सार
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद सियासत शुरू हो गई थी। शिंदे की बगावत से उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं, बीजेपी ने एकनाथ शिंदे का समर्थन किया था जिसके बाद वो राज्य के नए सीएम बने थे।
मुंबई. असली शिवसेना किसकी है? उद्धव ठाकरे की या फिर एकनाथ शिंदे की। इस सवाल के जवाब में अब चुनाव आयोग भी एक्टिव हो गया है। चुनाव आयोग ने दोनों खेमों को नोटिस जारी किया है। आयोग ने दोनों खेमों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि अपना बहुमत साबित करने के लिए दोनों पक्ष 8 अगस्त तक अपने डॉक्यूमेंट सब्मिट करें। इसके बाद ही आयोग की तरफ से फैसला किया जाएगा। बता दें कि एकनाथ शिंदे का गुट दावा कर रहा है कि असली शिवसेना वो हैं, वहीं, उद्धव ठाकरे के खेमे ने इस दावे को चुनौती दी है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर किस खेमे का दावा ज्यादा मजबूत है।
एकनाथ शिंदे ने दिया था लेटर
महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने चुनाव आयोग को लेटर लिखा था। इस लेटर में उन्होंने कहा था कि शिवसेना के चुनाव चिन्ह को उन्हें आवंटित किया जाए। वहीं, एकनाथ शिंदे के इस दावे पर उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग को लेटर लिखकर कहा था कि शिवसेना से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले उनके पक्ष को भी सुना जाए।
किसका पलड़ा भारी
असली शिवसेना किसकी है इसका फैसला चुनाव आयोग को करना है। लेकिन एकनाथ शिंदे ने विधायक और सांसदों की संख्या के आधार पर दावा किया है कि पार्टी अब उनकी है। शिवसेना के 55 में से 40 विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं। वहीं, 12 सांसद भी बागी हो गए हैं। जिसके बाद शिंदे ने लोकसभा अध्यक्ष से मुलाकात कर राहुल शेवाले को लोकसभा में पार्टी का नेता घोषित करने को कहा था जिसे स्पीकर ने मान्यता दी थी। वहीं, दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के समर्थन में शिवसेना की कार्यकारिणी है। जिसके आधार पर वो अपना दावा पेश कर रहे हैं।
शिवसेना की स्थापना बाला साहेब ठाकरे ने की थी। 1976 में शिवसेना के संविधान बनाया गया था। इस संविधान के अनुसार शिवसेना प्रमुख के बाद पार्टी से जुड़ा कोई भी निर्णय 13 सदस्यों की कार्यकारी समिति ले सकती है। उद्धव ठाकरे की सबसे बड़ी ताकत यही कार्यकारी समिति है। इस समिति के सभी सदस्य अभी उद्धव ठाकरे के साथ हैं। इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, सुधीर जोशी समेत कई नेता हैं जो उद्धव के साथ खड़े हैं।
आदित्य ठाकरे ने शुरू की निष्ठा यात्रा
बता दें कि महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे के बीच राज्य के पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ने निष्ठा यात्रा शुरू की है। इस यात्रा का मकसद उन लोगों के प्रति आभार प्रकट करना है जिन्होंने बगावत के बीच शिवसेना नहीं छोड़ी और उद्धव ठाकरे के समर्थन में खड़े रहे।
महाराष्ट्र में क्या हुआ था
दरअसल, एकनाथ शिंदे अपने समर्थक 25 विधायकों के साथ बगावत शुरू की थी। इसके बाद धीरे-धीरे उनके काफिले में विधायकों की संख्या बढ़कर 50 हो गई। जिसमें से शिवसेना के 40 विधायक थे। एकनाथ शिंदे ने खुद को बाला साहेब ठाकरे का सच्चा सिपाही बताते हुए मांग की थी कि महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ बेमेल गठबंधन है। शिवसेना को इनका साथ छोड़कर भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहिए।
शिंदे के बागी होने का मामला कोर्ट में पहु्ंच गया था। इसके बाद राज्यपाल महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट कराने के निर्देश दिए थे। हालांकि कोर्ट ने भी फ्लोर टेस्ट को सही बताया था। फ्लोर टेस्ट से पहले ही उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया था। बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे राज्य के नण सीएम बने थे।
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