Spring Flowering Plants: सर्दी के बाद भी पौधों में फूल खिलाना चाहते हैं? जानें 5 आसान गार्डनिंग ट्रिक- मिट्टी सुधार, सही छंटाई, फॉस्फोरस खाद, संतुलित धूप और सही सिंचाई। ये टिप्स स्प्रिंग सीज़न में आपके गार्डन को फूलों से भर देंगे।

Gardening Tips For Spring Season: सर्दियों के बाद जैसे ही मौसम बदलता है, कई लोग शिकायत करते हैं कि फरवरी-मार्च में पौधों में फूल आना कम हो जाता है या बिल्कुल रुक जाता है। असल में यह समय पौधों के लिए बेहद नाज़ुक होता है। अगर इस दौरान सही देखभाल न की जाए तो पौधे कमजोर पड़ जाते हैं। लेकिन कुछ आसान स्प्रिंग सीजन गार्डनिंग टिप्स अपनाकर आप न सिर्फ पौधों को हेल्दी रख सकते हैं, बल्कि पतझड़ के बाद भी उनमें भरपूर फूल खिला सकते हैं।

1. मिट्टी को रिफ्रेश करें और ड्रेनेज सुधारें

ठंड के बाद मिट्टी सख्त और पोषक तत्वों से कमजोर हो जाती है। ऐसे में सबसे पहले गमलों की ऊपरी मिट्टी हटाकर नई मिट्टी डालें। इसमें वर्मी कम्पोस्ट, रेत और कोकोपीट मिलाएं। इससे मिट्टी हल्की होगी, जड़ों को ऑक्सीजन मिलेगी और फूल जल्दी खिलेगी। खराब ड्रेनेज की वजह से जड़ें सड़ सकती हैं, जिससे फूल आना रुक जाता है।

2. सही समय पर छंटाई करें

पतझड़ और सर्दी के बाद पौधों में सूखी टहनियां और पीले पत्ते जमा हो जाते हैं। इन्हें समय पर हटाना बहुत जरूरी है। छंटाई करने से पौधे की एनर्जी, नई शाखाएं और कलियां बनाने में लगती है। गुलाब, गुड़हल, बोगनवेलिया जैसे पौधों में हल्की प्रूनिंग जरूर करें, इससे कुछ ही हफ्तों में नए फूल खिलने लगेंगे।

3. फॉस्फोरस वाली खाद दें

फूल लाने के लिए सिर्फ पानी काफी नहीं होता। इसके लिए पौधों को सही पोषण चाहिए। हर 15 दिन में बोन मील, सरसों खली का पानी या घर में बनी लिक्विड खाद दें। फॉस्फोरस फूलों की संख्या और आकार दोनों बढ़ाने में मदद करता है। ध्यान रखें कि खाद ज्यादा न डालें, वरना पौधा झुलस सकता है।

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4. धूप और रोशनी का संतुलन बनाए रखें

स्प्रिंग सीज़न में धूप तेज हो जाती है। फूलों वाले पौधों को रोजाना 4-6 घंटे की हल्की धूप चाहिए। बहुत तेज धूप में पत्ते जल सकते हैं और कम रोशनी में कलियां गिरने लगती हैं। सुबह की धूप सबसे बेहतर मानी जाती है।

5. पानी देने का तरीका बदलें

मौसम बदलते ही पानी देने का तरीका भी बदलना जरूरी है। मिट्टी की ऊपरी परत सूखने के बाद ही पानी दें। सुबह पानी देना सबसे अच्छा रहता है, जिससे नमी लंबे समय तक बनी रहती है और फंगल इंफेक्शन का खतरा कम होता है।

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