प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी पर दिल्ली में मृत हिंदू जमीन मालिकों के नाम पर नकली दस्तावेज बनाकर जमीन हड़पने का आरोप लगाया। सिद्दीकी 18 नवंबर से पुलिस गिरफ्त में है।
नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शुक्रवार को अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी पर दिल्ली के मदनपुर खादर में मरे हुए हिंदू जमीन मालिकों के नाम पर नकली डॉक्यूमेंट बनाकर धोखे से जमीन हड़पने का आरोप लगाया। एजेंसी के मुताबिक, खसरा नंबर 792 की जमीन एक नकली जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) के आधार पर सिद्दीकी से जुड़े ट्रस्ट तरबिया एजुकेशन फाउंडेशन को ट्रांसफर कर दी गई।
ED ने कहा कि जिन जमीन मालिकों के नाम डॉक्यूमेंट्स में हैं, उनमें से कई की मौत 1972 और 1998 के बीच हो गई थी, फिर भी उनके नाम पर 7 जनवरी, 2004 का एक जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनाया गया और बाद में जमीन को फिर से रजिस्टर करने के लिए इस्तेमाल किया गया। जांच एजेंसी ने ट्रांसफर को फ्रॉड बताते हुए कहा कि नकली डॉक्यूमेंट्स ही अधिग्रहण का आधार थे। जांच जारी रहने तक सिद्दीकी अभी ED की कस्टडी में है।
क्या है जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी?
जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) एक बेहद अहम कानूनी दस्तावेज है, जो एक व्यक्ति को प्रॉपर्टी और फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन जैसे बड़े मामलों में दूसरे की तरफ से काम करने, साइन करने और फैसले लेने का अधिकार देता है।
18 नवंबर को गिरफ्तार हुआ जवाद सिद्दीकी
ईडी ने 18 नवंबर को अल फलाह यूनिवर्सिटी के फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी को गिरफ्तार किया था। सिद्दीकी को 10 नवंबर के दिन दिल्ली के लाल किले के पास i20 कार ब्लास्ट के पीछे एक टेरर मॉड्यूल में यूनिवर्सिटी के तीन प्रोफेसरों के कथित तौर पर शामिल होने के बाद अरेस्ट किया गया था। सिद्दीकी को मनी लॉन्ड्रिंग केस में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 की धारा 19 के तहत गिरफ्तार किया गया था। ईडी ने दिल्ली कार विस्फोट की जांच को तेज करते हुए दिल्ली एनसीआर में 25 अलग-अलग स्थानों पर छापे मारे और समूह से जुड़ी नौ शेल फर्म को जांच के दायरे में लिया है। बता दें कि इनमें से हर एक सेम पते पर रजिस्टर्ड हैं।
कैसे शुरू हुई जांच?
ईडी ने अल फलाह समूह के खिलाफ दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा दर्ज 2 एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की। FIR में कहा गया है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद ने यूजीसी अधिनियम, 1956 की धारा 12 (बी) के तहत यूजीसी मान्यता का झूठा दावा किया है, जिसका सीधा मकसद उम्मीदवारों, स्टूडेंट्स, पेरेंट्स, हितधारकों और आम जनता को धोखा देना है ताकि गलत तरीके से लाभ उठा सकें और उन्हें नुकसान पहुंचा सकें। यूजीसी ने साफ कहा है कि अल-फलाह विश्वविद्यालय को केवल धारा 2 (एफ) के तहत एक स्टेट ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी के रूप में शामिल किया गया है।


