सार
सिर्फ पाकिस्तान क्रिकेट टीम नहीं, वहां हर हिंदू के साथ भेदभाव होता है। ऐसा ही एक मामले का खुलासा भोपाल के रहने वाले देश के जाने-माने कवि चौधरी मदन मोहन समर ने किया है। यह घटना उनके यूके दौरे से जुड़ी है।
भोपाल, मध्य प्रदेश. पाकिस्तान में रहने वाले लगभग हर अल्पसंख्यक यानी हिंदू को धर्म के आधार पर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट दानिश कनेरिया इसके इकलौते शिकार नहीं है। भोपाल के रहने वाले और देश के जाने-माने कवि मदन मोहन समर ने पिछले साल अपनी यूके यात्रा के दौरान सामने आए एक अनुभव का खुलासा किया है। इसमें पाकिस्तान से आकर यूके में बसे एक बिजनेसमैन ने अपने हिंदू दोस्त के संग हुए भेदभाव का जिक्र किया था।
पहले जानते हैं कनेरिया का मामला..
पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के पूर्व स्पिनर दानिश कनेरिया के संग धर्म के आधार पर भेदभाव का मामला सामने आने के बाद पाकिस्तान की दुनियाभर में किरकिरी हुई है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर ने पाकिस्तानी टीम के हिंदू खिलाड़ी कनेरिया को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया है। अख्तर ने एक यूट्यूब चैनल पर कहा था कि कनेरिया के संग बाकी खिलाड़ी धर्म के आधार पर भेदभाव करते थे। याद रहे कि कनेरिया टेस्ट क्रिकेट में पाकिस्तान की ओर से सबसे ज्यादा विकेट (261) लेने वाले स्पिन गेंदबाज हैं। कनेरिया पर 2012 में स्पॉट फिक्सिंग के कारण आजीवन प्रतिबंध लग गया था।
(सरफराज के संग मदन मोहन समर)
अब जानते हैं पुलिस अफसर की जुबानी...
पिछले वर्ष मैं एक कवि सम्मेलन के सिलसिले में यूके गया था। कार्यक्रम लिवरपुल सिटी के एक मंदिर में रखा गया था। इसमें सुखद यह था कि कार्यक्रम का संचालन बिहार से जाकर वहां बसे एक डॉक्टर सिद्दीकी कर रहे थे। कार्यक्रम शुरू होने के पहले हमलोग एक कमरे में थे। वहां एक अधेड़ जोड़ा बैठा था। बातचीत पर उन्होंने अपना नाम सरफराज और पत्नी का परिचय कराते हुए उनका नाम फ़रीदा बताया। वे पाकिस्तान से थे। ये लोग उम्र में लगभग मेरे हमउम्र थे। सरफराज जी और फ़रीदा जी बेहद अच्छे लगे। वे धार्मिक रूप से कट्टरपंथी बिल्कुल भी नहीं थे। लाहौर के निवासी होने से हमारी बातचीत पंजाबी में हो रही थी। चूंकि हमारा परिवार मूलरूप से अखंड भारत के गुजरांवाला का रहने वाला है, जो लाहौर से ज्यादा दूर नहीं है। इस हिसाब से हमारी भाषा एक ही है। मेरे दादाजी ने विभाजन के समय ही दूरदर्शी फैसला लिया था और सारी संपत्ति को ठुकरा कर भारतीय बने रहने का विकल्प चुना था। आज हम इस बात को महसूस कर सकते हैं कि हमारे दादा जी का वह फैसला आर्थिक और शारीरिक रूप से अत्यंत कष्टप्रद होकर भी हमारी आस्था, विश्वास और राष्ट्रीयता के लिए कितना सही था।
खैर, सरफराज दम्पती ने मंदिर में भगवान के चरणों में हिंदू परम्परा के अनुसार कुछ सिक्के अर्पित कर मत्था भी टेका। निश्चित ही यह दम्पती बहुत जल्द मेरा मित्र हो गया। कार्यक्रम के दौरान दोनों ने मेरी कविताओं का खूब ताली बजा कर आनंद लिया। कार्यक्रम की समाप्ति पर मुझे गले लगा लिया। हमें रात्रि भोज के लिए डॉक्टर सिद्दीकी के आलीशान रेस्टोरेंट 'मयूरी' में जाना था। सरफराज जी ने मुझसे उनके साथ उनकी कार में चलने का अनुरोध किया। और तब मैं फ़रीदा जी और सरफराज जी साथ चल दिए।
सरफराज जी खुद कार ड्राइव कर रहे थे। रास्ते मे बहुत आत्मीय चर्चा हुई। सरफराज जी 'लिवरपूल पाकिस्तानी रेजिडेंट' के अध्यक्ष थे। यह व्यापारियों की एक संस्था है। संस्थान ने लिवरपूल में पाकिस्तानी नागरिकों के लिए मस्जिद का भव्य रूप बनवाया है व एक पकिस्तानी कल्चर हाउस भी बनाया था। चर्चा के दौरान सरफराज जी ने बताया कि उनके पास एक दिन कोई रामदयाल जी आए। वे करांची से थे। वे पाकिस्तान कल्चर हाउस की सदस्यता के लिए आए थे। जब मेम्बरशिप देने वाली समिति में रामदयाल जी का नाम रखा गया, तो हिन्दू होने की वजह से समिति सदस्यों ने इंकार कर दिया। सरफराज जी ने लाख समझाया कि रामदयाल जी पाकिस्तानी हिन्दू हैं, उन्हें सदस्यता दी जानी चाहिए, लेकिन कोई नहीं माना। हालांकि प्रेसिडेंट होने के कारण सरफराज जी ने अपना प्रभाव दिखाते हुए रामदयाल जी को सदस्य बना लिया। सरफराज जी ने बड़े दुखी मन से कहा था। हमारे पाकिस्तानी अपनी छोटी मानसिकता आज तक छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
(जैसा कि चौधरी मदनमोहन समर ने लिखा)
(दायें से सरफराज, उनकी पत्नी फरीदा, मदन मोहन समर और आखिर में सिद्दीकी)