सार
मामला 2014 का है। महिला जज ग्वालियर में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थीं। उस दौरान उन्होंने मप्र हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ आरोप लगाए थे। आरोपों के बाद उन्हें ग्वालियर से सीधी ट्रांसफर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें बेटी की बोर्ड की परीक्षाओं के लिए उसके साथ रहने की जरूरत है, लेकिन इसके बाद भी उनका तबादला नहीं रोका गया।
भोपाल। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) द्वारा सेवाओं में बहाली के आदेश के एक हफ्ते बाद मध्य प्रदेश (MP) की पूर्व जिला जज को मप्र हाईकोर्ट (MP High court) में विशेष कर्तव्य अधिकारी के रूप में पदस्थ किया गया है। 2014 में ग्वालियर में तैनाती के दौरान महिला जज ने हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सेवा से इस्तीफा दे दिया था। गुरुवार को वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट कर कहा, आखिरकार सात साल की लड़ाई खत्म हुई। भारत के शीर्ष कोर्ट द्वारा बहाल अतिरिक्त जिला न्यायाधीश को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में विशेष कर्तव्य अधिकारी के रूप में तैनात किया गया है। उनका प्रतिनिधित्व करने पर मुझे गर्व है।
क्या है मामला
मामला 2014 का है। महिला जज ग्वालियर में अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थीं। उस दौरान उन्होंने मप्र हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ आरोप लगाए थे। आरोपों के बाद उन्हें ग्वालियर से सीधी ट्रांसफर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि उन्हें बेटी की बोर्ड की परीक्षाओं के लिए उसके साथ रहने की जरूरत है, लेकिन इसके बाद भी उनका तबादला नहीं रोका गया। बाद में उन्होंने सेवाओं से इस्तीफा दे दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में अपील, मिली राहत
इस्तीफा दे चुकीं महिला जज ने हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें बहाल नहीं किया जा सकता। इसके बाद 2018 में वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में माना कि हकीकत में महिला जज को इस्तीफा देने वाले हालात पैदा किए गए, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से उन्हें एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के पद पर फिर से बहाल करने के आदेश दिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि उनकी सेवा अवधि में कोई अंतराल नहीं माना जाएगा। बीते सात साल का वेतन उन्हें नहीं दिया जाएगा, लेकिन वे सेवा के दौरान मिलने वाले अन्य लाभ पा सकेंगी।
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कोर्ट ने माना- महिला न्यायिक अधिकारी के साथ मां भी...
जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच ने माना कि महिला जज द्वारा दिया गया इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं, बल्कि जबरदस्ती था। याचिकाकर्ता एक न्यायिक अधिकारी के साथ एक मां भी थीं। एक ओर, न्यायिक अधिकारी के रूप में उनका करियर था, दूसरी ओर, उसकी बेटी की पढ़ाई। यदि वह सीधी में पोस्टिंग की जगह चली जातीं तो बेटी की शैक्षिक संभावनाएं और करियर खतरे में पड़ सकता था। कोर्ट ने इस बात को खारिज नहीं किया कि न्यायपालिका की संस्था द्वारा उसके साथ अन्याय किया गया है।
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