सार
खराब लाइफस्टाइल और ज्यादा तनाव के कारण महिलाओं में भी अचानक कार्डियक अरेस्ट के मामले बढ़ रहे हैं। एक अनुमान की मानें तो भारत में हर साल अचानक हृदय गति रुकने से लगभग 7 लाख मौतें होती हैं, जिसमें महिलाओं की संख्या भी ज्यादा है।
हेल्थ डेस्क. हाल के वक्त में खराब लाइफस्टाइल, ज्यादा तनाव के कारण महिलाओं में भी अचानक कार्डियक अरेस्ट के मामले बढ़ रहे हैं। अधिकांश कामकाजी महिलाएं एक्सरसाइज के लिए मुश्किल से वक्त निकाल पाती है। कम फीजिकल एक्टिविटी, लंबे समय तक काम करना, लंबे समय तक घर स्मार्टफोन का इस्तेमाल के कारण नींद की कमी, जंक फूड का ज्यादा सेवन, नौकरी और निजी लाइफ के बीच असंतुलन के कारण ज्यादा तनाव दिल की बीमारी महिलाओं में पैदा कर रही है। इसके अलावा डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और मोटापा भी कार्डियक अरेस्ट की स्थिति पैदा कर रही है। कुछ मामले जेनेटिक होते हैं।
सडन कार्डियक अरेस्ट (SCA) हार्ट की गतिविधि में अचानक कमी आना है। यह हार्ट के इलेक्ट्रिकल मालफंक्शन के कारण होता है, जो हार्ट की नेचुरल पंपिंग एक्टिविटी को बाधित करता है।हार्ट बहुत तेजी से और अव्यवस्थित रूप से धड़कता है, जिससे पूरे शरीर में रक्त पंप नहीं हो पाता है। यह अक्सर घातक होता है क्योंकि इलेक्ट्रिकल गड़बड़ी शरीर में ब्लड फ्लो को बाधित करती है। मस्तिष्क और अन्य अंगों को ऑक्सीजन युक्त ब्लड नहीं मिलने से अंग कुछ ही मिनटों में काम करना बंद कर देते हैं। जिसकी वजह से मौत हो जाती है।
महिलाओं में कार्डियक अरेस्ट के लक्षण
कार्डियक अरेस्ट से 24 घंटे पहले महिलाओं के लिए सांस लेने में तकलीफ और दिल का फड़कना सबसे प्रमुख लक्षण हैं, जबकि पुरुषों के लिए सीने में दर्द प्रमुख लक्षण है। ऐसा अनुमान है कि भारत में हर साल अचानक हृदय गति रुकने से लगभग 7 लाख मौतें होती हैं। जब अचानक कार्डियक अरेस्ट आता है तो व्यक्ति चेतना खो देता है और सांस लेना बंद कर देता है। क्योंकि हार्ट काम करना बंद कर देते है और पीड़ित की नाड़ी नहीं चलती है। यह इमरजेंसी स्थिति होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि त्वरित कार्रवाई तुरंत की जानी चाहिए, क्योंकि पीड़ित के बचने की संभावना मिनटों में तेजी से कम हो जाती है। एससीए (SCA) की पहचान और प्रबंधन के लिए समय महत्वपूर्ण है। इसका इलाज किया जा सकता है और इसे उलटा किया जा सकता है लेकिन इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। अगर अरेस्ट आने के कुछ मिनटों के भीतर ट्रीटमेंट शुरू किया जाए तो पीड़ित के जीवत रहने की दर 90% तक हो सकती है।
यह मशीन बन सकता है वरदान
यदि किसी मरीज को अचानक कार्डियक अरेस्ट आने का खतरा है तो उसे इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (आईसीडी) लगाने की सलाह दी जाती है। यह मशीन इलेक्ट्रिकल गड़बड़ी होने पर उसका ट्रीटमेंट करता है। यह पेसमेकर के सामान एक छोटा उपकरण है जो धड़कन को बैलेंस करता है। ये मशीनें आपातकालीन स्थिति में हृदय को पुनः आरंभ करने के लिए इलेक्ट्रिक पल्स का उपयोग करती हैं, जिससे रोगी को नैदानिक सहायता आने तक सांस लेने में मदद मिलती है।
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