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कहानी कोहिनूर की: कैसे ब्रिटेन की महारानी के ताज पर सजा दुनिया का सबसे कीमती हीरा, जानें अब किसे मिलेगा?
Journey of Kohinoor Diamond : ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth II) का गुरुवार को निधन हो गया। वे 96 साल की थीं। उन्होंने स्कॉटलैंड के बाल्मोरल कैसल में अंतिम सांस ली। ब्रिटेन की महरानी की सबसे कीमती चीजों में भारत का बेशकीमती हीरा कोहिनूर भी शामिल है। महारानी के मुकुट पर सजा यह हीरा आखिर कैसे भारत से ब्रिटेन पहुंचा, इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के निधन के बाद अब कोहिनूर किसे मिलेगा?आइए जानते हैं दुनिया के सबसे बेशकीमती हीरे कोहिनूर की कहानी।
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गोलकुंडा की खदानों में मिला था कोहिनूर :
कोहिनूर को लेकर कई इतिहासकार मानते हैं कि यह हीरा आज से करीब 5000 साल पहले महाभारत काल में मिला था और ये स्मयंतक मणि है। हालांकि, कुछ लोग कहते हैं कि ये आंध्र प्रदेश में स्थित गोलकुंडा की खदानों से मिला था। वैसे, इतिहास में इस हीरे की पहली जानकारी बाबर की आत्मकथा 'बाबरनामा' में मिलती है।
जिसके पास ताकत, कोहिनूर उसी का :
बाबरनामा में बताया गया है कि किस तरह उसके बेटे हुमायूं ने उसे यह बेशकीमती हीरा भेंट किया था। जब हुमायूं ने इसकी कीमत आंकनी चाही तो बाबर ने उससे कहा कि इतने बेशकीमती हीरे की कीमत एक लट्ठ होती है, जिसके हाथ में भारी लट्ठ होगा उसी के हाथ में यह हीरा होगा। यानी जिसके पास ताकत होगी, कोहिनूर उसी का होगा।
शाहजहां ने अपने तख्त में मढ़वाया :
बाबरनामा में लिखा गया है कि पानीपत की लड़ाई में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर हुमायूं ने आगरा किले की सारी दौलत अपने कब्जे में ले ली। यहां ग्वालियर के राजा ने हुमायूं को एक बहुत बड़ा हीरा भेंट किया। बाद में हुमायूं ने उसे अपने पिता बाबर को भेंट कर दिया। 17वीं शताब्दी में शाहजहां ने अपने लिए एक विशेष सिंहासन बनवाया। इस सिंहासन का नाम तख्त-ए-मुरस्सा था। बाद में यह 'मयूर सिंहासन' के नाम से जाना जाने लगा। इस तरह शाहजहां ने कोहिनूर को इसी में मढ़वा दिया।
1739 में नादिरशाह के पास पहुंचा कोहिनूर :
साल 1739 में ईरान के शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। नादिरशाह के सिपाही पूरी दिल्ली में कत्लेआम मचा रहे थे। इसे रोकने के लिए मुगल सुल्तान मुहम्मद शाह ने नादिर शाह को कई जवाहरात भेंट किए और इन्हीं में से एक था 793 कैरेट का बेशकीमती हीरा। नादिर शाह ने इसका नाम कोह-ए-नूर रखा, जिसका मतलब रोशन का पहाड़ है।
नादिर शाह से होता हुआ रणजीत सिंह के पास पहुंचा :
नादिर शाह के बाद यह हीरा अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी के पास आ गया। दुर्रानी की मौत के बाद यह उनके वंशज शाह-शुजा के पास पहुंच गया। शाह शुजा को बाद में कश्मीर में कैद कर लिया गया। इसके बाद शाह शुजा कोहिनूर को लेकर लाहौर भाग गया। कहा जाता है कि शाह शुजा जब सिखों की हिरासत में लाहौर जेल में था तो महाराजा रणजीत सिंह ने उसके परिवार को तब तक भूखा प्यासा रखा जब तक कि शुजा ने कोहिनूर हीरा रणजीत सिंह के हवाले नहीं कर दिया।
रणजीत सिंह को हरा कर अंग्रेजों ने छीन लिया :
बाद में अंग्रेजों ने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह को हराकर यह हीरा अपने कब्जे में ले लिया। कहते हैं कि भारत का वायसराय लार्ड डलहौजी इसे अपने साथ लंदन ले गया। वहां उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टरों को कोहिनूर भेंट में दे दिया।
इस तरह ब्रिटेन की महारानी के ताज में सजा कोहिनूर :
कंपनी के डायरेक्टरों ने सोचा कि यह हीरा बेशकीमती है और इसका कंपन के लिए कोई इस्तेमाल नहीं है। ऐसे में इसे क्यों न ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को भेंट कर दिया जाए। इसके बाद 29 मार्च, 1849 को ईस्ट इंडिया कंपनी के डायरेक्टरों ने कोहिनूर को महारानी विक्टोरिया को भेंट कर दिया। बाद में रानी विक्टोरिया ने इसे अपने ताज में जड़वा लिया। बाद में यह ताज क्वीन एलिजाबेथ के पास आ गया।
क्वीन एलिजाबेथ की मौत के बाद किसे मिलेगा?
क्वीन एलिजाबेथ के ताज पर 2867 हीरे जड़े हुए हैं, लेकिन उनमें सबसे बड़ा और कीमती कोहिनूर ही है। क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद हर किसी के मन में सवाल है कि अब ये किसे मिलेगा। दरअसल, प्रिंस चार्ल्स के किंग बनने के बाद यह ताज उनकी पत्नी कैमिला पार्कर को मिलेगा। इस तरह कोहिनूर भी अब उनके पास चला जाएगा।
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