Kharn Prasad Items and Importance: नहाय खाय के दूसरे दिन खरना पूजा होता है, जिसमें दो महत्वपूर्ण चीज भोग के लिए बनाया जाता है। यहां हमने खरना पर बनने वाले प्रसाद, उसके महत्व और सावधानियों के बारे में विस्तार से बताया है।
छठ पूजा का हर दिन अपनी खास धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। लेकिन खरना का दिन सबसे पवित्र और भावनात्मक माना जाता है। यह छठ महापर्व का दूसरा दिन होता है, जिसे ‘लोहंडा’ या ‘खरना’ भी कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखकर शाम को सूर्यास्त के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद न केवल उपवास का समापन है, बल्कि अगले दो दिनों के पर्व की पवित्र शुरुआत भी है। आइए जानते हैं कि खरना के प्रसाद में क्या-क्या बनता है, उसका धार्मिक महत्व क्या है और भोग बनाते वक्त किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए।
खरना प्रसाद में बनती हैं ये चीजें

खरना के दिन प्रसाद बनाने में बहुत ही शुद्धता और सफाई रखी जाती है। घर को पहले पूरी तरह साफ किया जाता है, फिर मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी की आग में प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन मुख्य प्रसाद में गुड़ की खीर, रोटी (या पूड़ी) और गन्ने का रस या शुद्ध पानी शामिल होता है। गुड़ की खीर दूध, चावल और गुड़ से बनाई जाती है, जिसमें चीनी का प्रयोग नहीं होता है। यह खीर ‘पवित्रता’ और ‘त्याग’ का प्रतीक मानी जाती है। वहीं रोटी या पूड़ी को देसी घी में सेंका जाता है।
खरना प्रसाद का धार्मिक महत्व
खरना का प्रसाद केवल भोजन नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि का माध्यम माना गया है। पूरा दिन उपवास के बाद जब व्रती पूजन कर यह प्रसाद ग्रहण करते हैं, तो माना जाता है कि उनके शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है। गुड़ की खीर मिठास और संतोष का प्रतीक है, जबकि रोटी श्रम और साधना का। इस दिन व्रती जो प्रसाद खाते हैं, वही अगले दिन से उगते सूर्य और अस्ताचल सूर्य को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद का आधार बनता है। खरना प्रसाद खाने के बाद व्रती अगले दिन निर्जला व्रत रखते हैं।
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खरना पूजा की सावधानियां और शुद्धता का महत्व

खरना के दिन पवित्रता सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। प्रसाद बनाते समय रसोई पूरी तरह साफ होनी चाहिए और कोई भी अपवित्र वस्तु पास नहीं होना चाहिए। प्रसाद को लोहे या एल्युमिनियम के बर्तनों में नहीं, बल्कि पीतल, कांसे या मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है। व्रती को दिनभर निर्जल रहना चाहिए और शाम को सूर्यास्त के बाद ही पूजा कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। परिवार के बाकी सदस्य भी भोग बनाते वक्त साफ सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
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खरना के बिना अधूरी है छठ पूजा
छठ महापर्व में खरना को उस ‘सेतु’ की तरह माना जाता है जो साधक को उपवास से आराधना तक जोड़ता है। इस दिन का प्रसाद सूर्य देव को प्रसन्न करने का पहला माध्यम होता है। यह माना जाता है कि यदि खरना की पूजा शुद्धता और निष्ठा से की जाए, तो सूर्य देव की कृपा व्रती के जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद लेकर आती है।
