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बेबसी की तस्वीर: इस श्मशान घाट में 2 महिलाएं करती हैं अंतिम संस्कार, चिता जलाकर पाल रहीं बच्चों का पेट

जौनपुर (उत्तरप्रदेश).  अक्सर हमने पुरुषों को ही अंतिम संस्कार करते देखा या सुना है। क्योंकि हिंदू धर्म में महिलाएं श्मघाट नहीं जाती हैं।  लेकिन उत्तर प्रदेश में एक मरघट ऐसा है जहां सिर्फ महिलाएं ही शवों को आग देती हैं। इस अंतिम संस्कार से मिलने वाले पैसे से वह अपने परिवार और बच्चों का पेट पालती हैं। 

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Asianet News Hindi
Published : Sep 28 2020, 06:25 PM IST
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 100-200 रुपए की खातिर करतीं अंतिम संस्कार
दरअसल, यह श्मशान घाट जौनपुर के गंगा-गोमती के तट पर है, जहां रोज आसपास के कई गांवों के तकरीबन 8-10 शव जलाए जाते हैं। इन लाशों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी यहां की दो विधवा महिलाओं की है। जो शव को आखिरी तक जलाती हैं इसकी एवज में उनको मृतक परिवार 100-200 तो कभी 500 रुपए देकर जाते हैं। इसी रुपए से वह अपने बच्चों और परिवार का खर्चा चलाती हैं।

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पापी पेट के आगे बेबस हैं यह महिलाएं...
बता दें कि जब इन दो विधवा महिलाों ने शवों को जलाने का काम शुरू किया तो परिवार से लेकर गांव के लोगों ने उनका जमकर विरोध किया। शुरूआत में उनको समाज के लोगों का विरोध का सामना करना पड़ा। जब कोई शव को लेकर श्ममान पहुंचता तो युवतियों को देखकर वह सकते में आ जाते और उनको खरी-खोटी सुनाने लगते। लेकिन पापी पेट के आगे उन्होंने किसी की नहीं सुनी।
 

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 इस काम में कोई पछतावा नहीं
महरीता नाम की महिला का 7 साल पहले पति का निधन हो गया तो घर में भूखे मरने की नौबत आ गई। छोटे बच्चे भूख से बिलखते रहते लेकिन वह उनको भरपेट खाना तक नहीं खिला पाती थी। जब कमाई का कोई सहारा नहीं बचा तो उसने यह रास्ता अपना लिया। 

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शव जलाकर अपने बच्चों को पढ़ा रही है महिला
वहीं दूसरी महिला  सरिता ने भी मजबूरी में आकर यह रास्ता अपनाया। उसने कहा कि उनका 8 साल का लड़का है और दो बेटियां हैं जिनको वह पढ़ा-लिखा रही हैं। मुझे इस काम को करने में कोई शर्म नहीं आती है और ना ही कोई पछतावा है। 

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स्वाभिमान से जीने के लिए जला रहीं शव
महिलाओं ने बताया कि पति की मौत के बाद आजीविका का कोई सहारा नहीं है। स्वाभिमान से जीने के लिए उन्हें इस पेशे को चुना है, जिससे किसी के सामने हाथ न फैलाने पड़े।

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