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जानिए बकरीद पर क्यों दी जाती है कुर्बानी, हज के दौरान मक्का में शैतान को क्यों मारा जाता है पत्थर
मक्का. कोरोना वायरस के बीच दुनियाभर में शुक्रवार और शनिवार को ईद उल जुहा मनाया गया। इसी के साथ सऊदी अरब के मक्का में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हज के दौरान शैतान को पत्थर मारने की रस्म पूरी की। कोरोना के चलते सऊदी अरब में तीन महीने से मक्का मदीना भी बंद था। हाल ही में सऊदी सरकार ने इसे अपने देश में मौजूद मुस्लिम समुदाय के लोगों को हज की अनुमति दी। लेकिन काफी सीमित लोगों को ही हज की अनुमति दी गई। हज के दौरान शुक्रवार को शैतान को पत्थर मारने की तीन दिन चलने वाली रस्म भी शुरू हो गई। इस दौरान लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग के साथ इस रस्म को पूरा किया, आईए जानते हैं कि हज में शैतान को पत्थर क्यों मारा जाता है?

सऊदी अरब के मक्का में हज की यात्रा को शैतान को पत्थर मारने के बाद ही पूरा माना जाता है। ईदु-उल- जुहा के पर्व पर शैतान को पत्थर की रस्म तीन दिन तक चलती है। इसमें शैतान को पत्थर मारने के बाद मुस्लिम लोग अपने सिर मुंडवाते हैं। हज यात्रा के दौरान तीन बड़े खंबों को पत्थर मारे जाते हैं। इन्हें ही शैतान माना जाता है। हर साल इस रस्म को पूरा करने के लिए लाखों लोग उमड़ते हैं। लेकिन इस बार कोरोना के चलते काफी सीमित लोग ही हज करने पहुंचे।
हज पर मक्का में रमीजमारात में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के पीछे एक वजह है। बताया जाता है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से कुर्बानी मांगी थी। अल्लाह ने हजरत से सबसे पसंदीदा चीज की कुर्बानी देने को कहा था। हजरत को अपना बेटा इस्माइल बहुत प्यारा था। यह बेटा उन्हें बुढ़ापे में हुआ था।
लेकिन इन सबके बावजूद हजरत अपने बेटे को लेकर कुर्बानी के लिए ले जाने का फैसला किया। लेकिन जब वे रास्ते में जा रहे थे, तो रास्ते में एक शैतान ने उन्हें रोक लिया। शैतान ने इब्राहिम से सवाल किया कि वह अपने बेटे की कुर्बानी दे देगा तो उसकी देखभाल कौन करेगा। यह सुनकर इब्राहिम सोच में पड़ गए। लेकिन अल्लाह को किया वादा निभाने के लिए वे फिर आगे बढ़ गए।
हजरत नहीं चाहते थे कि उनकी भावनाएं या बेटे के प्रति प्रेम कुर्बानी के बीच में आए। इसलिए उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली। इसके बाद उन्होंने कुर्बानी दी।
लेकिन जब हजरत ने आंख खोलकर देखा तो वे हैरान रह गए, उन्होंने देखा कि उनका बेटा जिंदा खड़ा था। वहीं, कुर्बानी की जगह एक मेमना पड़ा था। तभी से इस ईद पर मेमने या बकरे की कुर्बानी दी जाने लगी।
वहीं, कुर्बानी के बाद रमीजमारात में शैतान को पत्थर मारे जाने लगे। शैतान को दोषी माना जाता है कि उसने हजरत को बरगलाने की कोशिश की थी। तभी ये हर साल यह रस्म निभाई जाती है।
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