सार
हाथ-पैरों में कमज़ोरी, उंगलियों, टखनों या कलाई में झुनझुनी, चलने या सीढ़ियाँ चढ़ने में कठिनाई, तेज़ दिल की धड़कन, साफ़ करने में तकलीफ़, निगलने में कठिनाई, दस्त और उल्टी जैसे लक्षण इस बीमारी में देखे जाते हैं।
हेल्थ डेस्क: महाराष्ट्र के पुणे में गिल्लन-बैरे सिंड्रोम के मरीज़ों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तक 110 लोग इसके लक्षणों के साथ अस्पताल में इलाज करवा चुके हैं। इनमें से 10 लोगों में इस बीमारी की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 12 मरीज आईसीयू में भर्ती हैं।पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के अनुसार, ज़्यादातर मरीज़ों में पेट दर्द एक प्रमुख लक्षण है।
डॉक्टरों का कहना है कि ज़्यादातर मरीज़ सिंहगढ़ रोड और धायरी के आसपास के इलाकों से हैं।जिन लोगों में लक्षण दिखाई दिए हैं और जिन लोगों में बीमारी होने का संदेह है, उनके रक्त, मल, गले के स्राव, लार, मूत्र और सेरेब्रोस्पाइनल द्रव (सीएसएफ) के नमूने पुणे के आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में भेजे गए हैं। अधिकारियों ने बताया कि इलाके में अचानक बीमारी के बढ़ने के कारणों की जांच शुरू कर दी गई है।
गिल्लन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barre Syndrome) क्या है?
गिल्लन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है।'गिल्लन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परिधीय तंत्रिकाओं को प्रभावित करती है। इससे मरीज़ों में कमज़ोरी, हाथ-पैरों में सुन्नपन और गंभीर मामलों में लकवा भी हो सकता है...' - ग्लेनईगल्स अस्पताल, परेल, मुंबई के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पंकज अग्रवाल ने बताया।
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गिल्लन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barre Syndrome) के लक्षण
- हाथ-पैरों में कमज़ोरी
- उंगलियों, टखनों या कलाई में झुनझुनी
- चलने या सीढ़ियाँ चढ़ने में कठिनाई
- तेज़ दिल की धड़कन
- सांस लेने में तकलीफ
- निगलने में कठिनाई
- दस्त और उल्टी
उपरोक्त लक्षण दिखते ही बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर को बीमारी के लक्षण बताने के बाद आपको उचित ट्रीटमेंट दिया जाएगा।कई मरीज़ों को पहले हाथों या पैरों में कमज़ोरी महसूस होती है। डॉक्टरों का कहना है कि ज़्यादातर मामलों में लक्षण दिखाई देने में पाँच से छह दिन लगते हैं।
हैदराबाद के अपोलो हॉस्पिटल्स के कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने बताया कि कई न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का पता लगाने के लिए सेरेब्रोस्पाइनल द्रव (सीएसएफ) की जाँच ज़रूरी है।
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