सार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत गणना (Caste Based Census) के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।
 

नई दिल्ली. कर्नाटक मॉडल की तर्ज पर बिहार में जनगणना के दौरान जातियों की गणना कराने का मुद्दा तूल पकड़ गया है। इसी को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने दिल्ली पहुंचे। बता दें कि जातिगत गणना (Caste Based Census) कराए जाने की मांग को लेकर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने 4 अगस्त को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। नीतीश और तेजस्वी इस मामले में एक साथ हैं। नीतीश के साथ हर राजनीति दल का एक सदस्य प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहा।

प्रधानमंत्री ने गंभीरता से सुनी बात
प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उनकी बात गंभीरता से सुनी है। अब उनके निर्णय का इंतजार है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि जातीय जनगणन से देश को फायदा होगा। मंडल कमिशन से पहले यह तक पता नहीं था कि देश में कितनी जातियां हैं। जब जानवरों की गिनती होती है, पेड़-पौधों की गिनती होती है, तो इंसानों की भी होनी चाहिए।

ये हैं प्रतिनिधिमंडल में शामिल
नीतीश कुमार-मुख्यमंत्री, तेजस्वी यादव-आरजेडी, विजय कुमार चौधरी-जेडीयू, जनक राम-बीजेपी,अजीत शर्मा-कांग्रेस, महबूब आलम-भाकपा माले, अख्तरुल ईमान-एआईएमआईएम, जीतन राम मांझी-हम, मुकेश सहनी-वीआईपी, सूर्यकांत पासवान-भाकपा।

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1990 में नीतीश ने ही उठाया था सबसे पहले मुद्दा
बता दें कि नीतीश ने सबसे पहले 1990 में जातीय गणना की मांग उठाई थी। उन्होंने तब तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी लेटर लिखा था। इधर, लालू प्रसाद यादव पहले ही tweet के जरिये केंद्र को चेतावनी दे चुके हैं कि अगर 2021 में जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी, तो बिहार के साथ देश के सभी पिछड़े-अति पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक जनगणना का बहिष्कार कर सकते हैं।

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कर्नाटक मॉडल से प्रभावित हुए बिहार के नेता
बिहार में जातीय गणना को लेकर जो राजनीति चल रही है, उसके पीछे कर्नाटक मॉडल माना जा रहा है। बिहार के नेता इसी मॉडल से प्रभावित हैं। वे इसी मॉडल पर गणना कराने की मांग उठा रहे हैं। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस मामले में लगातार सक्रिय हैं। दिलचस्प बात देखिए कि हर मामले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ खड़े होने वाले तेजस्वी जातीय गणना के मुद्दे पर उनके साथ हैं।

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अगर सरकार मना करती है तो...
माना जा रहा है कि अगर केंद्र सरकार जातीगत गणना की मांग को अस्वीकार करती है, तो बिहार सरकार अपने खर्चे पर कर्नाटक मॉडल की तर्ज पर यह काम कराएगी। बता देंकि फरवरी, 2019 में विधानमंडल और 2020 में विधानसभा में इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास करके 2 बार केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है।

यह है कर्नाटक मॉडल
बता 2015 की है। सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार ने ‘सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण’ करवाया था। इसे ही जातिगत जनगणना कहते हैं। हालांकि इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे। तब इस काम पर162 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। माना जा रहा है कि कर्नाटक में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जा सकता है। इससे चुनाव पर गहरा असर पड़ेगा।

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