सार
कुछ कांग्रेस विधायकों का यह भी आरोप है कि मंत्रालय से शरद पवार की पार्टी के नेताओं को जो मंत्रालय मिला है, उन्हें ज्यादा राशि आवंटित की जाती है जबकि कांग्रेस की अनदेखी होती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो राज्य में कांग्रेस की स्थिति कमजोर होगी।
मुंबई : महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत लगातार बदल रही है। पिछले 15 दिनों में जो घटनाक्रम हुए हैं, उससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या उद्धव सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। एक तरफ महाअघाड़ी में दरार की खबर है तो दूसरी तरफ गुलाब नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) की NCP सुप्रीमो शरद पवार (Sharad Pawar) से मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों की गर्मी को बढ़ा दिया है। गुलाब नबी आजाद कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की मांग करने वाले नेताओं के समूह जी-23 का हिस्सा हैं। उनकी यह मुलाकात ऐसे वक्त हुई है जब यह ग्रुप बीजेपी (BJP) का मुकाबला करने विपक्षी एकता पर जोर दे रही है।
कहां से शुरू हुई दरार और बदलने लगा समीकरण
10 मार्च को जब पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आए तो कई राज्यों में सियासी हलचल देखने को मिली। गोवा जैसे राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता नाना पटोले (Nana Patole) ने दावा किया कि 2024 में महाराष्ट्र में कांग्रेस का ही मुख्यमंत्री बनेगा होगा। उनके इस बयान के बाद अटकलें लगने लगीं कि क्या अगला चुनाव कांग्रेस अकेले दम पर लड़ने जा रही है। इधर ये चर्चा जोरों पर थी कि 18 मार्च को एक और बयान ने सियासी हलचल बढ़ा दी। यह बयान था केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे (Raosaheb Danve) का, जिन्होंने दावा किया कि महाविकास अघाड़ी के 25 विधायक भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं। उन्होंने ये भी दावा किया कि ये सभी नेता एमवीए सरकार में नजरअंदाज होने से नाराज हैं।
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कांग्रेस के 25 विधायक की नाराजगी की खबर
इधर, राज्यमंत्री दानवे का दावा और उधर कुछ ही दिन में कांग्रेस के 25 विधायकों की नाराजगी की खबर सामने आ गई। खबर है कि ये विधायक गठबंधन से नाराज हैं। उनका आरोप है कि उनके मंत्री ही उनकी बात नहीं सून रहे हैं। उनकी अनदेखी हो रही है। ऐसा ही रहा तो चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है। उन्होंने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को चिट्ठी लिख मिलने का वक्त भी मांगा है।
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यहां से भी मनमुटाव के संकेत
कांग्रेस के नाराज विधायकों का यह भी आरोप है कि गठबंधन में शामिल राकांपा के मंत्रियों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जाती है। उनको फंड भी ज्यादा मिलता है। हालांकि कि अभी एनसीपी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो शरद पवार भी मुख्यमंत्री के उस फैसले के खिलाफ हैं जिसमें विधायकों के लिए मुंबई में घर बनवाने का प्रावधान है। एक और घटनाक्रम है, जहां इस गठबंधन में मनमुटाव देखने को मिलता है, दरअसल कांग्रेस नेता नसीम खान को 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना (Shiv Sena) के दिलीप लांडे से हार मिली थी। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray), परिवहन मंत्री अनिल परब और सरकार के कई और नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है। जिसके बाद अटकलें लग रही हैं कि गठबंधन में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।
क्या बदल सकते हैं सियासी समीकरण
महाराष्ट्र विधानसभा की बात करें तो 288 सीट हैं। इनमें से 170 विधायक महाविकास अघाड़ी गठबंधन के साथ हैं। शिवसेना के 57, एनसीपी के 53 और कांग्रेस के 43 विधायक हैं। राज्य में बहुमत के लिए 145 सीटों की जरुरत है और तीनों पार्टियां ही इसे पूरा कर लेती हैं लेकिन सरकार को पांच और पार्टियों के साथ आठ निर्दलीय विधायकों का समर्थन है। वहीं NDA का आंकड़ा 113 का है। एनडीए को बहुमत के लिए अभी 32 विधायकों के समर्थन की जरूरत है। ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर 25 विधायकों के संपर्क में होने वाले दावे को सच भी मान लिया जाए तो भी उसका नंबर 138 तक पहुंचता है यानी गठबंधन से सात सीटें कम। अब सभी की निगाह महाअघाड़ी में चल रहे खींचतान पर टिकी है।
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