- Home
- States
- Rajasthan
- गर्मी से उबलते राजस्थान में बाबा का हठ योग: जलती आग के बीच बैठकर कर रहे साधना, सिर पर रखी अंगारों की मटकी
गर्मी से उबलते राजस्थान में बाबा का हठ योग: जलती आग के बीच बैठकर कर रहे साधना, सिर पर रखी अंगारों की मटकी
- FB
- TW
- Linkdin
आत्मा तक कांप जाए ऐसे नजारे को देखकर
बाडमेर के इस नजारे को देखकर लोगों की रुह कांप जाती हैं। जो भी बाबा के बारे में सुनता है वह एक बार देखने जरुर पहुंचता है। बाबा की इस धूनी के पास से गुजरने के बाद तो पारा पचास डिग्री तक पहुंचा जाता है। दोपहर के समय में बाबा अपनी साधना के लिए बैठते हैं।
शिव मुंडी गणेश मंदिर के पास बाबा की साधना
बाबा पहले तो कोबर के कंडो से आग जलाते हैं और उसके बाद जलते कंडों को ही एक बर्तन में रखकर सिर पर रखते हैं। फिर जलती आग सिर पर और पास में लेकर साधना में जुट जाते हैं। जो भी यह नजारा देखता वह देखता ही रह जाता है। बाबा इस समय बाड़मेर में शिव मुंडी गणेश मंदिर के पास बैठकर बाबा साधना कर रहे हैं
कौन है बाबा सियाराम दास, 13 साल की उम्र में लिया सन्यास
मूल रुप से उडीसा से ताल्लुक रखने वाले बाबा सियाराम दास करीब बारह तेरह साल पहले बाडमेर पहुंचे थे। वे 13 साल की उम्र में सन्यास ले चुके थे। उसके बाद बनारस में अपने गुरु सीताराम महाराज से उन्होनें दीक्षा ली। फिर बाडमेर के शिव मूंडी के नीचे उनके दादा गुरु ने एक आश्रम बनवाया। दादा गुरु ने भी चालीस साल यहां रहकर तपस्या की थी। उन्होनें ही सियाराम महाराज को यहां बुलाया था।
17 साल से जारी है यह हठ योग
बाबा कहते हैं कि करीब पंद्रह से 17 साल से लगातार अप्रेल मई की भीषण गर्मी में वे इसी तरह से हठ योग करते हैं। जब उनसे किसी ने पूछा कि ये जानलेवा हो सकता है तो उनका कहना था कि जरुर हो सकता है, लेकिन इसे उन्होनें साध लिया है। अब तपती गर्मी उन्हें नहीं तपाती वे ईश्वर की शरण में चले जाते हैं। बाबा के इस हठ योग को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। हर दिन दोपहर मे डेढ़ से दो घंटे तक उनका यह हठ योग जारी रहता है।
बाबा बोले-गर्मी का एहसास नहीं होता
हठ के बारे में बाबा सियाराम ने बताया कि यह हठ योग अनुष्ठान चार महीन गर्मी के समय में किया जाता है। माघ की वसंत पंचम से लेकर ज्येष्ठ गंगा दशहरा तक अनुष्ठान होता है। इस अनुष्ठान में धूप से कोई लेना-देना नहीं है। जब तक जप करते हैं तो उस दौरान धूप का कोई अहसास नहीं होता है। तब तक न तो गर्मी लगती है और न ही आग का तप लगता है। उन्होंने कहा-यह तपस्या सदियों से चली आ रही है। आज के समय में इस तरह का योग बहुत कम देखने को मिलता है। कम साधु-संत ही करते हैं।