एक महिला बताती है कि जब भी कोई असहमति होती है, तो उसकी मां चुप हो जाती है। यह कहानी इमोशनल दूरी, गलतफहमी और रिश्ते को बचाने की कोशिशों को दिखाती है, जिससे यह सवाल उठता है, क्या बातचीत या दूरी सही रास्ता है?
Parent Child Communication Issues: माता-पिता और बच्चों का रिश्ता आमतौर पर समझ, भरोसे और खुलकर बात करने पर बनता है। लेकिन जब यह बातचीत तनाव, चुप्पी और गलतफहमियों में बदल जाती है, तो रिश्ता बोझ बन जाता है। एक 34 साल की महिला ने अपनी मां के साथ अपने रिश्ते को लेकर ऐसी ही एक परेशानी शेयर की, जहां हल्की सी भी असहमति होने पर उसकी मां चुप हो जाती है। यह समस्या सिर्फ एक परिवार की नहीं है, यह कई बड़े बच्चों की सच्चाई है जो खुद को इमोशनल दूरी और अपराधबोध के बीच फंसा हुआ पाते हैं।
बातचीत से बचने की आदत और उसका असर
महिला बताती है कि उसकी मां को सीधे मुद्दों पर बात करने में दिक्कत होती है। फोन कॉल पर, वह किसी खास वजह से कॉल करती है, लेकिन असली बात पर आने में 30-40 मिनट लग जाते हैं। अगर उसकी बेटी उसे सीधे बात करने को कहती है, तो उसकी मां चुप हो जाती है। इस तरह की बातचीत न सिर्फ थकाने वाली होती है, बल्कि धीरे-धीरे रिश्ते में निराशा भी भर देती है।
बच्चों की असमती पर नाराजगी
मां हर अलग राय को पर्सनल हमला समझती है। अगर उसके बच्चे किसी बात पर असहमत होते हैं, तो या तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है या बातचीत पूरी तरह बंद कर दी जाती है। "मैं अब कुछ नहीं कहूंगी," जैसे वाक्य उसके लिए एक तरह का इमोशनल हथियार बन गए हैं। इसके बाद हफ्तों या महीनों तक चुप्पी रहती है, जिसके बाद मां ऐसे बर्ताव करती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
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अकेलापन, पिछले सदमे और इमोशनल असुरक्षा
तलाक, दोस्तों की कमी, और बच्चों से दूरी- ये सभी बातें मां की इमोशनल हालत पर असर डालती हैं। छह साल पहले पति के जाने के बाद यह बर्ताव और बढ़ गया। हो सकता है कि यह चुप्पी गुस्से से ज्यादा असुरक्षा और अकेलेपन का नतीजा हो, लेकिन बच्चों के लिए हर बार यह समझना आसान नहीं होता।
रिश्ते को बचाने की कोशिश या दूरी बनाना?
तीनों भाई-बहन अपनी मां के साथ रिश्ता खत्म नहीं करना चाहते, लेकिन हर बातचीत के बाद खुद को लगातार समझाना और हर बात को क्रॉस-चेक करना मानसिक रूप से थकाने वाला होता है। सवाल यह है कि क्या सीमाएं तय करने, शांत भाषा का इस्तेमाल करने और तय समय पर बातचीत करने से रिश्ता सुधर सकता है, या कम संपर्क ही एकमात्र समाधान है? एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसे मामलों में, साफ लेकिन प्यार से सीमाएं तय करना बहुत जरूरी है- ऐसी सीमाएं जो सम्मान और आत्म-सुरक्षा दोनों बनाए रखें।
क्या है लोगों की राय
रेडिट पर स्टोरी करते के बाद लोगों ने कहा हो सकता है कि ज्यादा बार कॉल करने से कॉल की अवधि कम हो जाए? उससे बात करने के लिए उसके कॉल का इंतजार करने के बजाय, उसे बस हालचाल जानने के लिए कॉल करें। एक अन्य यूजर ने कहा आपकी मां पिछली चोट और पर्सनैलिटी से जुड़ी एक कोपिंग मैकेनिज्म के तौर पर चुप हो जाती हैं। आप बदलाव के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते, लेकिन आप धीरे-धीरे बात करके बातचीत को मैनेज कर सकते हैं। एक यूजर मे कहा बातचीत दो तरफा होती है। आप बातचीत के दोनों तरफ नहीं हो सकते। मुझे लगता है कि आपको उसे सीधे-सीधे बताना चाहिए कि आप कैसा महसूस करते हैं और कोई बात घुमा-फिराकर नहीं। वह गुस्सा हो सकती है या चुप हो सकती है, लेकिन हो सकता है कि वह सुने भी। बस जब वह दोबारा बात करना शुरू करे, तो उसके इस भ्रम में उसका साथ न दें कि कुछ हुआ ही नहीं।
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