सार
मां को समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करे, जिससे उसकी बच्ची फिर से वापस आ सके। वह बिलख रही थी। बेबस मां की आंखों से आंसू बह रहे थे। आठ घंटे तक वह स्टेशन पर ही बेसुध बच्ची को सीने से लगाए पड़ी रही।
बीकानेर : झारखंड (Jharkhand) के बीकानेर (Bikaner) में एक कलेजा हिला देने वाली खबर सामने आ रही है। यहां के रेलवे स्टेशन पर भूख-प्यास के एक डेढ़ साल की बच्ची की मौत उसकी मां के ही गोद में हो गई। मां बेटी को गोदी में लिए कलेजे से लिपटी रही लेकिन बेटी की सांस कब थम गई, इसका अंदाजा तक उसे नहीं लगा। काफी देर बाद जब मासूम में कोई हलचल नहीं हुई तो मां तड़प उठी। वो होश हवास खो बैठी। मृत बच्ची को ही दूध पिला रही थी कि किसी तरह उसकी जिंदगी वापस आ जाए। उसकी धड़कने चल जाएं। बार-बार वह कान लगाकर उसकी धड़कनें सुनना चाहती थी।
बच्ची को भूखा देख मां बेचैन हो उठी
सुकूरमुनी जो कि राज्य के चाईबासा आदिवासी इलाके की रहने वाली है, वह गुवाहाटी (Guwahati) ट्रेन में बैठ सुबह करीब 6 बजे यहां पहुंची। गर्मी इतनी थी कि वह और उसकी बेटी भूख-प्यास से परेशान थे। उन्हें न खाने को कुछ मिला था और ना ही पीने को। पास में पैसे भी नहीं थे, जिससे कुछ खरीदकर बच्ची को खिला सके। स्टेशन पर उतरकर वह पुल क्रॉस कर किसी तरह सार्वजनिक स्टैंड पर पहुंची। वहां उसे पानी तो मिल गया, जिससे उसकी और मासूम की प्यास बुझ गई लेकिन खाने को कुछ भी न मिल सका। इसी बीच वह खाने को कुछ खोजती रही और उसकी बच्ची की धड़कने कब रुक गईं, उसको पता ही नहीं चला।
आठ घंटे तक बेटी से लिपटी रही मां
वह बच्ची को गोदी में लिए इधर-उधर जा रही थी, प्लेटफॉर्म नंबर एक पर वह आस भरी नजरों से देख रही थी लेकिन अचानक उसका ध्यान अपनी बेटी पर पड़ा, जिसमें कोई हरकत ही नहीं हो रही थी। सुकूमुनी ने पहले उसे पुकारा, फिर पुचकारा, लेकिन जब वह कुछ नहीं बोली तो वह उसे जोर-जोर से हिलाने लगी कि उसकी बच्ची उठ जाए। वह जोर-जोर से रोने लगी अपनी डेढ़ साल की बच्ची को बार-बार सहला रही थी। उसका माथा चूम रही थी, उसे सीने से लगा रही थी, उसकी धड़कने सुन रही थी।
हर कोई रो पड़ा
स्टेशन पर जिसने भी यह देखा वह रो पड़ा। लोगों ने उसे समझाया कि बेटी अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन मां यह मानने को तैयार नहीं थी। वह बार-बार बेटी की धड़कने कान के पास लगाकर सुन रही थी। कभी उसे दूध पिलाती तो कभी माथे पर हाथ फेरती। आठ घंटे तक वह उसे कलेजे से लगाए रखी और रोती रही, बिलखती रही। वह पहली बार बीकानेर आई थी। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। किससे मदद मांगे, कहां जाए वह समझ नहीं पा रही थी। इसी दौरान कुछ समाजसेवियों को इसकी जानकारी लगी तो उन्होंने बच्ची का अंतिम संस्कार कराया और मां की मदद की।
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