इकलौते सहारे को नहीं खोना चाहते हैं।

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लल‍ित के प‍िता चंपालाल ने बताया क‍ि वह अपने बेटे को नहीं खोना चाहते हैं। लेकिन दिन बा दिन यह बीमारी ललित के शरीर में फैलती जा रही है। इसके इलाज के लिए अमेरिका से टीके मंगवाने पड़ते हैं। जिसके लिए मैं कई बार प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सोशल मीडिया के जरिए मदद मांग चुका हैं। अब तक कहीं से किसी ने कोई सुध नहीं ली है। अगर सरकार चाहे तो मेरा बेटा बच सकता है।
 

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डॉक्टर महेंद्र चौधरी ने बताया कि ललित को  ग्लाइकोजन स्टोरेज डिसऑर्डर 2 यानी पोम्पे रोग है। यह बीमारी बहुत ही दुलर्भ है, क्योंकि करोड़ों में से एक या दो को होती है। इस बीमारी में शरीर की सेल्स में ग्लाइकोजन नाम का कॉम्प्लेक्स शुगर एकत्रित होता है। जिसके चलते शरीर प्रोटीन का निर्माण नहीं कर पाता है। इसका एक ही विकल्प है, एंजाइम थेरेपी। जिसमें  एक साल में 26 इंजेक्शन लगते हैं और करोड़ों रुपए का खर्च आता है।

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प‍िता चंपालाल ने बताया कि जो कुछ भी हमारे पर पैसा था वह हम अपने बड़े बेटे के इलाज में खर्च कर चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी वह नहीं बच सका। करीब 8 से 10 तक उसका इलाज करवाया, फिर भी उसकी मौत हो गई। मैं एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूं, मेरी इतनी गुंजाइश नहीं की वह अपने छोटे बेटे का इलाज करा सकें। 

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वहीं पीड़ित बच्चे ललित के मामा नरेश ने बताया कि उन्होंने  6 महीने पहले जब ललित का टेस्ट करवाया तो पता चला कि उसे भी वही बीमारी है जो उसके बड़े भाई को थी। हम लोग निराश हो गए कि अब हम उसे नहीं बचा पाएंगे।  क्योंकि हमारे पास इतना पैसा नहीं कि उसका इलाज करा सकें। इसमें 24 घंटे में से 16 घंटे ऑक्सीजन पर रखना पड़ता है। जिसका बिल एक दिन का लाखों रुपए  होता है। अब तो सरकार ही उसकी जान बचा सकती है।

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