सार
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ था। वह कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए करने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने वंदे मातरम् गीत लिखा था। यह गीत आजादी के लिए लड़ने वालों के दिलों में जोश भर देता था।
नई दिल्ली। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में लेखकों का अहम योगदान था। लेखकों ने साहित्य के जरिये भारतीयों का स्वाभिमान जगाया और उन्हें गुलामी की जंजीर तोड़ने के लिए उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। भारत की राष्ट्रीय चेतना के निर्माण को आकार देने वाले अग्रणी लेखकों में से एक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय थे। उन्होंने वंदे मातरम् गीत लिखा था जो आजादी के लिए लड़ने वालों के दिलों में जोश भर देता था।
बंकिम चंद्र और उनका प्रसिद्ध उपन्यास अन्नादमठ आधुनिक बंगाली साहित्यिक पुनरुत्थान में सबसे आगे थे। 18वीं शताब्दी के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ सन्यासी फकीर विद्रोह हुआ था। इसी विषय पर 1882 में प्रकाशित आनंदमठ लिखा गया था। उन्होंने बंगाल पुनर्जागरण के साथ-साथ राष्ट्रवादी उत्थान को भी प्रेरित किया। उनके लेखने से प्रेरणा लेकर चरमपंथी राष्ट्रवादी पार्टी अनुशीलन समिति का गठन किया था। इसमें 20वीं शताब्दी की शुरुआत के अधिकांश बंगाली क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 1838 में पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातक की पढ़ाई की थी। उन्होंने कानून में स्नातक किया था। वह कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए करने वाले पहले भारतीय थे। इसके बाद वह जेसोर में जिला मजिस्ट्रेट बने।
कविता लिखने से हुई साहित्यिक जीवन की शुरुआत
बंकिम के साहित्यिक जीवन की शुरुआत कविता लिखने से हुई। उन्होंने दुर्गेश नंदिनी, कपाल कुंडला और राजमोहन की पत्नी जैसे कई उपन्यास लिखे। बंकिम चंद्र उग्रवादी राष्ट्रवाद के प्रति सहानुभूति रखते थे। वह अरबिंदो घोष जैसे उग्रवादी राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा थे। ब्रिटिश सरकार की नौकरी करने के बाद भी वह आजादी की लड़ाई को समर्थन देते थे। इसके चलते उन्हें नौकरी में प्रमोशन नहीं मिला।
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अंग्रेजों को पसंद नहीं था बंकिम चंद्र का लेखन
बंकिम चंद्र नौकरी के साथ ही लेखन भी करते थे। अंग्रेजों को यह पसंद नहीं था। अंग्रेज अधिकारी उन्हें पेरशान करते थे। उनके काम में बाधा डालते थे। इसके बाद भी वह कभी अंग्रेजों के सामने नहीं झुके। बंकिम चंद्र 53 की उम्र में सेवानिवृत्त हो गए थे। इसके बाद उनकी मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। इसके बाद वह पूरी तरह आजादी की लड़ाई में जुट गए। उन्होंने संस्कृत में वंदे मातरम् गीत लिखा। यह जल्द ही स्वतंत्रता सेनानियों के बीच प्रसिद्ध हो गया। 1896 में पहली बार इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था।
बंकिम चंद्र को रविंद्र नाथ टैगोर ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा के लिए सब्यसाची कहा था। बंकिम चंद्रन को उनकी राजनीति, दर्शन और वंदे मातरम सहित कार्यों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। उनपर हिंदूत्ववादी होने और मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगा था।