सार

बढ़ती उम्र को टाला नहीं जा सकता, इसलिए इसे खूबसूरती के साथ कैसे अपनाया जाए, एक नयी पुस्तक लोगों को इसके तरीके बताती है
 

नई दिल्ली: बढ़ती उम्र को टाला नहीं जा सकता, इसलिए इसे खूबसूरती के साथ कैसे अपनाया जाए, एक नयी पुस्तक लोगों को इसके तरीके बताती है। इस पुस्तक में बढ़ती उम्र से जुड़ी तमाम उन धारणाओं को खत्म करने का प्रयास किया गया है जो वृद्धावस्था को केवल अकेलेपन, कष्ट, अनुत्पादकता और निर्भरता से जोड़ कर देखती हैं।

दिल्ली के एम्स में वृद्ध चिकित्सा विभाग के प्राध्यापक डॉक्टर प्रसून चटर्जी अपनी पुस्तक “हेल्थ एंड वेल बींग इन लेट लाइफ : पर्सपेक्टिव्स एंड नरेटिव्स फ्रॉम इंडिया’’ में सक्रिय वयस्कता से जीवन के अंतिम चरण तक कैसे बढ़ें, इसके ब्योरे उपलब्ध कराते हैं।

किताब की कई दिलचस्प कहानियां

यह किताब ऐसे किस्से-कहानियों से भरपूर है जिसे कोई भी बुजुर्ग या जिन परिवारों में बुजुर्ग रहते हैं, वे आसानी से खुद से जोड़ कर देख सकते हैं। किताब की कई दिलचस्प कहानियों में से एक कहानी 80 साल की महिला और उसकी 45 साल की तलाकशुदा बेटी के बीच के खूबसूरत रिश्ते की है जो अपनी मां के जीवन के अंतिम क्षणों में उसे शांत एवं खूबसूरत बने रहने में मदद करती है।

इसमें कई गुमनाम नायकों की प्रेरणादायक कहानियां भी हैं जो शारीरिक एवं सामाजिक चुनौतियों के बावजूद अपने जीवन का पूरा आनंद ले रहे हैं और समाज में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। इस पुस्तक में 10 पाठ हैं जिनके जरिए भूलने की आदत, कब्ज की समस्या, कैंसर और स्ट्रोक जैसे वृद्धावस्था के तमाम पहलुओं पर बात की गई है।

किताब में कई तरह के सलाह भी शामिल

चटर्जी ने उन संदेहों को भी मिटाने का प्रयास किया है कि वृद्धावस्था ‘सन्यास’ की धारणा के समान है और ऐसे किस्से-कहानियों को बयां किया हैं जहां यौन स्वास्थ्य का स्वस्थ रहने और जीवन की गुणवत्ता से सीधा संबंध मालूम पड़ता है। उन्होंने चिकित्सकों के साथ ही देखभाल करने वालों को किताब में यह सलाह भी दी है कि बढ़ती उम्र में उन्हें कब और किन चीजों का इलाज कराना चाहिए और कब नहीं।

इसके अलावा इस किताब में चटर्जी ने पूरा एक पाठ कब्ज की समस्या पर केंद्रित रखा है। साथ ही उन्होंने बुजुर्गों के यौन स्वास्थ्य, डिमेंशिया (मनोभ्रंश) आदि पर भी बात की है।

(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

(फाइल फोटो)