सार

महाभारत सिर्फ़ धर्मयुद्ध की कहानी नहीं, दोस्ती का भी गहरा पाठ है। कृष्ण-सुदामा से लेकर पांडवों तक, जानें कैसे रिश्ते बदलते हैं और उनमें खूबसूरती कैसे ढूंढें।

रिलेशनशिप डेस्क. महाभारत न केवल धर्म और जीवन का सार समझाती है। बल्कि दोस्ती के गहरे मायने भी सिखाती है। बचपन की दोस्ती बड़े होने पर बदल जाती है। हम बचपन की दोस्ती को याद करके सोचते हैं कि काश आज भी वैसे ही पल फ्रेंड के साथ जीतें। लेकिन वक्त के साथ इसमें बदला आता है। सरल और सिंपल दोस्ती जटिल लगने लगती है। महाभारत हमें यह सिखाती है कि रिश्ते हमेशा एक जैसे नहीं रहते, लेकिन उनके बदलने में भी एक खूबसूरती होती है। आइए जानते हैं महाभारत से 7 अनमोल दोस्ती के सबक।

"कृष्ण" बनें, "कर्ण" नहीं

कृष्ण ने हमेशा सही का साथ दिया। जरूरत पड़ने पर सच्चाई का सामना करने के लिए अपने दोस्तों को भी मजबूर किया। वहीं कर्ण की दोस्ती दुर्योधन के साथ थी, लेकिन निष्ठा के कारण गलत का साथ देते रहे। हमें सिखने की जरूरत है कि दोस्ती में वफादार रहें, लेकिन ऐसी वफादारी न दिखाएं जो आपको नैतिक रूप से गलत राह पर ले जाए।

दुर्योधन" मत बनें

दुर्योधन का घमंड और ईर्ष्या उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी, जिसने उसे विनाश की ओर ले गया। दोस्ती में कंप्टीशन ठीक है, लेकिन यह ईष्या में नहीं बदलनी चाहिए। अपने दोस्तों की जीत का जश्न मनाएं। भले ही आप वहां तक पहुंचने में नाकामयाब हुए हो।

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भूलें नहीं, लेकिन माफ जरूर करें, जैसे भीष्म

भीष्म ने अपने जीवन में कई लोगों को माफ किया, लेकिन अपनी जिद के कारण कई बार गलत पक्ष का सपोर्ट भी किया। माफ करना अच्छा है, लेकिन बार-बार वही गलतियां करने वाले दोस्तों को सीमा दिखाना भी जरूरी है।

अपने "सुदामा" दोस्तों का सम्मान करें

कृष्ण और सुदामा की दोस्ती इस बात का प्रतीक है कि दोस्ती में धन दौलत की जगह नहीं होती है। सुदामा के पास देने के लिए सिर्फ सूखा चावल था, लेकिन कृष्ण ने उनकी सादगी और सच्चाई को अपनाया। इसलिए, उन दोस्तों को भी दिल के करीब रखें जो आर्थिक रूप से कमजोर हों।

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पांडवों जैसी दोस्ती रखें

पांडवों के बीच भले ही झगड़े होते थे। लेकिन कठिन वक्त में वे एक दूसरे के साथ हमेशा खड़े रहे। दोस्ती का असली मतलब है कि अगर सहमत नहीं भी है तो फिर एक दूसरे के साथ देते हैं।