सार
सोमवार के दिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ग्रीन कॉरिडोर का निर्माण किया गया और बॉडी पार्ट्स को ट्रांसफर किया गया। सबसे बड़ी बात ये रही की जिले में पहली बार एक साथ तीन कॉरिडोर बनाए गए। जानिए क्या होता है ग्रीन कॉरिडोर।
भोपाल (bhopal). मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आज यानि सोमवार 28 नवंबर के दिन शानदार नजारा देखने को मिला। माहौल देख पहले तो लोगों को लगा की किसी नेता या मंत्री की रैली निकल रही होगी लेकिन बाद में पता चला कि ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है। दरअसल यहां एक व्यक्ति के अंगों को प्रदेश के इंदौर जिले व भोपाल के लोकल हॉस्पिटल और गुजरात भेजने के लिए यह कॉरिडोर बनाया गया। जिले में पहली बार ऐसा मौका रहा होगा जब ट्रांसप्लांट के लिए तीन ग्रीन गलियारों का निर्माण किया गया हो।
ब्रेन डेड हुआ व्यक्ति, परिवार ने किए अंगदान
दरअसल भोपाल जिले के सिद्धांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में 26 नवंबर की रात एक व्यक्ति अनमोल जैन (23) का कुछ दिन पहले एक एक्सीडेंट हो गया था जिसके बाद उसकी ब्रेन सर्जरी की गई थी और उसे यहां शिफ्ट किया गया था। वहां के डॉक्टर सुबोध वार्ष्णेय ने बताया कि जांच में पाया गया कि वह ब्रेन डेड हो गया है। मृतक के परिवार से बात की गई तो वे लोग अंगदान के लिए राजी हो गए।
ग्रीन कॉरिडोर बनाते हुए अंग किए ट्रांसफर
परिवार से परमिशन मिलने के बाद अधिकारियों को बुलाकर युवक के हर्ट, लीवर और किडनी की जांच की गई। इसके बाद उनको सही सलामत पाए जाने व उचित डोनर मिलने के चलते उन बॉडी पार्ट्स को ट्रांसफर करने की तैयारी की गई। इसके तहत हर्ट को गुजरात के लिए, लीवर को इंदौर के चोइथराम और किडनी के भोपाल के चिरायू और सिध्दांत हॉस्पिटल में पहुंचाया गया। इसके लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए। किसी कारणों के चलते युवक के फेफड़ो को ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सका।
3 अलग- अलग ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए
डॉ ने बताया कि पहला ग्रीन कॉरिडोर भोपाल से गुजरात के अहमदाबाद के लिए बनाया गया। जहां से हर्ट को ट्रांसफर किया गया। वहीं दूसरा कॉरिडोर इंदौर के लिए बना जहां के लिए लिवर को भेजा गया। तीसरा और आखिरी ग्रीन कॉरिडोर भोपाल लोकल के लिए बना जहां दोनो किडनियों को अलग अलग हॉस्पिटल में ट्रांसफर किया गया। तीनों ही अंग प्रत्योरोपण सफलता पूर्वक किए गए व व्यक्तियों तक पहुंचाए गए, जिससे की उन पेशेंट की जान बच सकी।
क्या होता है ग्रीन कॉरिडोर
ग्रीन कोरिडोर (Green corridor) असल में अस्पताल के इंप्लॉइ और पुलिस के आपसी सहयोग से बनाया जाने वाला एक टेम्परेरी रूट होता है, जिसमें उस रास्ते पर ट्राफिक पूरी तरह से हटा दिया जाता है। इसके चलते अंग ( body parts) को ले जाने वाले वाहन या एंबुलेंस को कम समय में हॉस्पिटल या एयर पोर्ट पहुंच जाती है। इसके चलते अंग को डैमेज हुए बिना जरूरतमंद व्यक्ति तक जल्दी से जल्दी पहुंचाया जाता है। इन वाहनों को चलाने वाले लोग बहुत ही एक्सपर्ट होते है और रास्ता क्लीयर होने पर बहुत तेजी से वाहन चला अंगों को पहुचाते है क्योंकि शरीर से निकलने के बाद ये पार्ट्स जल्दी ही डिकंपोज होने लगते है। इनके निकलने के बाद दूसरे शरीर में ट्रांसप्लांट करना होता है।