सार
महाराष्ट्र और कर्नाटक एक दूसरे के कुछ गांवों को अपना बताते हुए दावा कर रहे हैं। 1957 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह मुद्दा अब कई दशक बाद हिंसक मोड़ ले रहा है।
Maharashtra-Karnataka border dispute: महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच क्षेत्र को लेकर विवाद अभी थमा नहीं कि उत्तरी महाराष्ट्र के चार गांवों ने आवेदन देकर खुद को मध्य प्रदेश में विलय करने की मांग कर दी है। बुलढाणा जिले के जलगांव जामोद तालुका के चार गांवों ने जिला प्रशासन को आवेदन देकर मध्य प्रदेश का हिस्सा बनने को कहा है। इन गांववालों का आरोप है कि महाराष्ट्र उनकी मांगों को पूरा नहीं कर रहा है और उनके हितों की अनदेखी कर रहा।
बुलढाणा के चार गांवों ने की मांग
बुलढाणा जिले के जलगांव जामोदा तालुका के सरपंच राजेश मोहन और अन्य के एक पत्र में कहा गया है कि मप्र सीमा के पास स्थित भिंगारा, गोमल -1, गोमल -2 और चालिसतापरी के गांव पिछले 75 वर्षों से बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन गांवों में आदिवासी लोगों का अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र तक बनने में कठिनाई हो रही है। लगातार प्रशासन व सरकार से अपनी समस्याओं को गांव के लोग बता रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसे में उनको मध्य प्रदेश के साथ जाने दिया जाए। हालांकि, गांववालों के आवेदन पर बुलढाणा कलेक्टर डॉ.एचपी तुम्मोद ने कहा कि अधिकारी इन गांवों का दौरा करेंगे और उनकी समस्याओं को चिंहित करेंगे।
दक्षिण महाराष्ट्र के सांगली जिले के कई गांव कर्नाटक में जाना चाहते
कुछ दिन पहले दक्षिण महाराष्ट्र के कई गांवों ने कर्नाटक से जुड़ने की इच्छा जताई थी। सांगली जिले के कई गांवों ने कर्नाटक राज्य में विलय चाहा है क्योंकि इनकी पानी की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है।
क्या है कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद?
दरअसल, महाराष्ट्र और कर्नाटक एक दूसरे के कुछ गांवों को अपना बताते हुए दावा कर रहे हैं। 1957 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह मुद्दा अब कई दशक बाद हिंसक मोड़ ले रहा है। महाराष्ट्र ने मराठा भाषी क्षेत्र बेलगावी, जोकि कर्नाटक में है, पर अपना दावा किया है। बेलगावी, तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था, यहां मराठी बोलने वाली आबादी की बहुलता है। महाराष्ट्र ने 814 मराठी भाषी गांवों पर अपना दावा किया है जो अभी दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में है। उधर, कर्नाटक ने भी महाराष्ट्र के कई गांवों पर अपना अधिकार बताते हुए दावा किया है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। हालांकि, राज्य पुनर्गठन अधिनियम और 1967 महाजन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भाषाई आधार पर किए गए सीमांकन को अंतिम माना जाता रहा है।
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