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ना लॉकडाउन, ना प्रतिबंध...हॉन्ग कॉन्ग-सिंगापुर समेत इन 4 देशों ने उठाए ये 6 कदम और कोरोना को दी मात
नई दिल्ली. कोरोना वायरस का कहर दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में है। अब तक 2.87 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। 42 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। चीन, इटली, स्पेन, अमेरिका और ब्रिटेन में कोरोना वायरस कहर बनकर टूटा है। वहीं, भारत में भी संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। भारत में अब तक 70827 केस सामने आ चुके हैं। यहां 2294 लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में लॉकडाउन को करीब 50 दिन बीत गए हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में भारत समेत दुनिया के तमाम देशों को उन देशों से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने कोरोना के संकट को पहचानते हुए तुरंत एक्शन में आकर कड़े कदम उठाए और उसे कुछ ही मामलों तक सीमित कर दिया। जहां एक ओर अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और जर्मनी जैसे विकसित देश आज कोरोना के सामने हार मानते नजर आ रहे हैं, वहीं, सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देश नजीर पेश कर रहे हैं। इन देशों में लॉकडाउन नहीं लगाया गया। यहां बाजार दफ्तर सब खुले हैं, लोग घूम रहे हैं। आईए जानते हैं कि इन देशों ने क्या कदम उठाए और बाकी देशों को इनसे क्या सीख लेनी चाहिए।
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1- कोरोना के प्रति दिखाई गंभीरता, तेजी से आए हरकत में:
अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और स्पेन में कोरोना के तेजी से फैलने की एक वजह यह है कि इन देशों ने महामारी के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। कोरोना का पहला मामला दिसंबर में सामने आया था। 31 दिसंबर को WHO ने इसकी जानकारी दी थी। अमेरिका, ब्रिटेन के पास चीन से दो महीने का ज्यादा वक्त था। लेकिन इन देशों ने कोरोना के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। वहीं, इन देशों की तुलना में चीन के पड़ोसी देश सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग और ताइवान काफी सक्रिय नजर आए।
इन देशों ने कोरोना की गंभीरता को समझा और तुरंत कदम उठाए। इसका नतीजा आज सामने है। चीन के नजदीक होने के बावजूद इन देशों में काफी कम मामले सामने आए हैं। WHO से जानकारी मिलने के 3 दिन के भीतर ही सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग और ताइवान ने अपनी सीमाओं में स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी। ताइवान में वुहान से आने वाले लोगों का टेस्ट कर उन्हें अलग रखा गया।
2- टेस्ट को आसान बनाया:
भारत, अमेरिका, इटली और ब्रिटेन में अभी भी टेस्ट करने की आसान प्रक्रिया नहीं मिली है। अमेरिका-भारत जैसे बड़े देश में अब जाकर कहीं रोजाना टेस्टों की संख्या में इजाफा हुआ है। अमेरिका और ब्रिटेन में भी जांच की गति काफी धीमी रही, इस वजह से यहां तेजी से संक्रमण फैला। वहीं, 5 करोड़ की आबादी वाले साउथ कोरिया ने जांच की प्रक्रिया को आसान बनाया। यहां शुरुआत में करीब 2 लाख से ज्यादा लोगों पर संक्रमण का खतरा था। यहां अब तक 680890 लोगों की जांच की जा चुकी है। यानी हर 10 लाख लोगों पर 13690। वहीं, भारत में यह संख्या 1275 है। साउथ कोरिया में जांच प्रक्रिया को सभी के लिए फ्री में उपलब्ध कराया गया।
3- तेजी से जांच कर संक्रमित लोगों का पता लगाना, उन्हें अलग करना
द कोरिया और सिंगापुर ने संक्रमित लोगों को अलग करने और उनके संपर्कों को खोजकर उनकी जांच करने में अपना पूरा सिस्टम लगा दिया। साउथ कोरिया में डागू शहर में एक चर्च कोरोना का केंद्र था। यहां आने वाले श्रद्धालुओं में यह तेजी से फैला। केयोंग ने सबसे पहले इन्हीं 2,12,000 लोगों की जानकारी इकट्ठा की। इनका पता लगाया गया। इनकी जांच के बाद इन लोगों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता कर इनकी जांच की गई। कोरिया में सर्वेलांस कैमरा, मोबाइल, क्रेडिट कार्ड ट्रांजेक्शन और मैप के जरिए संबंधित लोगों को खोजा गया। इस दौरान कोरिया में ना तो लॉकडाउन किया गया और ना ही कोई दफ्तर बंद हुए।
वहीं सिंगापुर में लोगों को सीसीटीवी कैमरों की मदद से संक्रमित लोगों का पता लगाया गया। पहले इनका टेस्ट किया गया, फिर उन्हें अकेले रहने के लिए कहा गया।
हॉन्गकॉन्ग में दूसरे देशों से आने वाले लोगों को इलेक्ट्रिक ब्रेसलेट पहनाया गया, इससे लोगों के मूवमेंट का पता लगाया गया। अगर कोई इसे बंद करता है तो सरकार को तुरंत पता चल जाता है। अगर कोई व्यक्ति इसे पहने बाहर घूमता है, तो लोग प्रशासन से इसकी शिकायत कर देते हैं। सिंगापुर में नियम तोड़ने वालों से जुर्माना भी वसूला गया।
4- सोशल डिस्टेंसिंग
कोरोना संक्रमण का अभी तक किसी देश ने कोई टीका या इलाज नहीं खोज पाया। ऐसे में संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को ही सबसे अहम और कारगार तरीका माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने संबोधनों में जनता से लगातार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए कह रहे हैं। लोग घर से बाहर ना निकलें इसलिए यूरोप के देशों, अमेरिका और भारत में लॉकडाउन लगाया गया।
वहीं, सिंगापुर, हॉन्ग कॉन्ग और साउथ कोरिया में कोई लॉकडाउन नहीं लगाया गया। सिंगापुर में स्कूल खुले हैं, लेकिन लोगों के इकट्ठा होने पर रोक है। हॉन्गकॉन्ग में स्कूल बंद हैं, लोगों से घर पर रहकर काम करने के लिए कहा गया है। हालांकि, यहां रेस्तरां और बार सब खुले हैं। जरूरत पड़ने पर लोग काम पर जा रहे हैं। लेकिन लोग खुद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। इसके अलावा हमेशा मास्क पहने दिखते हैं। गैर जरूरी चीजों को छूने से बचते हैं। इसके अलावा जिस क्षेत्र में संक्रमण होता है, वहां खुद ही जाना बंद कर देते हैं। लिफ्ट, मेट्रो की बटनों को टिश्यू पेपर से छूते हैं। इस्तेमाल के बाद इसे फेंक देते हैं।
5- लोगों को सही जानकारी देना
किसी भी जंग को जीतने के लिए जरूरी है कि जनता का साथ मिले। जनता के सहयोग के लिए सरकारों को भी पारदर्शिता लाने की जरूरत होती है। चीन ने वुहान में सबसे पहले कोरोना की जानकारी देने वाले डॉक्टर को सजा दी, वहीं, अमेरिका ने लगातार अपने बयान बदले। लोगों को सही जानकारी नहीं दी गई। अब स्थिति हाथ से निकल गई। वहीं, सिंगापुर में सही जानकारी दी। प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की कि घबराने की जरूरत नहीं है। अतिरिक्त सामान ना खरीदें। वहीं, हॉन्गकॉन्ग में पारदर्शिता डैशबोर्ड बनाया गया, जहां मैप पर संक्रमित लोगों की जानकारी मिलती रही।
6- लोगों का सहयोग
हॉन्ग कॉन्ग और सिंगापुर जैसे देशों में लोगों ने सरकार पर भरोसा किया। सरकार के आदेशों का पालन किया। हॉन्ग कॉन्ग में तो लोगों ने लूनर न्यू इयर जैसे कार्यक्रमों में भी हिस्सा नहीं लिया और घर पर वक्त बिताया। अब भी जो लोग घर से बाहर निकलते हैं, वे सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर रहे हैं। मास्क, सैनिटाइजर के इस्तेमाल को आदत में डाल लिया है।