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दावा: मोबाइल फोन से फैल रहा है कोरोना, 5G रेडिएशन इंसान की बॉडी में समाकर बना रहा है वायरस

हटके डेस्क: कोरोना वायरस जिस तेजी से पूरी दुनिया में फैला, इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। ये वायरस देखते ही देखते चीन से अमेरिका, यूके, भारत सहित दुनिया के हर कोने में पहुंच गया। वायरस की शुरुआत को लेकर कई तरह की बातें सामने आई जिसमें इन्हें लैब में बनाकर फ़ैलाने की बात भी कही गई। ये वायरस छूने से फैलता है या कोरोना संक्रमित के संपर्क में आने से। लेकिन जुलाई की शुरुआत में एक टीम ने आर्टिकल पब्लिश किया जिसमें कहा गया कि ये वायरस 5G रेडिएशन से फ़ैल रहा है। टीम ने कहा कि ह्यूमन स्किन सेल्स 5G रेडिएशन को अब्सॉर्ब करता है और फिर बॉडी में कोरोना  वायरस में बदल देता है। इस दावे के बाद हड़कंप मच गया। इन रिसर्चर्स ने कहा कि जिस देश में ज्यादा 5G डिस्ट्रीब्यूशन है, वहां ये वायरस ज्यादा तबाही मचाएगा। लेकिन अब इस दावे  पर कुछ वैज्ञानिकों ने शोध कर इसे गलत करार दिया है।  

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Asianet News Hindi
Published : Jul 29 2020, 10:57 AM IST| Updated : Jul 29 2020, 12:34 PM IST
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जुलाई की शुरुआत में इंटरनेशनल टीम ने PubMed, जो साइंस और बायोमेडिकल डाटाबेस का जर्नल है, उसमें पब्लिश करवाया कि कोरोना वायरस फ़ैलाने के लिए 5G नेटवर्क जिम्मेदार है। 
 

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इस रिपोर्ट में कहा गया कि हमारी स्किन सेल्स एंटीना की तरह काम करती है। ये 5G सिग्नल्स को अब्सॉर्ब करती है और यहां से ये दूसरे सेल्स तक पहुंचकर कोरोना वायरस बना लेते हैं।  

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लेकिन इस दावे को लेकर दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने शंका जाहिर की। 5G के दावे के लिए किसी तरह के एक्सपेरिमेंट को अंजाम नहीं दिया गया था। उन्होंने बस कुछ फिगर्स बनाए और उसी के आधार पर ये दावा कर दिया। 

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दावे के विरोध में कई साइंटिस्ट्स सामने आए। उन्होंने कहा कि अगर 5G रेडिएशन का कोरोना से लेना देना होता तो सबसे अधिक मामले अमेरिका में हैं। जबकि वहां 5G डिस्ट्रीब्यूशन काफी कम है। 

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अमेरिका से ज्यादा 5G डिस्ट्रीब्यूशन सऊदी अरब, साउथ कोरिया, स्विट्जरलैंड, कुवैत, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और यूके में है। ऐसे में अमेरिका में इतने अधिक मामले नहीं होने चाहिए थे।  

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इस दावे के सामने आने के बाद बोस्टन में नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता जेम्स हीथर ने ट्वीट किया: 'आपने अभी तक SARS-CoV-2 पर प्रकाशित सबसे बेकार रिपोर्ट  होगी। अभी इससे भी अजीबोगरीब रिपोर्ट्स आने बाकी है'। 

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जब दुनिया के कई साइंटिस्ट्स ने इस स्टडी को निशाने पर लिया तब 24 जुलाई को PubMed ने एक और आर्टिकल के जरिये इस दावे को खारिज कर दिया।  

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