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घर में पड़ा था मां- बाप और बेटे का शव, हाथ पैर बंधे मुंह पर लगा था टेप; घटनास्थल बयां कर रहा था हैवानियत
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मूलरुप से मथुरा के बलदेव के रहने वाले रघुवीर उर्फ रामवीर 30 साल पहले आगरा आ गए थे। यहां उन्होंने एत्माउद्दौला थाना क्षेत्र के नगला किशन लाल में अपना आशियाना बनाया था। लेकिन रविवार रात रामवीर, उनकी पत्नी मीरा और बेटे बबलू की हत्या कर दी गई। घटनास्थल का जायजा लेने के बाद पुलिस ने सुनोयोजित तरीके से हत्याकांड को अंजाम देने का अंदेशा जताया है।
जानकारी के अनुसार रविवार रात पास में ही जागरण कार्यक्रम था और तेज आवाज में भजन-कीर्तन हो रहा था। आसपड़ोस के ज्यादातर लोग जागरण में ही मौजूद थे। शायद यही वजह रही कि लोगों को रामवीर व उनके परिवार के सदस्यों की चीख या अन्य कोई आहट सुनाई नहीं दी।
बताया जा रहा है कि रामवीर ने अपने बेटे की नौकरी में लगने वाली घूस के लिए अपना एक प्लॉट बेचा था। रामवीर ने अपने बेटे की रेलवे में नौकरी लगवाने के लिए एक फौजी नाम के रिश्तेदार को 12 लाख रुपए दिए थे। लेकिन बेटे बबलू को नौकरी नहीं मिली थी। रामवीर अपना रुपया वापस मांग रहे थे। जिसको लेकर फौजी से विवाद चल रहा था। रामवीर के ज्यादातर रिश्तेदास घर के आसपास ही रहते हैं। पुलिस को जानकारी हुई है कि फौजी रात में रामवीर के घर दो लोगों के साथ आया था।
पुलिस को क्राइम सीन रिक्रिएट करने पर यह जानकारी मिली है कि तीनों लोगों को पहले जान से मारा गया है। घर के सभी तीन कमरों पुलिस को संघर्ष के निशान मिले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि हत्यारों और रामवीर के बीच एक कमरे में बात हुई है और बातचीत में मामला बढ़ने पर पहले मीरा और बबलू को कमरों में बंद किया गया है और फिर पहले रामवीर की और बाद में बबलू व अंत में मीरा की हत्या की गई है।
जिस तरह तीनों को हाथ पैर बांध कर बारी बारी बिना हथियार के मारा गया है और मारने के बाद तीनों शवों को उठाकर एक कमरे में एक के ऊपर एक रखकर जलाने का प्रयास हुआ है, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि हत्यारों ने मौत को हादसा बनाने का प्रयास किया ताकि उनकी क्रूरता की कहानी किसी को पता न चल पाए। सुबह जब लोगों को हत्या की घटना का पता चला तो जिस किसी ने भी शवों की हालत देखी वो दहल गया क्योंकि शवों को एक के ऊपर रखकर जलाया गया था और आग पूरी तरह न लग पाने के कारण शव अधजली हालत में पड़े थे।
मृतक रामवीर के भाई चंद्रभान ने बताया कि रामवीर का शुरुआती जीवन काफी परेशानी भरा था। उसने बेलदारी करके अपने बेटे को पढ़ाया और पाई-पाई इकट्ठा कर दुकान बनाई। इसके बाद उसने दुकान के साथ साथ ब्याज का काम भी शुरू किया और काफी पैसा इकट्ठा किया। पड़ोसियों के अनुसार रामवीर का एक ही सपना था कि वो अपने बेटे को सरकारी नौकरी करता देखे और इसीलिए उसने अपनी सारी जमा पूंजी फौजी को देकर अपने बेटे को नौकरी पर लगवाने की तैयारी की थी।