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World Suicide Prevention Day: महिलाएं नहीं.. मौत चुनने में पुरूषों की संख्या अधिक, जानिए सुसाइड की बड़ी वजह

ट्रेंडिंग डेस्क। World Suicide Prevention Day: विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर गौर करें तो हर साल दुनियाभर में लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। हालांकि, देखा जाए तो यह आंकड़ा अंतिम नहीं होगा, क्योंकि बहुत से मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमें परिजन रिपोर्ट नहीं करते और लोकलाज या फिर पुलिस केस के डर से ऐसे ही अंतिम संस्कार कर देते हैं। इसके अलावा, बहुत से मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमें सुसाइड करने वाली की जान बच जाती है और वह रिपोर्ट मृतक में तब्दील नहीं होती, मगर मरने की पूरी कोशिश देखी जाए तो उसने भी की ही थी। आत्महत्या करने की बहुत सी वजहें हैं, जिनमें अवसाद, लाचारी, निराशा, कुछ नहीं कर पाने की हताशा जैसे बहुत से मामले हो सकते हैं। मगर एक जो बात हैरान करने वाली है वो ये आत्महत्या करने वालों में पुरुष अव्वल हैं। आइए तस्वीरों के जरिए इसकी कुछ खास वजहों पर गौर करें। 

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Asianet News Hindi
Published : Sep 10 2022, 11:58 AM IST
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पुरूष बहुत सी जिम्मेदारियों के बोझ से दबे होते हैं। उनके सामने यह भी रहता है कि वे रो नहीं सकते और न ही अपना दुखड़ा जल्दी वे किसी से कह पाते हैं। ऐसे में अंदर ही अंदर तनावग्रस्त रहते हुए कुढ़ते रहते हैं। 

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वर्ष 2019 में दुनियाभर में सात लाख लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। इसमें डेढ़ लाख लोग सिर्फ भारत से थे। यहा आंकड़ा एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी किया गया था। 

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अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर गौर करें तो अगर प्रति लाख में जहां 12 पुरूष सुसाइड करते हैं, तो महिलाओं की संख्या इसमें आधी से भी कम यानी पांच होती है। 

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एनसीआरबी की ओर से दिए गए आंकड़ों में सिर्फ भारत की बात करें तो यहां आत्महत्या के कुल मामलों में 70 प्रतिशत मरने वालों की संख्या पुरूष की होती है। महिलाओं का आंकड़ा 30 प्रतिशत तक होता है। 

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भारत में जो कुल मौतें हर साल होती हैं, उनमें लगभग 11 प्रतिशत का आंकड़ा आत्महत्या वाला होता है। आंकड़ों के मुताबिक, करीब चार सौ लोग रोज मौत को गले लगा लेते हैं। 

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सुसाइड की वजहों पर गौर करें तो ज्यादातर मामले रिश्तों में आई दरार या फिर खटास की वजह से होती है। कुछ लोग डिप्रेशन की वजह से मरते है और यहां भी तनाव कई वजहों से होता है। 

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विशेषज्ञ मानते हैं रिश्तों में दरार की वजह से अवसाद होता है और अवसाद की वजह से आदमी अकेलापन महसूस करने लगता है और लोग इस परेशानी से निकलने के बजाय इसमें जीने लगते हैं और बाद में मौत को गले लगा लेते हैं। 

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विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि अवसाद यानी डिप्रेशन आत्महत्या की बड़ी वजह है। दुनिया में अब भी करीब तीस करोड़ लोग अवसाद से ग्रसित हैं और 25 करोड़ लोग एनजाइटी से पीड़ित हैं। 

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आकंडों के मुताबिक, ज्यादातर किशोर और युवा मौत को गले लगा रहे हैं। ज्यादातर 15 से 45 वर्ष की उम्र तक के लोग आत्महत्या कर रहे है। इनमें भी 15 से 29 वर्ष का आंकड़ा अधिक है। 

 

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सबसे बड़ी बात की जिन आकड़ों को दर्ज किया जा रहा है, उनमें दस प्रतिशत मामले तो ऐसे हैं, जिनमें आत्महत्या की सटीक वजहों का पता ही नहीं लग पाया है। यह इस तस्वीर का खतरनाक पहलू है। 

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