सार

लोकसभा चुनाव 2024 को व्यापक दृष्टि से देखा जा रहा है। इसके संभावित परिणामों का असर न सिर्फ राष्ट्र की सीमाओं बल्कि उसके बाहर भी दिखेगा। एस गुरुमूर्ति का कहना है कि इसके नतीजे वैश्विक मंच पर भारत के मूल्यों की पुन: पुष्टि का संकेत देंगे। 

 

नई दिल्ली। 2024 के संसदीय चुनाव भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण घटना साबित होंगे, जिसकी शुरुआत 19 अप्रैल से अलग-अलग फेज में होगी। इस आर्टिकल में वोटर्स को प्रभावित करने वाले मुद्दों की जटिल जांच के साथ ही व्यापक विश्लेषण है। इसमें इंटरनेशनल डायनेमिक्स से लेकर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और तमिलनाडु के क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य तक, वैश्विक मंच पर इन चुनावों के गहरे प्रभाव को रेखांकित करने के लिए हर एक पहलू का पता लगाया गया है।

अमेरिकी थिंक टैंक ने मोदी को माना दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता

2024 का भारतीय संसदीय चुनाव महज एक लोकल मामला नहीं, बल्कि एक ग्लोबल इवेंट है, जो विश्व मंच पर भारत के बढ़ते दबदबे को दर्शाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अद्वितीय प्रभाव ने अमेरिका के राष्ट्रपति को भी पीछे छोड़ दिया है। अमेरिकी थिंक टैंक मॉर्निंग कंसल्ट ने लगातार 5 साल तक मोदी को वैश्विक नेतृत्व की लोकप्रियता के शिखर पर रखा है। दुनिया भर के तमाम नेता मोदी की तारीफ करते हैं। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री उन्हें 'मोदी द बॉस' कहते हैं तो इटली की प्रधानमंत्री उन्हें दुनिया का सबसे प्रिय नेता बताती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति खुद मोदी की सम्मोहक शक्ति को करते हैं। इतना ही नहीं, रूसी राष्ट्रपति भी निडर, बुद्धिमान शख्स के तौर पर उनका लोहा मानते हैं। इसी तरह, ब्रिटिश प्रधानमंत्री मोदी को ग्लोबल लीडरशिप में एक सहकर्मी के रूप में स्वीकार करते हैं। वहीं, पापुआ न्यू गिनी के राष्ट्रपति का साष्टांग प्रणाम अपने आप में मोदी के कद का प्रमाण है।

जिन पश्चिमी देशों ने कभी मोदी का तिरस्कार किया था, अब वो भी उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं। ये बात उनके परिवर्तनकारी नेतृत्व को दिखाती है। राष्ट्रपति बाइडेन की ये टिप्पणी खुद इस बदलाव को बताती है, जिसमें उन्होंने कहा- आप जब भी आते हैं तो हर कोई आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए चिल्लाता है। आपके रात्रिभोज के लिए एक भी पास नहीं बचा है। मशहूर हस्तियों से लेकर मेरे रिश्तेदारों तक, हर कोई आपसे एक पल की मुलाकात के लिए होड़ कर रहा है। आप लोकतांत्रिक राष्ट्रों को नया आकार देने वाली एक घटना बन गए हैं।

2014 के बाद अमेरिका और यूरोप के साथ संबंधों में आई नरमी मोदी के अथक प्रयासों का ही परिणाम है। शुरुआत में उनके वैश्विक दौरों का घरेलू राजनीतिक दलों और मीडिया द्वारा मज़ाक उड़ाया गया, लेकिन उन्होंने मजबूत अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बढ़ावा दिया। ऑस्ट्रेलिया की उनकी ऐतिहासिक यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों को मजबूत किया। 

आर्थिक पुनरुत्थान

2014 से पहले का दशक भारत में आर्थिक उथल-पुथल से भरा था, जिसमें विकास दर लड़खड़ा रही थी और हाई-प्रोफाइल घोटालों और संदिग्ध आर्थिक नीतियों के बीच मुद्रास्फीति (महंगाई दर) बढ़ रही थी। इस दौर में भारतीय उद्यमों ने अस्थिर ऋण जमा कर लिया, जो गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में बदल गया, जिससे राज्य के स्वामित्व वाले बैंक दिवालियापन की कगार पर पहुंच गए।

हालांकि, वर्तमान में तेजी से आगे बढ़ते हुए, भारत की कहानी में नाटकीय उलटफेर हुआ है। अब भारत दुनिया की पांचवीं सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में पहचाना जाता है। ये बदलाव कोई आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सख्त आर्थिक रणनीतियों, महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय परियोजनाओं और शासन के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का परिणाम है।

मोदी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार में महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई है और वित्तीय हेरफेर के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई छेड़ी गई है। सरकार ने जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों पर शिकंजा कसा। साथ ही धन की वसूली के लिए कानूनी रास्ते अपनाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, जो पहले घाटे से जूझ रहे थे और पतन की कगार पर थे, अब रिकॉर्ड मुनाफा कमा रहे हैं। ट्रांसपोर्टेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर के अलावा नेशनल हाइवे, हवाई अड्डों और बंदरगाहों के विकास में अभूतपूर्व विकास देखा जा रहा है। शेयर बाज़ार, जिसे देश की आर्थिक नब्ज़ माना जाता है, 2014 में 20,000 अंक था, जो अब बढ़कर 73,000 से ऊपर पहुंच गया है। इस उल्लेखनीय बदलाव ने न केवल भारत के आर्थिक परिदृश्य को नया आकार दिया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से नया सम्मान और विश्वास भी हासिल किया है।

मील के पत्थर:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल को परिवर्तनकारी पहलों की एक श्रृंखला के रूप में दिखाया गया है, जिन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इनमें कुछ इस प्रकार हैं, जिन्होंने भारत की कहानी को एक नया आकार दिया है।

  • वैक्सीन डेवलपमेंट:

2020 में कोविड-19 महामारी के बीच मोदी ने स्वदेशी टीकों का उत्पादन करने का वादा करते हुए आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया। मोदी के नेतृत्व में भारत ने न सिर्फ 8 महीनों के भीतर इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल किया, बल्कि दो घरेलू टीके भी लॉन्च किए। यह उपलब्धि तब और बढ़ गई, जब भारत ने 1.02 अरब से अधिक लोगों को सफलतापूर्वक वैक्सीन की डबल डोज दी। ये एक ऐसी उपलब्धि है, जिसका लोहा पूरी दुनिया ने माना।

  • फाइनेंशियल इन्क्लूजन:

मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) अभियान चलाया। 52 करोड़ लोगों के खाते खोले, सभी को आधार पहचान दी गई और 5.53 खरब रुपए की सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के खातों में ट्रांसफर की गई।

  • स्वास्थ्य देखभाल :

34 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी गई। मोदी की नीतियों के चलते 5.8 करोड़ लोगों के लिए 660 अरब रुपए की चिकित्सा सुविधा प्रदान की गई। इससे पब्लिक हेल्थकेयर को लेकर भारत की उपेक्षा करने वाली अंतरराष्ट्रीय धारणा समाप्त हो गई।

  • स्वच्छता क्रांति:

देश के 5,30,000 गांवों में 11.5 करोड़ शौचालयों के निर्माण ने खुले में शौच की प्रथा को खत्म कर दिया है। पिछले कई सालों तक इसका मजाक उड़ाया जाता था।

  • स्वच्छ खाना पकाने की पहल:

महिलाओं के स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण पर इसके सकारात्मक प्रभाव के लिए 10 करोड़ घरों में खाना पकाने के गैस कनेक्शन के प्रावधान की विश्व स्तर पर सराहना की गई है।

  • सभी को घर:

2.6 करोड़ ग्रामीण परिवारों को मुफ्त घर देने की महत्वाकांक्षी परियोजना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हैरत में डाल दिया है। ये नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दिखाता है।

ये माइलस्टोन सिर्फ घरेलू उपलब्धियां नहीं हैं, बल्कि इनसे वैश्विक मंच पर भारत का कद काफी बढ़ गया है, जो मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व के साथ ही भारत के प्रगति पथ को दिखाता है।

भारत का उन्नति पथ

हाल के कुछ सालों में हुई परिवर्तनकारी पहलों ने न केवल भारत के घरेलू परिदृश्य को नया आकार दिया है, बल्कि इससे वैश्विक स्तर पर भी प्रशंसा मिली है। भारत की बहुआयामी आर्थिक प्रगति की तारीफ कई अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने की है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन ने माना है कि भारत दुनिया को बदल रहा है। हाल ही में 29 प्रमुख लोकतंत्रों में आयोजित इप्सोस जनमत सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई है। इस सर्वे में 77% लोगों का मानना ​​है कि भारत सही दिशा में प्रगति कर रहा है, जो अमेरिका (65%), जर्मनी (72%), कनाडा (70%), इंग्लैंड (79%) और फ़्रांस (82%) जैसे अन्य देशों की धारणा से बिल्कुल विपरीत है। इसके अलावा ये देश भारत की अर्थव्यवस्था को सबसे चमकदार मानते हैं, जो देश के बढ़ते प्रभाव और आशाजनक भविष्य को बताता है।

भू-राजनीतिक उथल-पुथल को कुशलता से संभाला

वैश्विक समुदाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत के गतिशील विकास और पुनरुत्थान की धुरी के रूप में देखता है। हेनरी किसिंजर और जॉर्ज सोरोस जैसी हस्तियों को लग रहा है कि पश्चिमी आधिपत्य अब धीरे-धीरे घट रहा है। यह प्रवृत्ति कोविड महामारी और यूक्रेन-रूस जंग के चलते और बढ़ गई है। यूक्रेन संकट के दौरान मोदी की कूटनीति ने शक्ति संतुलन को बदल दिया है। इसने तटस्थ देशों के प्रभाव को बढ़ाने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण पुनर्गठन का संकेत दिया है।

डोकलाम से लेकर लद्दाख तक चीनी आक्रामकता के खिलाफ भारत के सख्त रुख ने पश्चिम का ध्यान अपनी ओर खींचा है। अपने पारंपरिक गठबंधनों से हटकर भारत ने एशिया, यूरोप और ग्लोबल साउथ के देशों से नए संबंध बनाते हुए खुद को विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ के रूप में स्थापित किया है। रूस-यूक्रेन जंग और बढ़ते परमाणु खतरे के बीच दुनिया मध्यस्थता के लिए भारत की ओर देख रही है। यह रूस और यूक्रेन दोनों के साथ ही मोदी की भागीदारी को दिखाता है।

पश्चिमी आधिपत्य को चुनौती

लंबे समय से वैश्विक एजेंडा तय करने वाले पश्चिमी देश अब भारत के बढ़ते प्रभाव को आशंका के साथ देख रहे हैं। उनकी चिंता का मूल केवल भारत का उत्थान नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुखर नेतृत्व भी है, जो यथास्थिति को चुनौती देता है। जैसे-जैसे 2024 के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, पश्चिमी मीडिया और थिंक टैंक के बीच संभावित परिणामों पर उनके प्रभाव को लेकर एक अलग ही इंट्रेस्ट दिख रहा है।

मोदी का नेतृत्व भारत की सभ्यता के पुनरुद्धार का प्रतीक है। दुनिया की एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत की बढ़ती आर्थिक, सैन्य और तकनीकी क्षमताएं, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत नए प्रतिमान प्रस्तुत करती हैं। मोदी के नेतृत्व में तेजी से आगे बढ़ता भारत वेस्टर्न लिबरल समुदाय को उनके पारंपरिक आधिपत्य के लिए एक चुनौती के रूप में नजर आ रहा है। यही वजह है कि भारत में आगामी चुनावों को व्यापक दृष्टि से देखा जा रहा है, जिसके संभावित परिणाम राष्ट्रीय सीमाओं से परे तक फैले होंगे।

नोट : यह लेख मूल रूप से तुगलक तमिल साप्ताहिक पत्रिका में छपा था। इसका अंग्रेजी में अनुवाद तुगलक डिजिटल द्वारा www.gurumurthy.net के लिए किया गया था। इसे एशियानेट न्यूज नेटवर्क में दोबारा प्रकाशित किया गया है।