सार

अमेरिका में कोरोना से संक्रमित मरीजों के मौत का आंकड़ा भी 7 हजार तक पहुंच गया है। इन सब के बीच अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से जुड़ा एक वैक्सीन बनाया है जिसका प्रयोग फिलहाल चूहे पर किया गया है। जिसके बाद अब इंसानों पर टेस्टिंग की तैयारी है। 

वाशिंगटन. कोरोना के कहर से अमेरिका का बुरा हाल है। अमेरिका में कोरोना वायरस की चपेट में आए संक्रमित मरीजों की संख्या 2.5 लाख के पार पहुंच गई है। अमेरिका में कोरोना से संक्रमित मरीजों के मौत का आंकड़ा भी 7 हजार तक पहुंच गया है। वहीं, अमेरिकी डॉक्टर लगातार कोरोना का ठोस उपचार खोजने में जुटे हुए हैं। वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से जुड़ा एक वैक्सीन बनाया है जिसका प्रयोग फिलहाल चूहे पर किया गया है। इस प्रयोग के दौरान देखा गया है कि एक स्तर पर आकर यह नए कोरोना वायरस के खिलाफ एक इम्युनिटी तैयार कर लेता है जो कि कोरोना के संक्रमण से बचा सकता है।

चूहे के बाद अब इंसानों पर किया जाएगा प्रयोग 

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने गुरुवार को बताया कि जब इसका प्रयोग चूहे पर प्रयोग किया गया तो इस प्रोटोटाइप वैक्सीन ने दो सप्ताह के भीतर ऐंटीबॉडीज तैयार कर ली। इस वैक्सीन का नाम फिलहाल पिटकोवैक (PittCoVacc) रखा गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ता हालांकि यह भी कहते हैं कि जानवरों पर लंबे समय तक नजर नहीं रखी जा सकी है तो यह कहना जल्दबाजी होगी कि कब तक उनमें इम्युनिटी बनी रहेगी। शोधकर्ताओं की टीम को भरोसा है कि अगले कुछ महीनों में इसका प्रयोग इंसानों पर किया जा सकेगा।

ब्लड प्लाज्मा का भी ले रहे सहारा

कोरोमा वायरस के कारण अमेरिका भयंकर तबाही के मुहाने पर खड़ा है। अमेरिका के डॉक्टर स्वस्थ हो चुके मरीजों के ब्लड प्लाज्मा के जरिये इलाज की कोशिश कर रहे हैं। यह पद्धति 100 साल पुरानी है जब 1906 में फ्लू के दौरान स्वस्थ हो चुके मरीज के ब्लड प्लाज्मा से बीमार मरीज का इलाज किया गया था। चूंकि अभी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन और दवाई मौजूद नहीं है इसलिए वे फिलहाल इस प्रयोग पर ध्यान दे रहे हैं। न्यूयॉर्क और अन्य शहरों में स्वस्थ्य हो गए कोरोना पेशंट गंभीर रूप से बीमार मरीजों की मदद के लिए अपना ब्लड डोनेट कर रहे हैं।

वैक्सीन बनाने पर पहले से ही काम कर रहा अमेरिका

कोरोना वायरस पर लगाम पाने के लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पहले टीके का परीक्षण किया है। शोधकर्ताओं ने 16-17 मार्च को टीके का परीक्षण करते हुए अमेरिका के सियाटल में एक महिला को कोरोना वैक्सीन की सूई लगाई थी। कोविड-19 का पहला टीका जेनिफर हैलर नाम की एक महिला को दिया गया, जो कि एक टेक कंपनी में ऑपरेशन मैनेजर है। इस महिला के अलावा तीन और लोगों को टीका दिया गया। अब वैज्ञानिक इस वैक्सीन के असर का अध्ययन कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के सामने अब ये साबित करने की चुनौती है कि ये टीका सुरक्षित है और सफलतापूर्वक संक्रमण को रोक पाता है।

हालांकि अगर ये परीक्षण सफल भी हो जाता है तो भी बाजार में वैक्सीन को आने में 12 से 18 महीने लगेंगे। क्योंकि इस टीके का असर समझने में कई महीने लग सकते हैं। इस परीक्षण के लिए 18 से 55 साल के 45 स्वस्थ लोगों का चयन किया गया है। इन पर 6 हफ्ते तक टीके के असर का अध्ययन किया जाएगा।ये वैक्सीन दुनिया में रिकॉर्ड टाइम में विकसित किया गया है। चीन में इस बीमारी का पता चलने के बाद केपीडब्ल्यू रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक इस वैक्सीन को विकसित करने में जी-जान से लगे थे।

चीन ने भी किया था यह प्रयोग 

चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस का संक्रमण चीन में मौत का तांडव मचा रखा था। जिससे बचने के लिए चीन ने भी ठीक हो चुके लोगों के ब्लड से कोरोना के अधिकांश मरीजों का इलाज किया था। ये प्रयोग कारगार भी साबित हुआ था।