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झारखंड के इस मंदिर में देवी-देवताओं की नहीं बल्कि हाथी की होती है पूजा, 300 साल पहले शुरू हुई ये परंपरा
पूर्वी सिंहभूम (झारखंड). गणशे चतुर्थी स्पेशल झारखंड राज्य में पूर्वी सिंहभूम स्थित जमशेदपुर से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा मंदिर है, जहां किसी देवी देवता का नहीं बल्कि हाथी की पूजा की जाती है। यह मंदिर पटमदा के बोडा़म प्रखंड में हाथी खेदा नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के आसपास पहाड़ और घने जंगल होने से मंदिर की सुंदरता देखने योग्य रहती है जिसके कारण काफी संख्या में पर्यटक यहां घूमने भी आते हैं। इस मंदिर परिसर के अंदर हाथियों की ढेर सारी मूर्तियां बनाई गई है। तस्वीरों में देखिएं वहां के नजारें....
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हाथियों के आंतक से रक्षा के लिए बनाया गया था मंदिर
गांव के लोगों का कहना है कि दलमा पहाड़ से सटे होने के कारण पुराने समय में यहां काफी संख्या में हाथी आया करते थे और यहां के फसलों को बर्बाद कर देते थे। ग्रामीणों की परेशानी को देखते हुए वहां के पुजारियों ने 300 वर्ष पूर्व मिट्टी से बनी हाथियों की मूर्ति की पूजा शुरू की। जिसके बाद उस क्षेत्र में हाथियों का आना धीरे-धीरे कम होता गया। बाद में यहां मंदिर बनाया गया और इस मंदिर का नाम हाथी खेदा रखा गया। जिसका मतलब होता है हाथी को भगाना। जिसके बाद धीरे-धीरे हाथी खेदा नाम से ही मंदिर की पूजा होने लगी। फिर इस मंदिर की प्रसिद्धि दूरदराज तक पहुंचने लगी और दूसरे प्रदेश के लोग अपनी मनोकामना लेकर यहां आने लगे और साल भर यहां श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं।
हाथी खेड़ा मंदिर का रहस्य
लोजोरा गाँव दलमा वन्यजीव अभयारण्य में स्थित है और पूरे साल जंगली हाथियों से घिरा रहता है। कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले हाथी गाँव में कहर मचाते थे। इसे समाप्त करने के लिए, एक संत ने एक मिट्टी की मूर्ति स्थापित की और यहां हाथी की पूजा का अनुष्ठान शुरू किया और यह माना जाता है कि तब से हाथियों का उतपात लोजोरा में बंद हो गया। बाद में एक मंदिर का निर्माण किया गया और इसे “हाथी खेड़ा मंदिर” नाम दिया गया। इसलिए, जब भी जंगली हाथियों ने लोजोरा पर हमला किया, ग्रामीणों ने मंदिर में हाथी खेड़ा बाबा का आह्वान करना शुरू कर दिया और हाथी चले गए।
हाथियों की पूजा करते लोग
हाथी खेदा मंदिर को लेकर लोगों में गहरी आस्था है। यहां कई श्रद्धालु मुंडन संस्कार के लिए भी आते हैं। लोगों की मानें को यहां कोई भी मनोकामना सिर्फ मत्था टेकने से ही पूरी हो सकती है। हाथी खेदा मंदिर के कारण यहां हाथियों का उत्पात कम हुआ है, ये महज एक संयोग हो सकता है। फिर भी यहां सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
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मंदिर की अनोखी परंपरा
यहां चुनरी और नारियल बांधने के साथ भेड़ की बलि चढ़ाने की परंपरा है। खास बात तो ये है कि यहां का प्रसाद महिलाएं नहीं खा सकती और यहां का प्रसाद घर ले जाना भी मना है। मंदिर के आस-पास बसे लोग बताते हैं कि बताते हैं कि, हमारे पूर्वज ने पहले से ही यह नियम बना रखा है कि महिलाओं को यहां का प्रसाद खाना वर्जित है। हालांकि ये बात किसी को नहीं मालूम की आखिर महिलाएं मंदिर के प्रसाद को क्यों नहीं ग्रहण कर सकती।
प्रकृति और आस्था का संगम है पूर्वी सिंहभूम का हाथी खेदा मंदिर
यह मंदिर सैकड़ों वर्षों से लोगों की आस्था का केंद्र और प्रकृति एवं भक्ति का अद्भुत संगम है। मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, जो आने वाले समय में श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा। जमशेदपुर शहर के डिमना चौक से पटमदा जाने के रास्ते में लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर भुईयांसिनान नामक गांव से बाएं तरफ से पहाड़ों एवं जंगलों से होती हुई एक सड़क गुजरती है जो हाथी खेदा मंदिर को जाती है।
पूरी होती हैं मन्नतें
इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त मन्नत लेकर आते हैं तथा उसकी पूर्ति के लिए मंदिर प्रांगण में नारियल घंटी चुनरी आदि वस्तुएं बांधते हैं। भक्तगण देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भेड़ की बलि चढ़ाते हैं जिसका कुछ हिस्सा मंदिर में चढ़ाया जाता है तथा शेष वे प्रसाद के रूप में अपने साथ ले जाते हैं।