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फैमिली ने कहा कि लड़कों की तरह रहा करो, जवानी में लड़के ही छेड़ते थे...आज वही लोग सैल्यूट करते हैं

आमतौर पर ट्रांसवुमेन(किन्नर) की जिंदगी सरल नहीं होती। बचपन में मां-बाप की नसीहतें और फिर बढ़े होने पर जमानेभर के ताने...इनके जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष होता है। लेकिन कुछ ट्रांसवुमेन इन सबसे जूझते हुए वो कर दिखाती हैं कि जो लोग उनका मजाक उड़ाते थे, वे ही उन्हें सैल्यूट करते हैं। 27 साल की उरूज हुसैन ऐसी ही एक ट्रांसवुमेन हैं। ये नोएडा में स्ट्रीट टेम्परेशन नाम से रेस्त्रां चलाती हैं। यह रेस्त्रां यूथ का अड्डा बन चुका है। लेकिन उरूज के लिए यहां तक का सफर आसान नहीं था। यह अलग है कि आज वे एक सफल एंटरप्रन्योर के अलावा सोशल वर्कर के तौर पर पहचानी जाती हैं। उरूज बताती हैं कि जिस उम्र में उन्हें एहसास हुआ कि उनका जन्म तो लड़के के तौर पर हुआ है, लेकिन फीलिंग वुमेन जैसी है, तो काफी परेशानी हुई। घरवालों ने कहा कि वे लड़कों जैसा बर्ताव करें। हालांकि शुरू में उन्होंने कोशिश की, लेकिन नेचुरल फीलिंग दबा नहीं सकीं। स्कूल में सहपाठी उनका मजाक बनाते थे। लेकिन वे सारी परिस्थितियों से जूझते हुए यहां तक आ पहुंचीं। उरूज ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और फिर 2013 में दिल्ली आकर इंटर्नशिप शुरू की। लेकिन वर्कप्लेस पर भी उनके साथ बुरा बर्ताव होता था। ग्राहक मौका देखकर उन्हें गलत तरीके से छूते थे। अश्लील इशारे करते थे। नौबत यहां तक आई कि उरूज ने घर से निकलना बंद कर दिया। लेकिन कहते हैं कि हिम्मत से बड़ा कुछ नहीं होता। उरूज दोगुने जोश से घर से निकलीं और आज उनकी खुद की पहचान है। पढ़िए इन्हीं की कहानी... 

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Asianet News Hindi
Published : Dec 26 2020, 09:20 PM IST
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उरूज बताती हैं कि वे 22 साल तक लड़कों जैसी बनने की कोशिश करती रहीं। लड़का बनकर ही जॉब की। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। उरूज बिहार के एक छोटे से गांव से बिलांग करती हैं। बहरहाल, 2014 में उन्होंने ट्रांजिशन की सोची और लेजर थेरेपी ट्रीटमेंट कराना शुरू किया। वे एक साल तक वे घर पर ही रहीं। क्योंकि यह हार्मोन ट्रांसफॉर्मेशनल पीरियड था। कई बार उनके मन में मरने के ख्याल तक आए। 2015 से 17 तक दिल्ली के ललित होटल में काम किया। यह ग्रुप एलजीबीटी कम्युनिटी के लिए काम करता है, इसलिए यहां उरूज को कोई परेशानी नहीं हुई। आगे पढ़ें यही कहानी...

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उरूज ने 22 नवंबर 2019 को नोएडा में अपना होटल खोला। शुरुआत में उन्हें काफी परेशानी हुई। उन्हें कोई दुकान तक किराये पर नहीं दे रहा था। तब उनके दोस्त अजय वर्मा मदद को आगे आए। आज वे उनके बिजनेस पार्टनर भी हैं। लॉकडाउन में उरूज को फिर कठिनाई उठानी पड़ी, लेकिन अब फिर से गाड़ी पटरी पर आ रही है। इस रेस्त्रां में 2 शेफ सहित 7 लोगों की टीम काम करती है। आगे पढ़ें लॉकडाउन में नौकरी जाने के बाद मालूम चला कि 'अरे...ये तो लाखों का आदमी है'

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नई दिल्ली. कभी एक सासंद के यहां मामूली सैलरी पर ड्राइवर की नौकरी करने वाला यह शख्स आज महीने में लाख रुपए तक कमा रहा है। ये हैं 35 साल के करण कुमार, जो अपनी पत्नी अमृता के साथ दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम के पास कार में फूड स्टाल लगाते हैं। पति का आइडिया और पत्नी के बने राजमा-चावल काम कर आए। करण और अमृता रोज सुबह फरीदाबाद से तालकटोरा स्टेडियम आते हैं। इन्होंने एक पोस्टर बनवा रखा है। साइड में गाड़ी खड़ी करके पोस्टर कार पर टांगते हैं और गाड़ी की डिग्गी में अपना रेस्त्रा ओपन कर लेते हैं। करण कहते हैं कि लॉकडाउन में नौकरी जाने के बाद बेहद तनाव में था। लेकिन अब सब ठीक हो गया। वे कहते हैं कि अब किसी की नौकरी नहीं करना। संभव हुआ, तो आगे चलकर अपना बड़ा-सा रेस्त्रां खोलेंगे। आगे पढ़ें इन्हीं की कहानी...

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करण जिस सांसद की गाड़ी चलाते थे, उन्होंने सरकारी बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में इनके रहने का इंतजाम किया था। चूंकि यह जॉब प्राइवेट थी, इसलिए लॉकडाउन में उन्हें निकाल दिया गया। इस बीच उन्हें अपना सामान किसी की मदद से एक गैरेज में रखना पड़ा और रात यहां-वहां गुजारनी पड़ीं। करीब दो महीने इसी कार में सोए। कभी गुरुद्वारों में लंगर खाया, तो कभी किसी से मदद ली। आगे पढ़ें इन्हीं की कहानी...

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करण बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने दूसरी नौकरी पाने खूब हाथ-पैर मारे, लेकिन कहीं बात नहीं बनी। फिर घर-गृहस्थी का सामान बेचकर यह काम शुरू किया। पहले दिन अमृता ने तीन किलो चावल, आधा किलो राजमा और आधा किलो छोले बनाया था। रास्ते में कई जगह रुक-रुककर खाना बेचने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। बाद में सारा खाना भिखारियों को खिला दिया। आगे पढ़ें इन्हीं की कहानी...
 

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लेकिन धीरे-धीरे लोग आने लगे। उन्हें अमृता के बनाए राजमा-चावल और छोले अच्छे लगे। आज अमृता रोज 8 किलो चावल, ढाई किलो राजमा, 2 किलो छोले, 3 किलो कढ़ी और 5 किलो रायता बनाकर बेचती हैं। इनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि ये सुबह 11 बजे गाड़ी लेकर दुकान खोलते हैं और दोपहर 2 बजे तक सारा खाना खत्म हो जाता है।  आगे पढ़ें इन्हीं की कहानी...

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आज इनकी दुकान पर रोज 100 लोग आते हैं। ये हाफ प्लेट 30 रुपए, जबकि फुल 50 रुपए में बेचते हैं। इस तरह महीने में ये लाख रुपए तक का सामान बेच देते हैं। इसमें से 60-70 प्रतिशत तक इनका मुनाफ होता है। अमृता को इसके लिए तड़के 3 बजे उठना पड़ता है।

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