सार

झारखंड (Jharkhand) की माधवी पाल प्रदेश की पहली मूर्ति बनाने वाली महिला हैं। वे अपने दिवंगत पति के मूर्ति निर्माण के व्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं। 9 साल पहले पति के निधन के बाद उनका ये व्यवसाय संभाला। अब ये काम तब तक करती रहूंगी, जब तक मैं जिंदा हूं। उन्होंने आगे कहा कि इस व्यवसाय को जारी रखने में कई चुनौतियां थीं। मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्योंकि वही परिवार में एकमात्र कमाने वाली थीं।

रांची। झारखंड (Jharkhand) की पहली महिला मूर्तिकार माधवी पाल की संघर्षपूर्ण कहानी प्रेरणादायक है। उन्होंने मूर्तियां बनाकर ना सिर्फ अपने परिवार की रोजी रोटी चलाई, बल्कि अब वे 7 से 8 सदस्यों को भी रोजगार दे रही हैं। इसी व्यवसाय से उन्होंने दोनों बेटा-बेटी को पढ़ाया। आज वे बेंगलोर (Bangalore) में इंजीनियर हैं। ये भी खास है कि माधवी ने मूर्ति बनाना तब सीखा, जब 2012 में उनके पति बाबू पाल की मौत हो गई। पति प्रसिद्ध मूर्तिकार थे।

माधवी बताती हैं कि पति की मौत के बाद उनके सामने परिवार को पालने की जिम्मेदारी थी। घर में माहौल बहुत निराशाजनक था, क्योंकि परिवार में इकलौते कमाने वाले पति का साथ छूट गया था। मेरे दो बच्चे हैं, इसलिए उनके बाद मुझ पर ये जिम्मेदारी आ गई। मैंने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने का फैसला किया। क्योंकि यही एकमात्र कमाने-खाने का जरिया था। 

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माधवी ने पति के काम को आगे बढ़ाया
माधवी कहती हैं कि मैंने कोकर इलाके में अपना वर्कशॉप तैयार किया। यहां देवी दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी , सरस्वती की मूर्तियां बनाते हैं। उनके साथ 7-8 लोगों की टीम भी काम करती है। शुरुआत में श्रमिकों ने मुझ पर भरोसा नहीं किया। उन्हें आशंका थी कि मैं उन्हें समय पर भुगतान कर पाऊंगी या नहीं। लेकिन, हमेशा उन्हें वेतन के साथ बोनस भी दिया, ताकि वे खुश रह सकें। हमेशा अपने वर्कशॉप पर श्रमिकों का ख्याल रखती हैं। उन्होंने कहा कि इन मूर्तियों को आसपास के गांव टीपूडाना, रामगढ़ के लोग ले जाते हैं।

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राज्य की पहली महिला मूर्तिकार बनीं
माधवी राज्य की पहली महिला मूर्तिकार के तौर पर सम्मान पा चुकी हैं। माधवी का बेटा इंजीनियर और बेटी बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल है। माधवी के पति को लोग बाबू दा के नाम से बुलाते थे। वे रांची के बेहतरीन मूर्तिकार माने जाते थे। उनकी कला की हर कोई तारीफ करता था। लेकिन, पति की मौत के बाद माधवी ने हिम्मत नहीं हारी और पति का बिजनेस आगे बढ़ाकर कामयाब भी हो गईं।

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चैलेंज मिला तो एक्सेप्ट किया, आगे बढ़ी
माधवी बताती हैं कि दुर्गा पूजा आने में कुछ ही दिन बाकी थे। उससे पहले ही विश्वकर्मा पूजा के दिन पति बाबू पाल का निधन हो गया था। ऐसे में मूर्ति और वर्कशॉप के साथ परिवार को संभालना चुनौतीपूर्ण था। उनके यहां जो कारीगर काम करते थे, वे काम छोड़कर चले गए थे। उन्होंने इसे चैलेंज की तरह लिया और नई टीम बनाई। वे कहती हैं कि मुझे लगता है कि एक महिला होने के कारण मैं मां की मूर्ति को ज्यादा साकार कर पाती हूं।