Psychologist Tips: कहा जाता है कि मां-बेटी या मां-बेटे को बेस्ट फ्रेंड होना चाहिए। लेकिन साइकोलॉजिस्ट इसे सही नहीं मानते हैं। आइए जानते हैं, इसके पीछे की वजह।
Parentification Effect: टीवी शोज और फिल्मों में अक्सर मां-बेटी या मां-बेटे के रिश्तों को ‘बेस्ट फ्रेंड’ जैसा दिखाया जाता है। Gilmore Girls या Ginny and Georgia जैसे शोज इसके एग्जापल हैं। लेकिन साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि असल जिंदगी में यह रिश्ता इतना हेल्दी नहीं होता जितना स्क्रीन पर दिखाया जाता है। साइकोलॉजी में इस तरह की स्थिति को पैरेंटिफिकेशन (Parentification ) कहा जाता है। तो चलिए जानते हैं, क्या होता है पैरेंटिफिकेशन और क्यों ये सही नहीं हैं।
क्या होता है पैरेंटिफिकेशन
पैरेंटिफिकेशन एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसमें बच्चे को उसके उम्र से ज्यादा जिम्मेदारियां दे दी जाती हैं। यानी बच्चे से वो काम करवाना या उम्मीद करना जो असल में बड़ों का काम होता है। इसे रोल रिवर्सल (Role Reversal) भी कहा जाता है, जहां बच्चा माता-पिता की देखभाल करने लगता है, बजाय इसके कि पैरेंट उसकी देखभाल करें। कभी बच्चे मां के थेरेपिस्ट, चीयरलीडर या फैमिली पीसमेकर बन जाते हैं। कई बार उन पर बिल भरने या फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स संभालने जैसी जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं।
द मिरर से बातचीत में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रोबिन कोस्लोविट्ज बताती हैं कि यह सामान्य क्लोजनेस या दोस्ती नहीं है। असली दिक्कत तब शुरू होती है जब बच्चा अपने माता-पिता की जरूरतें पूरी करने के लिए अपनी बचपन की मासूमियत खो देता है।
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इमोशनल पैरेंटिफिकेशन के कारण
साइकोलॉजी टूडे के मुताबिक इमोशनल पैरेंटिफिकेशन कई वजहों से हो सकता है:-
कुछ पेरेंट्स अपनी भावनाओं को संभालना नहीं जानते और बच्चों पर डिपेंड हो जाते हैं।
कई बार यह पैटर्न खुद पैरेंट्स ने अपने बचपन में झेला होता है।
नशे की लत या मानसिक बीमारियां भी इसका कारण बन सकती हैं।
इस स्थिति में बच्चा पैरेंट्स के रिश्तों में मीडिएटर करता है, उनकी आर्थिक समस्याओं या डेटिंग स्ट्रगल्स का गवाह बनता है।
बच्चों पर क्या असर होता है?
- बचपन का मासूम समय खो जाता है।
- बच्चे मानसिक दबाव और एंग्जायटी का शिकार हो सकते हैं।
- रिश्तों में असंतुलन आने लगता है।
समाधान और हीलिंग
साइकोलॉजिस्ट की मानें तो पैरेंटिफिकेशन से बाहर निकला जा सकता है।थेरेपी इसमें मददगार साबित हो सकती है। सबसे जरूरी है बाउंड्रीज सेट करना। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसे यह समझना चाहिए कि वह अपने पैरेंट्स का मुख्य सहारा नहीं है। खुद की जरूरतों और मेंटल हेल्थ को भी प्रॉयरिटी देना बेहद जरूरी है।
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