सार

न्यूज पोर्टल तहलका के मालिक, संस्थापक तरुण तेजपाल और दो पत्रकारों को मानहानि मामले में दिल्ली HC ने दो करोड़ रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है। न्यूज पोर्टल ने कथित स्टिंग ऑपरेशन किया था जिसमें सैन्य अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।

नेशनल डेस्क। न्यूज पोर्टल तहलका के तरुण तेजपाल को दिल्ली हाईकोर्ट से झटका लगा है। अदालत ने सैन्य अधिकारी से जुड़े मानहानि मामले में तहलका और तेजपाल को दो करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है। हाईकोर्ट ने दिए गए फैसले में कहा कि 23 साल बाद माफी मांगना निरर्थक है। कई सालों तक सैन्य अधिकारी की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा। इसलिए ईमानदार ऑफिसर की प्रतिष्ठा धूमिल करने को लेकर उन्हें दो करोड़ का हर्जाना देना होगा।

2001 में किया था कथित स्टिंग ऑपरेशन

जस्टिस नीना बंसल कृष्ण ने रक्षा खरीद में हुए भ्रष्टाचार में सैन्य अधिकारी के शामिल होने का आरोप लगाने वाले न्यूज पोर्टल 'तहलका' द्वारा 2001 में किए गए फर्जी खुलासे के कारण अधिकारी की प्रतिष्ठा को हुई हानि पर दो करोड़ का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह राशि तहलका डॉट कॉम, इसके मालिक मेसर्स बफेलो कम्युनिकेशं, इसके मलिक तरुण तेजपाल और दो पत्रकारों अनिरुद्ध बहल व मैथ्यू सैमुअल द्वारा दी जाएगी। कोर्ट ने फैसले में कहा- ईमानदार सैन्य अधिकारी की छवि को खराब करने का इससे बड़ा कोई मामला नहीं हो सकता।

‘प्रतिष्ठा पर लगा दाग मिटानया नहीं जा सकता’

48 पेज के फैसले में अदालत ने कहा कि एक ईमानदार अफसर की प्रतिष्ठा को गंभीर चोट पहुंचाई गई। जिससे जनता के सामने न केवल उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई बल्कि चरित्र भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से खराब हुआ। जिसे ठीक नहीं किया जा सकता। फैसले में कहा गया है- अब्राहम लिंकन ने भी उद्धृत किया है कि सच्चाई को बदनामी के खिलाफ प्रमुख उपाय माना जाता है लेकिन सत्य में उस प्रतिष्ठा को बहाल करने की क्षमता नहीं होती जो समाज में एक व्यक्ति खो देता है। ये कड़वी वास्तविकता है। खोया हुआ धन अर्जित किया जा सकता है लेकिन प्रतिष्ठा पर लगा दाग नुकसान के अलावा कुछ और नहीं देता।

क्या है पूरा मामला ?

2001 में न्यूज पोर्टल तहलका डॉट कॉम ने 'ऑपरेशन वेस्ट एंड' नाम से कथित स्टिंग ऑपरेशन किया था। जिसमें मेजर जनरल एम.एम अहलूवालिया को डिफेंस डील के भ्रष्टाचार में शामिल होने का दावा किया था। स्टिंग में दिखाया था कि जब अंडरकवर जर्नलिस्ट ने डिंफेंस कॉन्ट्रेक्टर बनकर अहलूवालिया से संपर्क किया तो उन्होंने डिंफेंस डील को मंजूरी देने के लिए रिश्ववत के तौर पर 10 लाख रुपये मांगे। आरोप लगाया गया था कि मेजर जनरल ने पचास हजार रुपए पेशगी के तौर पर भी लिए। स्टिंग ऑपरेशन से भूचाल आ गया था। सेना ने भी मामले को गंभीरता से लिया और उनके खिलाफ कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी के आदेश दिए लेकिन कुछ साबित नहीं हो पाया। जिसके बाद आर्मी ऑफिसर ने तहलका, उसके संस्थापक और संबंधित पत्रकारों पर मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया और 22 साल बाद मेजर जनरल की जीत हुई।

ऑर्मी ऑफिसर के माथे से हटा कलंक

कथित स्टिंग ऑपरेशन ने मेजर जनरल अहलूवालिया की प्रतिष्ठा को तार-तार कर दिया। दो दशकों से ज्यादा वक्त तक दामन पर लगे दाग को मिटाने के लिए आर्मी ऑफिसर दिन रात एक करते रहे और आज दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले ने उन्हें इस दाग से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया। वादी के वकील चेतन आनंद ने कोर्ट के फैसले पर कहा कि सैन्य अधिकारी को कथित स्टिंग ऑपरेशन दिखाकर बदमान किया गया था। इसे गलत तरीके से प्रचारित किया गया था हालांकि कोर्ट ने फैसले ने सच उजागर कर दिया।