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जिस ट्रेन में राष्ट्रपति ने किया सफर वह दुनिया में अनोखी, सोने की थाली में मिलता है खाना, जानिए खूबियां
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दरअसल, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन ने राष्ट्रपति के कानपुर दौरे की तैयारी कई दिन पहले शुरू कर दी थी। पहियों के ऊपर दौड़ने वाली इस स्पेशल ट्रेन महाराजा एक्सप्रेस की गिनती देश के सबसे टॉप और वीआईपी ट्रेनों में होती है। जिसके अंदर की सुविधाएं फाइव स्टार होटल की तरह होती है। इतना ही नहीं इसका किराया भी भी लाखों में होता है।
बता दें कि 23 कोच वाली इस ट्रेन में 43 शानदार केबिन बने हुए हैं। हर एक कोच में राजशाशाही इंतजाम हैं। बुलेट प्रूफ विंडो, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, हर आधुनिक सुविधा से लैस है महाराजा एक्सप्रेस। इसमें एक प्रेसीडेंशियल सुइट भी है, जिस पूरे एक कोच में बनाया गया है।
इसमें सफर बेहद आरामदायक और खुशनुमा माना जाता है। फाइव स्टार होटल और राजशाही अंदाज फील कराने वाली इस प्रेसिडेंशियल ट्रेन में देश-विदेश की नामचीन हस्तियां इसमें सफर करती हैं। सफर के दौरान जिन प्लेटों में खाना परोसा जाता है, उसमें सोने की पर्त चढ़ी है। इतना ही नहीं पानी चांदी के गिलासों में सर्व किया जाता है।
महाराजा एक्सप्रेस में बने 2 रेस्टोरेंट मोर महल और रंग महल बेहद खास हैं। जिनके अंदर जाकर ऐसा लगता है कि हम किसी फाइव स्टार होटल में बैठे हुए हैं। इसके कुछ कोच बिना छत वाले हैं, जो खुले आसमान का अहसास कराते हैं। इसमें बने सुइट के अंदर बने लिविंग रूम को मकराना मार्बल से तैयार किया गया है।
बता दें कि इस ट्रेन में सफर करने वाले यात्री को लाख रुपए तो कम से कम खर्च करने पड़ते हैं। ट्रेन का टिकट 2 लाख से 16 लाख रुपए तक होता है। जिसके अंदर वह सारी सुविधाएं हैं जो एक बड़े होटल में मिलती हैं। डाइनिंग रूम, विजिटिंग रूम, लांज रूम, कांफ्रेंस रूम यात्री के हिसाब से बनाए गए हैं। दो कोच के सैलून में बुलेट प्रूफ विंडो, जीपीआरएस सिस्टम, किसी भी समय जनता को संबोधित करने के लिए पब्लिक एड्रेस सिस्टम, सेटेलाइट बेस्ट कम्युनिकेशन सिस्टम मौजूद है।
इस प्रेसीडेंशियल ट्रेन में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में इस ट्रेन में पहली बार सफर किया था। इसके बाद डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डा. नीलम संजीवा रेड्डी ने इसमें सफर किया। फिर 1977 में डा. नीलम संजीवा रेड्डी ने यात्रा की। इसके 26 साल बाद 30 मई 2003 को डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस सैलून से बिहार की यात्रा की थी। अब 18 वर्ष बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसी से अपने जन्म आवास कानपुर पहुचे हुए हैं।
प्रेसीडेंशियल सैलून में सबसे पहला सफर विक्टोरिया ऑफ इंडिया ने इस्तेमाल किया था। पहले इसे वाइस रीगल कोच के नाम से जाना जाता था। यह सैलून शाही शानो-शौकत की तर्ज पर सजा हुआ है। इस स्पेशल ट्रेन में लगे दो लग्जीरियल कोच हैं, जो दिखने में एक जैसे हैं, इन कोच का नंबर 9000 और 9001 है। डाइनिंग रूम, विजिटिंग रूम, लॉन्ज रूम या कांफ्रेंस रूम और प्रेसीडेंट के आराम करने के लिए बेडरूम भी होता है। साथ ही राष्ट्रपति के सचिव एवं अन्य स्टाफ के लिए केबिन बने होते हैं।