सार

अभी तक साफ नहीं हो पाया कि बीजेपी को एनसीपी ने समर्थन दिया है या अजित पवार ने पार्टी से बगावत कर दी है। एनसीपी के तमाम नेताओं को भी इस बारे में सही सही कुछ भी पता नहीं है।

मुंबई। पिछले महीने 24 अक्तूबर को जिस तरह विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक देखा गया, उसका समापन शनविवार को एक बड़े ड्रामे के साथ हुआ। एक दिन पहले शुक्रवार शाम तक जहां राज्य में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार लगभग बनती दिखी वहीं अगले दिन शनिवार सुबह देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। उनके साथ डिप्टी सीएम के रूप में अजित पवार ने भी शपथ ली।

शपथ लेने के बाद अजित पवार ने मीडिया से बातचीत की। अजित पवार ने कहा, " 24 अक्तूबर को नतीजे आए थे। तब से लेकर अब तक कोई भी सरकार नहीं बना पाया। महाराष्ट्र के सामने बड़ा संकट है। किसना संकट में हैं। इस समस्या से निपटने के लिए मैंने फैसला (सरकार) लिया।"

"पिछले महीने भर से शुरू चर्चा (कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के बीच) खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी। कोई रास्ता निकल नहीं रहा था। कोई बात तय नहीं हो रही थी। ऐसी स्थिति में तीन पार्टियों की सरकार का भविष्य में टिकना मुश्किल था। इन सब चीजों को देखते हुए मैंने फैसला लिया।"

क्या एनसीपी में हो गई बगावत

यह साफ हो गया है कि बीजेपी को एनसीपी ने समर्थन नहीं दिया है। बल्कि एनसीपी के एक धड़े ने अजित पवार के नेतृत्व में बगावत कर दी है। एनसीपी के तमाम नेता अजित के कदम को भांप ही नहीं पाए। हालांकि कुछ एक्सपर्ट कह रहे हैं कि सब कुछ शरद पवार की मर्जी से ही हुआ है। जबकि कुछ अजित पवार और सुप्रिया सुले के बीच के मतभेद को आधार बताते हुए कह रहे हैं कि अजित ने बगावत कर दी है। 

वैसे शरद पवार की प्रतिक्रिया आ गई है। उन्होंने साफ किया कि अजित पवार अपनी मर्जी से बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया। इसमें पार्टी या उनकी रजामंदी नहीं है।