सार
शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाले ठाकरे ने 29 जून को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा दिए गए फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। शिवसेना के 55 में से 39 विधायक शिंदे के पक्ष में चले गए हैं।
मुंबई। शिवसेना (Shiv Sena) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर कार्रवाई की है। शिंदे को ठाकरे ने पार्टी के नेता पद से हटा दिया है। एक दिन पहले गुरुवार को ठाकरे ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में शिंदे को पत्र भेजकर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था। गुरुवार को एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
शिंदे ने स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ी
पत्र में कहा गया है कि शिंदे ने भी स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है, इसलिए शिवसेना पार्टी अध्यक्ष के रूप में मुझे निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मैं आपको पार्टी संगठन में शिवसेना नेता के पद से हटाता हूं। यह पत्र 30 जून का है, जिस दिन शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने थे।
ठाकरे ने सीएम पद से दे दिया था इस्तीफा
शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने वाले ठाकरे ने 29 जून को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा दिए गए फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। शिवसेना के 55 में से 39 विधायक शिंदे के पक्ष में चले गए हैं। बीजेपी ने राज्यपाल से मिलकर सरकार के बहुमत में होने का आरोप लगाया था।
शिवसेना ने शिंदे समेत 16 बागियों को अयोग्य करने की मांग की
शिवसेना ने पहले 16 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी और शिंदे को विधानसभा में पार्टी के नेता के पद से हटा दिया था। दूसरी ओर, शिंदे खेमे ने दावा किया कि उनके पास बहुमत होने के कारण विधायिका में असली शिवसेना उनका समूह है। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की याचिका पर 11 जुलाई को सुनवाई के लिए सहमत हो गया। इस याचिका में शिंदे और 15 बागी विधायकों की विधानसभा से निलंबन की मांग की गई है। इनके खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं लंबित हैं। शिंदे के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद, प्रभु ने शीर्ष अदालत का रुख किया और विभिन्न आधारों पर 15 बागियों को निलंबित करने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि वे भाजपा के मोहरे के रूप में काम कर रहे हैं और इन पर दलबदल कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, बीते दिनों 21 जून को शिवसेना के सीनियर लीडर एकनाथ शिंदे ने बगावत कर दी। वह कई दर्जन विधायकों के साथ पहले सूरत पहुंचे। सियासी पारा चढ़ने के बाद शिंदे अपने विधायकों के साथ असम पहुंचे। यहां वह एक फाइव स्टार होटल में 40 से अधिक विधायकों के साथ डेरा डाले हुए हैं। शिंदे के पास शिवसेना के 40 बागियों व दस अन्य का समर्थन होने का दावा किया जा रहा है। शिंदे ने 24 जून की रात में वडोदरा में अमित शाह व देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने की संभावनाओं पर वह और बीजेपी के नेताओं ने बातचीत की है। हालांकि, चुपके से देर रात में हुई मुलाकात के बाद शिंदे, स्पेशल प्लेन से वापस गुवाहाटी पहुंच गए।
उधर, शिंदे को पहले तो शिवसेना के नेताओं ने मनाने की कोशिश की लेकिन अब फ्लोर टेस्ट और कानूनी दांवपेंच चला जाने लगा है। दरअसल, शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे ने सारे बागियों को वापस आने और मिलकर फैसला करने का प्रस्ताव दिया। उद्धव ठाकरे की ओर से प्रवक्ता संजय राउत ने यह भी कहा कि अगर एनसीपी व कांग्रेस से बागी गुट चाहता है कि गठबंधन तोड़ा जाए तो विधायक आएं और उनके कहे अनुसार किया जाएगा। लेकिन सारे प्रस्तावों को दरकिनार कर जब बागी गुट बीजेपी के साथ सरकार बनाने का मंथन शुरू किया तो उद्धव गुट सख्त हो गया।
बुधवार को उद्धव गुट को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा। कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट रोकने से मना कर दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया। हालांकि, माना जा रहा था कि बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस सीएम पद की शपथ लेंगे। लेकिन गुरुवार को फडणवीस ने शीर्ष नेतृत्व के कहने पर एकनाथ शिंदे के सीएम पद की कुर्सी सौंपने का ऐलान कर दिया।
इसके पहले राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे का इस्तीफा मंजूर कर लिया। लिहाजा विधानसभा के विशेष सत्र को स्थगित कर दिया गया है। अब फ्लोर टेस्ट नहीं होगा। बता दें कि 11 बजे से विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना था। इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फ्लोर टेस्ट कराने को हरी झंडी मिलने के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वे खुद गाड़ी चलाकर राजभवन पहुंचे और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) को अपना इस्तीफ सौंप दिया।
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