सार

दिल्ली सरकार की 'कंट्रोवर्सियल शराब नीति' (New Excise Policy) में भारी भ्रष्टाचार की CBI जांच के बीच अन्ना हजारे की धांसू एंट्री हुई है। अन्ना ने अरविंद केजरीवाल को एक लेटर लिखकर उनकी 'कथनी-कथनी' में फर्क याद दिलाया है। 

नई दिल्ली. आपको याद होगा साल 2011 का रामलीला मैदान! तब अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक(okpal Bill) की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की थी। इसी आंदोलन से पैदा हुए थे अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के अलावा किरण बेदी और कुमार विश्वास। लेकिन जब अरविंद केजरीवाल ने अन्ना की इच्छा के विरुद्ध जाकर पॉलिटिकल पार्टी आम आदमी पार्टी(AAP) का गठन किया, तो अन्ना ने केजरीवाल से किनारा कर लिया। इतने सालों बाद अन्ना ने पहली बार केजरीवाल को लेटर लिखा है। मुद्दा दिल्ली की 'नई शराब नीति' से जुड़ा है, जिसमें करप्शन को लेकर CBI जांच कर रही है। अन्ना शराबबंदी के पक्षधर रहे हैं। एक समय अरविंद केजरीवाल भी अन्ना के साथ थे। लेकिन अब वे 'दिल्ली में सस्ती शराब' को लेकर उलझे हुए हैं। इसी मामले को लेकर अन्ना ने 2 पन्नों के लेटर में केजरीवाल को एक तरह से झूठा करार दिया है। पढ़िए क्या लिखा अन्ना ने...

शराब नीति को लेकर खबरें पढ़कर बड़ा दु:ख हुआ
आपके मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार मैं आपको खत लिख रहा हूं। पिछले कई दिनों से दिल्ली राज्य सरकार की शराब नीति के बारे में जो खबरे आ रही हैं, वह पढ़कर बड़ा दु:ख होता हैं। गांधीजी के गांव की ओर चलो...' इस विचारों से प्रेरित हो कर मैने अपना पूरा जीवन गांव, समाज और देश के लिए समर्पित किया है। पिछले 47 सालों से ग्राम विकास के लिए काम और भ्रष्टाचार के विरोध में जन आंदोलन कर रहा हूं।

महाराष्ट्र में 35 जिलो में 252 तहसील में संगठन बनाया। भ्रष्टाचार के विरोध में तथा व्यवस्था परिवर्तन के लिए लगातार आंदोलन किए। इस कारण महाराष्ट्र में 10 कानून बन गए। शुरू में हमने गांव में चलनेवाली 35 शराब की भट्टियां बंद कीं। आप लोकपाल आंदोलन के कारण हमारे साथ जुड़ गए। तब से आप और मनीष सिसोदिया कई बार रालेगणसिद्धी गांव(अन्ना यही रहते हैं) में आ चुके हैं। गांववालों का किया हुआ काम आपने देखा हैं। पिछले 35 साल से गांव में शराब, बीड़ी, सिगरेट बिक्री बंद है। यह देखकर आप प्रेरित हुए थे। आप ने इस बात की प्रशंसा भी की थी।

केजरीवाल को याद दिलाई स्वराज किताब
राजनीति में जाने से पहले आपने 'स्वराज' नाम से एक किताब लिखी थी। इस किताब की प्रस्तावना आपने मुझसे लिखवाई थी। इस 'स्वराज' नाम की किताब में आपने ग्रामसभा, शराब नीति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखी थीं। किताब में आपने जो लिखा हैं, वह आप को याद दिलाने के लिए नीचे दे रहा हूं।

गांवों में शराब की लत(केजरीवाल ने स्वराज नामक किताब में ये बातें लिखी थीं)
समस्या: वर्तमान समय में शराब की दुकानों के लिए राजनेताओं की सिफारिश पर अधिकारियों द्वारा लाइसेंस दे दिया जाता हैं। वे प्रायः रिश्वत ले कर लाइसेंस देते हैं। शराब की दुकानों की कारण भारी समस्याएं पैदा होती हैं। लोगों का पारिवारिक जीवन तबाह हो जाता हैं। विडम्बना यह है कि, जो लोग इससे सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं, उन्हें इस बात के लिए कोई नहीं पूछता कि, क्या शराब की दुकान खुलनी चाहिए या नहीं? इन दुकानों को उनके उपर थोप दिया जाता है।

सुझाव: शराब की दुकान खोलने का कोई लाइसेंस तभी दिया जाना चाहिए, जब तक कि ग्राम सभा इसकी मंजूरी दे दे और ग्राम सभा की सम्बन्धित बैठक में वहां उपस्थित 90 प्रतिशत महिलाएं इसके पक्ष में मतदान करें। ग्राम सभा में उपस्थित महिलाएं साधारण बहुमत से मौजूदा शराब की दुकानों का लाइसेंस भी रद्द करा सकें।

अन्ना ने फिर लेटर में आगे लिखा...
आपने 'स्वराज' नाम की इस किताब में कितनी आदर्श बातें लिखी थीं। तब आप से बड़ी उम्मीद थी। लेकिन राजनीति में जा कर मुख्यमंत्री बनने के बाद आप आदर्श विचारधारा को भूल गए हैं, ऐसा लगता है। इसलिए दिल्ली राज्य में आपकी सरकार ने नई शराब नीति बनाई। ऐसा लगता है कि जिससे शराब की बिक्री और शराब पीने को बढ़ावा मिल सकता है। गली-गली में शराब की दुकानें खुलवाई जा सकती हैं। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।  यह बात जनता के हित में नहीं हैं। फिर भी आपने ऐसी शराब नीति लाने का निर्णय लिया है। इससे ऐसा लगता हैं कि जिस प्रकार शराब का नशा होता है, उस प्रकार सत्ता का भी नशा होता है। आप भी ऐसे सत्ता के नशे में डूब गए हो, ऐसा लग रहा है।

10 साल पहले 18 सितंबर 2012 को दिल्ली में टीम अन्ना के सभी सदस्यों की मीटिंग हुई थी। उस वक्त आप ने राजनीतिक रास्ता अपनाने की बात रखी थी। लेकिन आप भूल गए कि, राजनीतिक पार्टी बनाना यह हमारे आंदोलन का उद्देश्य नहीं था। उस वक्त टीम अन्ना के बारे में जनता के मन में विश्वास पैदा हुआ था। इसलिए उस वक्त मेरी सोच थी कि टीम अन्ना को देशभर में घूम-घूमकर लोकशिक्षण, लोकजागृति का काम करना जरूरी था। अगर इस प्रकार लोकशिक्षण, लोकजागृति का काम होता, तो देश में कहीं पर भी शराब की ऐसी गलत नीति नहीं बनती। 

सरकार कौन सी भी पार्टी की हो, सरकार को जनहित में काम करने पर मजबूर करने के लिए समान विचारधारा वाले लोगों का एक प्रेशर ग्रुप होना जरूरी था। अगर ऐसा होता, तो आज देश की स्थिति अलग होती और गरीब लोगों को लाभ मिलता। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया। उसके बाद आप, मनीष सिसोदिया और आपके अन्य साथियों ने मिलकर पार्टी बनाई और राजनीति में कदम रखा।

एक ऐतिहासिक आंदोलन का नुकसान
दिल्ली सरकार की नई शराब नीति को देखकर अब पता चल रहा है कि एक ऐतिहासिक आंदोलन का नुकसान करके जो पार्टी बन गई, वह भी बाकी पार्टियों के रास्ते पर ही चलने लगी। यह बहुत ही दु:ख की बात है। 'भ्रष्टाचार मुक्त भारत' के लिए ऐतिहासिक लोकपाल और लोकायुक्त आंदोलन हुआ। लाखों की संख्या में लोग रास्ते पर उतर आए। उस वक्त केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की जरूरत के बारे में आप मंच से बड़े-बड़े भाषण देते थे। आदर्श राजनीति और आदर्श व्यवस्था के बारे में अपने विचार रखते थे। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद आप लोकपाल और लोकायुक्त कानून को भूल गए। इतना ही नहीं, दिल्ली विधानसभा में आपने एक सशक्त लोकायुक्त कानून बनाने की कोशिश तक नहीं की। और अब तो आप की सरकार ने लोगों का जीवन बरबाद करनेवाली, महिलाओं को प्रभावित करनेवाली शराब नीति बनाई हैं। इससे स्पष्ट होता है कि आपकी कथनी और करनी में फर्क हैं।

मैं इसलिए लिख रहा हूं ये पत्र
मैं यह पत्र इसलिए लिख रहा हूं कि हमने पहले रालेगणसिद्धी गांव में शराब को बंद किया। फिर कई बार महाराष्ट्र में एक अच्छी शराब की नीति बने इसलिए आंदोलन किए। आंदोलन के कारण शराब बंदी का कानून बन गया। जिसमें किसी गांव तथा शहर में अगर 51 प्रतिशत महिलाएं शराब बंदी के पक्ष में वोटिंग करती हैं, तो वहाँ शराब बंदी हो जाती हैं। दूसरा ग्रामरक्षक दल का कानून बन गया। जिसके माध्यम से महिलाओं की मदद में हर गांव में युवाओं का एक दल गांव में अवैध शराब के विरोध में कानूनी अधिकार के साथ कार्रवाई कर सकता हैं। इस कानून के तहत अंमल न करनेवाले पुलिस अधिकारी तथा एक्साइज अधिकारी पर भी कड़ी कार्रवाई करने का प्रावधान किया गया हैं। दिल्ली सरकार द्वारा भी इस प्रकार के नीति की उम्मीद थी। लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया।  आप लोग भी बाकी पार्टियों की तरह पैसा से सत्ता और सत्ता से पैसा इस दुष्टचक्र में फंसे हुए दिखाई दे रहे हैं। एक बड़े आंदोलन से पैदा हुई राजनीतिक पार्टी को यह बात शोभा नहीं देती।
(नोट-लेटर को संपादित किया गया है)
 

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