सार
एशियानेट न्यूज डायलॉग्स के विशेष इंटरव्यू में इस बार हमारे साथ हैं क्रिश्चियन म्यूजिकोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष फादर जोसेफ जे पलाकल। उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें शेयर की हैं।
Exclusive Interview. एशियानेट न्यूज डायलॉग्स के विशेष इंटरव्यू में इस बार हमारे साथ हैं क्रिश्चियन म्यूजिकोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष फादर जोसेफ जे पलाकल ने सिरिएक म्यूजिक की विशेषताओं और इंटरनेशनल लेवल पर इसके महत्व पर बात की है। सिरिएक म्यूजिक को लेकर फादर जोसेफ के कई आर्टिकल्स दुनिया भर की मैगजीन में प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे पुराने ईसाई मंत्रों में से एक सिरिएक मंत्र 'मृतकों का संगीत' नहीं है, जैसा कि कई लोग मानते हैं।
क्या कहते हैं फादर जोसेफ जे मलाकल
क्रिश्चियन म्यूजिकोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष फादर जोसेफ जे पलाकल ने एशियानेट के विशेष संस्करण में भाग लेते हुए कई विषयों पर बातचीत की है। एक समय धर्मगुरूओं के बीच बेहद लोकप्रिय रहा सिरिएक लैंग्वेज भारत में बेहद दुर्लभ है। इंटरव्यू के दौरान फादर ने सिरिएक म्यूजिक की खासियत और इंटरनेशनल लेवल पर हो रहे रिसर्च के महत्व के बारे में बात की। उन्होंने इंटरव्यू की शुरूआत में सिरिएक लैंग्वेज का वह मंत्र गाकर सुनाया जिसके बारे में बातचीत की है।
सिरिएक लैंग्वेज इतना दुर्लभ क्यों है
इस सवाल के जवाब में फादर जोसेफ जे पलाकल ने कहा कि दुनिया की दूसरी भाषाओं की तरह यह भाषा भी पहली शताब्दी की है, जिसे ज्यादातर ज्यूइस लोग इस्तेमाल करते थे। यह अरबी भाषा से मिलता-जुलता है और ज्योग्राफिकली देखें तो यह मिडिल ईस्ट में ही इस्तेमाल किया जाता था। पहली शताब्दी के दौरान यही भाषा इस्तेमाल होती थी। लेकिन जब 7वीं शताब्दी के आसपास इस्लाम मिडिल इस्ट में आया तब सिरिएक लैंग्वेज को अरबी भाषा ने रिप्लेस करना शुरू कर दिया। लेकिन भारत में खासकर केरल जैसे राज्य में यह लैंग्वेज बची रही और आज भी यह किसी न किसी फार्म में मौजूद है। जैसे-जैसे अरैबिक लैंग्वेज की पॉलिटिकल पॉवर बढ़ी, वैसे वैसे यह लैंग्वेज साइड लाइन होती गई। 1962 तक कई चर्च में इसका प्रयोग होता था लेकिन फिर शिक्षा का प्रसार बढ़ा और लोग धीरे-धीरे, अंग्रेजी और मलयाल में पूजा करने लगे।
कैसे भाषा में हुआ बदलाव
इस सवाल के जवाब में फादर जोसेफ जे मलाकल ने कहा कि जो लोग सिरिएक लैंग्वेज में वरशिप करते थे तो अक्सर उन्हें यह समझ नहीं आता था कि वे कहा कह रहे क्योंकि वे उस भाषा को नहीं समझते थे। बाद में उसे मलयालम में ट्रांसलेट किया गया। क्या यह भाषा बहुत कठिन है, इस सवाल के जवाब में फादर ने कहा कि सिरिएक लैंग्वेज का पोएटिक स्ट्रक्चर बहुत ही शानदार है, इसकी वजह से जो संगीत निकलता है, जो मेलॉडी निकलकर आती है, वह बहुत ही अच्छी होती है। इसको लगातार गाया जा सकता है। फादर जोसेफ ने सिरिएक और मलयालम में एक ही सांग को गाकर भी सुनाया।
क्यों इसे फ्यूनरल म्यूजिक कहा जाने लगा
इस सवाल के जवाब में फादर जोसेफ ने बताया कि हमारी पीढ़ी ने इसका बहुत ज्यादा उपयोग नहीं किया। सारी वर्शिप मलयालम में ही होती है। इसके बाद जो पीढ़ी आई उन्होंने इस लैंग्वेज को सिर्फ फ्यूनरल के दौरान ही सुना और यही वजह है कि इसे फ्यूनरल म्यूजिक कहा जाने लगा। इस लैंग्वेज को कैसे सहेजा जा रहा है, इसके जवाब में फादर जोसेफ ने कहा कि क्रिश्चियन म्यूजिकोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के माध्यम से हम इस लैंग्वेज को डाक्यूमेंटेड करने का काम कर रहे हैं। यह विचार हमने आगे बढ़ाया है। हम पुराने लोगों से मिल रहे हैं और सिरिएक म्यूजिक को डाक्यूमेंट करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी से इसको बढ़ावा दिया जाएगा।
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