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जानिए Indian Army को किसने सबसे पहले दी थी कारगिल में घुसपैठ की खबर, कैसे पता चला उसे कि पाकिस्तानी आ चुके हैं

ट्रेंडिंग डेस्क। करीब 23 साल पहले की बात है। भारतीय सीमा कारगिल में बड़ी संख्या में कारगिल घुसपैठिए घुस आए थे। यह सब हर बार की तरह पाकिस्तान सरकार और वहां की सेना की मदद से हुआ। बहरहाल, भारतीय सैनिकों ने उन्हें ऐसा सबक सिखाया कि तब से दोबारा इधर झांकना तो दूर सोचने की हिम्मत भी नहीं कर पाए हैं पाकिस्तानी। सबसे पहले जिसने पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा वह सेना का कोई जवान नहीं था बल्कि, सेना से उसका दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था। वह तो आम चरवाहा था और संयोग से अपने नए-नवेले याक को खोजते हुए वहां पहुंच गया। फिर भी उसे समझ में आ गया कि ये जो दिखाई दे रहे हैं, ये भले आदमी तो नहीं हो सकते और न ही भारतीय है। उसने तुरंत सेना को इसकी जानकारी देने के लिए दौड़ लगा दी। आइए तस्वीरों के जरिए इस बारे में और ज्यादा जानते हैं। 

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Asianet News Hindi
Published : Jul 24 2022, 09:02 AM IST
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आज ताशी नामग्याल की उम्र करीब 58 साल होगी। उन्होंने सबसे पहले तब कारगिल की पहाड़ियों के पीछे छिपे पाकिस्तानी सैनिकों को देखा था, जब वे अपने याक को खोजते-खोजते वहां तक पहुंच गए थे। 

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ताशी का कहना है कि उस दिन संयोग की बात थी। मैं 1999 में बल्टिक सेक्टर में अपने जानवर चरा रहा था। यह याक बिल्कुल नया था और भटक कर दूर चला गया। उसे ही खोजते हुए मैं उन घुसपैठियों के बेहद करीब तक पहुंच गया था। 

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ताशी ने बताया कि अगर वह नया याक नहीं होता, तो उसे खोजने के लिए उधर नहीं जाते। मैं इसे किसी भी कीमत पर खोजना चाहता था, क्योंकि कुछ दिन पहले ही उसे तब यानी आज से करीब 23 साल पहले 12 हजार रुपए में खरीदा था। 

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ताशी के मुताबिक, मैं पहाड़ियों पर चढ़कर उसकी तलाश कर रहा था और सोच रहा था कि अचानक वह कहां गया। तभी मुझे अपना याक दिखाई दे गया, लेकिन इस याक के साथ ही उन्हें वहां कुछ ऐसी गतिविधि दिखीं जो सामान्य नहीं थे। कुछ लोग हथियारों के साथ वहां मौजूद थे। 

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ये आतंकी जैसे लग रहे थे। इनमें कुछ पाकिस्तानी वर्दी में भी थे। इन संदिग्ध लोगों के दिखते हुए उनके दिमाग में जो सबसे पहले बात आई, वह यह कि इसकी जानकारी भारतीय सेना को देनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने सैनिको के कैंप की ओर दौड़ लगा दी। 

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ताशी नमाग्याल का गांव कारगिल से करीब 60 किलोमीटर दूर सिंधु नदी के किनारे बसा है। इस गांव का नाम है गारकौन। ताशी बौद्ध धर्म को मानते हैं और बकरियां पालते व उन्हें चराते हैं। 

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ताशी के मुताबिक, जब याक को खोजते हुए पहली बार संदिग्ध लोग दिखे तो लगा कि हो सकता है वे शिकारी होंगे, मगर फिर भी मेरा मन नहीं माना और दौड़कर सेना के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी। 

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बाद में पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठिए लंबे समय से यहां गतिविधियां जारी रखे हुए थे और युद्ध की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने अपने रहने-छिपने के लिए कुछ निर्माण कर लिए थे और रास्ता भी बना रहे थे। 

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इसके बाद भारतीय सैनिकों ने युद्ध की तैयारी की और कारगिल युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में दोनों तरफ के बहुत से लोग मारे गए। भारतीय सेना के करीब छह सौ सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए। 

 

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खुद ताशी और उनके परिवार वालों के साथ-साथ गांव वाले भी फख्र महसूस करते हैं कि उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों की सूचना दी, जिसके बाद सरहद बचाई जा सकी। यह उनके लिए गर्व करने वाली बात है। 

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