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अफगानिस्तान में Taliban: इन PHOTOS को देखकर ही आप कांप उठेंगे; सोचिए वहां के लोग कैसे जिंदगी जी रहे होंगे
काबुल. अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो यानी उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन (North Atlantic Treaty Organization) की वापसी के साथ ही तालिबान क्रूरता की हदें पार करता जा रहा है। ये तस्वीरें अफगानिस्तान में फैले डर को दिखाती हैं। हर कंधे पर बंदूक हैं। तालिबान धीरे-धीरे हथियारों के बूते अफगानिस्तान पर कब्जा जमाता जा रहा है। इस बीच बता दें कि संयुक्त राष्ट्र(UN) के दूत देबोरा एलयॉन्स ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और इस मामले में इस्तक्षेप की मांग की है। वहीं, तालिबान से तत्काल शहरों पर हमले रोकने की मांग करते हुए सुरक्षा परिषद से अनुरोध किया है। बता दें कि तालिबान के आगे अफगानिस्तान की सेना टिक नहीं पा रही है। अकेले शुक्रवार को उसने दो बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया।
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तालिबान ने शुक्रवार को काबुल में अफगानिस्तान सरकार के मीडिया सूचना केंद्र के डायरेक्टर को बेरहमी से मार दिया। इसके बाद अफगान-ईरान सीमा पर स्थित जरांज पर कब्जा कर लिया।
(जरांज में इस तरह हथियार लूटे जा रहे, हर तरफ तालिबानी लड़ाके दिख रहे हैं)
बता दें कि जरांज अफगानिस्तान के पश्चिमी प्रांतों में से एक निम्रूज की राजधानी है। अफगान नेशनल आर्मी की 215वीं कोर पड़ोसी हेलमंद प्रांत की राजधानी जरांज और लश्कर गाह दोनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही थी। लेकिन जैसे ही उसका ध्यान जरांज से थोड़ा हटा, तालिबान ने उस पर कब्जा कर लिया।
(शहर में हर तरफ लाशों को ढेर नजर आ रहे हैं)
पूरा निम्रूज शहर बर्बादी की राह पर चल पड़ा है। तालिबान के हमले के बाद हर जगह खंडहर नजर आ रहे हैं। निम्रूज के डिप्टी गवर्नर रोहगुल खैरजाद और प्रांतीय परिषद के प्रमुख हाजी बाज मोहम्मद नासर ने मीडिया को बताया कि शहर के चप्पे-चप्पे पर तालिबानी लड़ाकों को कब्जा हो गया है।
(तालिबान ने किया सरकारी सम्पत्ति पर कब्जा)
निम्रूज की आबादी करीब 1.60 लाख है। तालिबान का इस शहर पर कब्जा उसकी एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। तालिबान के हमले के बाद लोग घरों में जा छुपे, जबकि सरकारी कर्मचारी शहर छोड़कर भाग निकले।
(ये तस्वीरें दिखाती हैं कि अफगानिस्तान में कैसे लोग जी रहे हैं)
संयुक्त राष्ट्र(UN) के दूत देबोरा एलयॉन्स अफगानिस्तान में चल रहे युद्ध की तुलना 1990 में हुए बोस्निया युद्ध से करते हैं। तब बोस्निया की राजधानी सरजेवो पूरी तरह तबाह हो गई थी।
(शहर को कब्जे में लेते तालिबानी लड़ाके)
माना जा रहा है कि आतंकी संगठन अलकायदा और इस्लामिक स्टेट समूह सहित करीब 20 आतंकवादी संगठनों से जुड़े 10000 से अधिक विदेशी लड़ाके तालिबान की मदद कर रहे हैं। जब तक अमेरिका अफगानिस्तान में था, तब तक तालिबान चुप बैठा था।
अमेरिकी सेना के जाते ही तालिबान आक्रामक हो उठा। हालांकि अमेरिका के पीछे हटने से पहले ही उसने अफगानिस्तान में हमले तेज कर दिए थे। तालिबान अपनी क्रूरता के कुख्यात हैं। इस वजह से लोग भी उनके खिलाफ नहीं बोलते।
माना जाता है कि तालिबान और विदेशी आतंकी समूहों की मुख्य कमाई ड्रग्स से होती है। वे प्राकृतिक संसाधनों को लूटकर भी पैसा बनाते हैं। अफगानिस्तानी सेना तालिबान का मुकाबला नहीं कर पा रही है।