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जहां बहती थीं खून की नदियां, गर्दन काटना थी बहुत आम बात, वहां की चौंकाने वाली तस्वीरें

लीबिया  में मुअम्मर गद्दाफी ने  27 साल की उम्र में राजशाही का तख्ता पलट किया था। सत्ता मिलने के बाद वो ताकत के नशे में चूर हो गया, जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी वो क्रूर होता गया।  कोई उसे शानदार शासक, कोई क्रूर तो कोई उसे ज़ालिम कहता था। उसे मिडिल ईस्ट की राजनीति का ‘पिकासो’ भी कहा जाता था। इस देश में कई पर्यटक स्थल भी मौजूद हैं।

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Asianet News Hindi
Published : Sep 18 2021, 03:10 PM IST| Updated : Sep 18 2021, 03:49 PM IST
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ट्रेंडिंग डेस्क. अफ्रीकी देश लीबिया (Libya) में मुअम्मर गद्दाफी (Muammar Gaddafi) ने मात्र 27 साल की उम्र में राजशाही का तख्ता पलट किया था।  सत्ता मिलने के बाद वो ताकत के नशे में चूर हो गया, जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई वो क्रूर होता गया। गद्दाफी ने 6 दशक तक लीबिया पर राज किया, कोई उसे शानदार शासक, कोई क्रूर तो कोई उसे ज़ालिम कहता  था। उसे मिडिल ईस्ट की राजनीति का ‘पिकासो’ भी कहा जाता था। उसने लीबिया पर  42 साल तक बेखौफ राज किया। 


 

 

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मुअम्मर गद्दाफी का जन्म 7 जून 1942 को लीबिया के सिर्ते शहर के एक गांव में हुआ था। गद्दाफी का जन्म खानबदोश बेदोविन परिवार में हुआ था। गद्दाफी  मिस्र के गमाल अब्देल नासेर को वो अपना आदर्श मानता था। बता दें कि  अब्देल नासेर पश्चिमी देशों के उपनिवेशवाद के खात्मे की कोशिश कर रहे थे। नासेर  अरब राष्ट्रवाद को बढ़ावा देते थे। नासेर के  विचारों को साथ लेकर गद्दाफी लीबिया की सेना में शामिल हुआ, सबको प्रभावित करते हुए वो र सिग्नल कॉर्प्स में अफसर बन गया।

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बता दें कि 1950 के दशक में लीबिया में कई बड़े  तेल के भंडार होने का पता चल चुका था। तेल से होने वाली आमदनी के तकरीबन आधे हिस्से की मालिक भी यही विदेशी कंपनियां होती थीं, जो इसे निकालती थीं।  उस समय लीबिया में किंग इदरिस का की सत्ता थी। यहां उस समय राजशाही हुआ करती थी। तेल के दम पर लीबिया एक धनवान मुल्क बन चुका था। किंग इदरिस के खिलाफ विरोध भी बढ़ रहा था। 1960 के दशक के आखिरी सालों तक इदरिस की सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा काफी बगावत में तब्दील हो चुका था। 

दुनिया में हो रहे बदलाव का असर लीबिया पर भी हो रहा था। 1967 में मिस्र सहित कई अरब देश केवल 6 दिन युद्ध करके इजरायल के सामने सरेंडर कर चुके थे। इसको लेकर  लीबिया के राजा इदरिस को जिम्मेदार ठहराया गया। बता दें कि  पश्चिमी देशों के करीबी होने की वजह से इदरिस को इजरायल-समर्थक माना जाता रहा है। लीबिया की राजधानी त्रिपोली और बेनगाजी  शहरों में स्थानीय जनता इदरिस के खिलाफ लामबंद हो रही थी। इदरिस लोगों के गुस्से को फ़ौजीताकत से दबाना चाह रहे थे, वहीं इस मौके का फायदा उठाते हुए  कर्नल मुअम्मर गद्दाफी ने उनकी राजशाही को ही उखाड़ फेंका था।
 

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दुनिया के अधिकतर देश लीबिया के साथ संबंध सुधारना चाह रहे थे। वर्ष 2009 में गद्दाफी G-8 देशों की बैठक में हिस्सा लेने लाकिला पहुंचे, तो यहां अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी और मिस्र के होस्नी मुबारक के साथ गद्दाफी ने मंच साझा किया था। हालांकि इसी साल गद्दाफी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की शुरूआत हुई। मिस्र में हुस्नी मुबारक के हटने के बाद लीबिया में विरोध की लहर तेज हो गई। इस दौरान विरोधियों को अलकायदा का आतंकी बताया लेकिन कई बड़े देशों में  तैनात लीबिया के राजदूतों के पद छोड़ने से गद्दाफी की चूलें हिल गईं।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने रोनाल्ड रीगन ने कहा था ‘पागल कुत्ता’
मुअम्मर गद्दाफी ने तख्ता पलट के बाद नए देश को ‘लीबिया अरब गणतंत्र’ नाम दिया । मुअम्मर गद्दाफी ने लीबिया पर 42 साल तक बेखौफ होकर राज किया। गद्दाफी की हुकूमत ऐसी थी कि पूरी दुनिया में उनका खौफ था।  पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने गद्दाफी को ‘पागल कुत्ता’ तक कह दिया था।वहीं गद्दाफी ने बाद में अमेरिका-रूस से अपने संबंध सुधारे, उसने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और अमेरीकी राष्ठ्रपति बराक ओबामा से भी मुलाकात की। 

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बदलने लगा गद्दाफी का रवैया
लीबिया में गद्दाफी के शुरूआती शासनकाल के बाद स्थितिया बदलने लगीं। गद्दाफी के  खिलाफ बोलने वालों को जेल में यातनाएं दी जाने लगीं। जिस पर गद्दाफी के खिलाफ जाने का शक होता था, उसे कत्ल कर दिया जाता था। पूरी लीबिया के चप्पे-चप्पे पर  गद्दाफी की खुफिया पुलिस हुआ करती थी। तेल की कमाई का बड़ा हिस्सा गद्दाफी के ऐशो-आराम  पर खर्च हुआ करता था।


धर्म का सहारा लेकर गद्दाफी ने अंग्रेजी कैलेंडर के महीनों के नाम अपने हिसाब से कर दिए। लीबिया राजशाही से निकलकर अब तानाशाही के चंगुल में फंस चुका था। साल 1973 में लीबिया के कानून में बड़ा बदलाव किया गया, यहाए अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पाबंदी लगा दी गई।

 1980 के दशक में गद्दाफी के खिलाफ माहौल बनने लगा था। लीबिया के बाहर विदेशों में रह कर गद्दाफी के विद्रोहियों का समर्थन करने वाले 25 खास लोगों की हत्या करने के लिए एक खुफिया टीम बनाई गई। जब इन लोगों ने सरेंडर करने से मना किया तो इन विरोधियों की हत्या करवा दी गई, ये सिलसिला आगे भी जारी रहा। 

लीबिया  में मुअम्मर गद्दाफी ने  27 साल की उम्र में राजशाही का तख्ता पलट किया था। सत्ता मिलने के बाद वो ताकत के नशे में चूर हो गया, जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी वो क्रूर होता गया।  कोई उसे शानदार शासक, कोई क्रूर तो कोई उसे ज़ालिम कहता था। उसे मिडिल ईस्ट की राजनीति का ‘पिकासो’ भी कहा जाता था। इस देश में कई पर्यटक स्थल भी मौजूद हैं।

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1 सितंबर 1969 को किंग इदरिस ग्रीस में इलाज के लिए गए हुए थे।  इसी दौरान, लीबिया में राजशाही को खत्म करने के लिए गद्दाफी ने ही ‘फ्री ऑफिसर मूवमेंट’ के 12 मेंबर वाले एक डायरेक्टोरेट का नेतृत्व किया जिसने इस तख्तापलट को अंजाम दिया था। बिना खून खराबा किए लीबिया के क्राउन प्रिंस सैय्यद हसन-अर-रीदा को गद्दाफी की सेना ने  हिरासत में ले लिया  था।
 

गद्दाफी की सेना लगातार विरोधियों को मौत के घाट उतार रही थी। वहीं यूएन और पश्चिमी देशों ने गद्दाफी  सरकार पर कई तरह की पाबंदियां लगा दीं।  नाटो सेनाओं ने लीबिया की सेना के ठिकानों पर हवाई हमले शुरू कर दिए। ब्रिटेन और फ्रांस ने खुलकर लीबिया के विद्रोहियों को समर्थन दिया, इसके बाद गद्दाफी की सेनाएं पीछे हटते हुए देश के उत्तरी हिस्से की तरफ खिसकती चली गईं. गद्दाफी का अपना शहर सिर्ते इस जंग का आखिरी मैदान बना लिया।  गद्दाफी का काफिला जब सिर्ते से गुजर रहा था, तो पहले उस पर नाटो के विमानों ने हमला बोला और फिर जब गद्दाफी गलियों में छिप गया तो विद्रोहियों के साथ भारी गोली बारी में उसकी मौत हो गई। जहां गद्दाफी पैदा हुआ था वहीं से 20 अक्टूबर 2011 को गद्दाफी के मरने की खबर आईं। गद्दाफी का एक बेटा मारा गया, एक पकड़ा गया। तीन बेटे और एक बेटी फरार हो गए, बाकि के बारे में सालों तक कोई जानकारी नहीं मिली।

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लीबिया में त्रिपोली से 130 किलोमीटर दूर है कसर-अल-हज। ये सदियों पुराना लॉकर रूम हैं । इसे 12वीं सदी में बनाया गया था।  कसर-अल-हज वो स्थान  है, जहां हज पर जाने से पहले सभी यात्री अपना भारी सामान रखकर जाते थे। ये आधुनिक लॉकर रूम  की तरह ही है।  मिट्टी और ईंटों से बनी यह गोलाकार इमारत है। इस बिल्डिंग में 114 चैंबर हैं, जितने कि पवित्र कुरान में चैप्टर हैं। हर साल मुस्लिम हज यात्रा के लिए पवित्र शहर मक्का जाते हैं। इसलिए इस जगह को कसर-अल-हज कहा गया। अरबी भाषा में कसर का अर्थ किला और हज यानी पवित्र यात्रा होता है। जॉर्ज लुकास की फिल्म स्टार वार्स में इसी आर्किटेक्चर पर बनी ट्यूनीशिया की इमारतों को दिखाया  है। हर साल मुस्लिम हज यात्रा के लिए पवित्र शहर मक्का जाते हैं। इसलिए इस जगह को कसर-अल-हज कहा गया। अरबी भाषा में कसर का अर्थ किला और हज यानी पवित्र यात्रा होता है।

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लीबिया में अनेक प्रकार के मीठे फलों का उत्पादन होता है।  छुहारा, सदाबहार वृक्ष तथा मस्तगी (mastic) के फेमस वृक्ष हैं। सुदूर उत्तर में बकरियां और हर घर में  मवेशी पाले जाते हैं। दक्षिण में भेड़ों और ऊटों की संख्या सबसे अधिक है। 

चमड़ा कमाने, जूते, साबुन, जैतून का तेल निकालने तथा तेल के शोधन  के कारखाने बहुतायत में   हैं। लीबिया में जौ और गेहूँ की खेती होती है। वहीं यहा पेट्रोलियम के अतिरिक्त फ़ॉस्फ़ेट, मैंगनीज़, मैग्नीशियम तथा पोटैशियम मिलते हैं। खानेवाला समुद्री नमक यहां प्रमुखता ले मिलता है। अरबी भाषा में कसर का अर्थ किला और हज यानी पवित्र यात्रा होता है। जॉर्ज लुकास की फिल्म स्टार वार्स में इसी आर्किटेक्चर पर बनी ट्यूनीशिया की इमारतों को दिखाया  है।

लीबिया में ऐशी कई खूबसूरत इमारतें  मौजूद हैं। पहले लीबिया में पर्य़टन के लिए हजारों लोग पहुंचते थे। लेकिन लंबे समय से यहां गृहयुद्ध के हालातों की वजह से पर्यटन लगभग खत्म सा  हो गया है। विश्व की शानदार विरासत यहां मौजूद है। यदि यहां लोकतंत्र की बहाली होती है तो निश्चित ही यहां के पर्य़टक स्थल एक बार फिर गुलजार हो पाएंगे।

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