बादलों में 'साउंड वेव' से तेज बारिश कराने का प्रयोग कर रहा चीन, इससे बढ़ेगा एक खतरा
दुनियाभर में कोरोना वायरस फैलाने के लिए दोषी माना जा रहा चीन अब बादलों में लो-फ्रीक्वसेंसी साउंड वेव यानी ध्वनी तरंग (Wave) के जरिये अच्छी बारिश कराने की जुगाड़ में लगा है। कुछ साल पहले भारत कृत्रिम बारिश कराने का प्रयोग कर चुका है। बहरहाल, चीन के बीजिंग स्थित सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस संबंध में एक प्रयोग किया है। उन्होंने बादलों में 50 हर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी के साउंड वेव को 160 डेसीबल के स्तर पर इस्तेमाल किया। इससे अच्छी बारिश की उम्मीद जागी। डेसीबल एक लघुगणक की इकाई है। इसे प्राय: शक्ति और तीव्रता आदि भौतिक राशियों में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस प्रयोग से एक खतरा भी है। अगर चीन इसमें पूरी तरह सफल रहा, तो वो जहां चाहेगा, वहां भारी बारिश कराकर तबाही ला सकता है।

चीन की तकनीक के बारे में डेली मेली ने एक रिपोर्ट पब्लिश की है। यह स्टडी प्रो. वांग गुआंगकिआन ने की है। उन्होंने बताया कि साउंड वेव से बादल उत्तेजित हो जाते हैं। उनमें कंपन बढ़ जाता है। इससे अच्छी बारिश की संभावना बढ़ जाती है।
वांग ने बताया कि इन सांउड वेव को बादलों में छोड़ने एक खास तरह का यंत्र बनाया गया है। जैसे ही बादलों में साउंड वेव छोड़े गए, बूंदे बढ़ गईं। इसका फायदा सूखाग्रस्त इलाकों में किया जा सकता है।
इस तकनीक का प्रयोग तिब्बत के पठार पर किया गया। इससे 17 प्रतिशत तक बारिश बढ़ गई। बता दें कि चीन के वायुमंडल में पानी प्रचुरता में है। लेकिन यह 20 प्रतिशत तक ही बारिश के रूप में जमीन पर आ पाता है।
Scientia Sinica Technologica नामक जर्नल में यह रिसर्च प्रकाशित हुई है। इसमें चीनी वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस तकनीक से केमिकल पॉल्युशन नहीं होता।
वैसे कृत्रिम बारिश कराने का पहला प्रयोग जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, ऑस्ट्रेलिया में किया गया था। कृत्रिम वर्षा को क्लाउड-सीडिंग भी कहा जाता है। इसमें सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में कुछ साल पहले इसका प्रयोग हुआ था। लेकिन चीन अच्छी बारिश पर फोकस कर रहा है।
(खबर को प्रभावी दिखाने सांकेतिक तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है)
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