सार
एशियानेट न्यूज डायलॉग में इस बार हमारे साथ हैं भारत के पहले पेशेवर उल्का वैज्ञानिक डॉ. अश्विन शेखर। उनसे बातचीत की है एएन टीवीएम की सहयोगी एंजल मैथ्यू ने। आइए जानते हैं उल्काओं की दिलचस्प यात्रा के बारे में।
Dr. Aswin Sekhar. केरल के एक छोटे से कस्बे से निकलकर प्रसिद्ध खगोल भौतिकविद बनने तक सफर तय करने वाले डॉ. अश्विन शेखर ने सितारों और उल्काओं की रोचक यात्रा के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने अपनी प्रेरणा के बारे में बताया और यह भी जानकारी दी कि कैसे उनका नाम से एक छोटे से ग्रह का नाम रखा गया है। डॉ. अश्विन इस समय फ्रांस में पेरिस ऑब्जरवेटरी मे कार्यरत हैं। एशियानेट डायलॉग के लिए उनसे बातचीत की है एंजल मैथ्यू। आइए जानते हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
कैसे शुरू हुआ यह सफर
डॉ. अश्विन शेखर ने बताया कि मेरे नाम से ही एक छोटे से ग्रह का नाम पड़ा है। बाद में मेरे न्यूक्लियर साइंस के काम को कुछ वैज्ञानिकों ने सराहा और मुझे आगे बढ़ने में मदद की। एरिजोना अमेरिका में एक कांफ्रेंस के दौरान मेरे काम की तारीफ भी हुई। केरल के ही महान खगोलशास्त्री वाइना बापू ने मेरा काम देखा और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। जहां तक केरल की बात है तो यह दो नाम काफी प्रसिद्ध है लेकिन बहुत कम लोग ही उनके बारे में जानते हैं। वाइना बापू एस्ट्रोनॉमी के फाउंडर हैं और इस फील्ड में उनका महान योगदान रहा है। वे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने इंस्टीट्यूशन को बिल्ड किया और इस क्षेत्र में लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बने।
वेनू बापू के बारे में ज्यादा जानकारी की जरूरत
केरल के खगोल शास्त्री वेनू बापू को लेकर केरल में ज्यादा जानकारी नहीं है। कहीं-कहीं मीडिया में और सोशल मीडिया पर उनको लेकर चर्चा होती है लेकिन वेनू बापू के जीवन पर आधारित कुछ अच्छी मूवी बननी चाहिए। एक मूवी बनी थी, जिससे लोगों को उनके बारे में जानकारी मिली लेकिन अभी और काम होना चाहिए।
एस्ट्रोनॉमस क्या करते हैं
ज्यादातर लोग एस्ट्रोनॉमी आदि के बारे में फैमिलियर नहीं होते हैं। इसे लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में अश्विन शेखर ने कहा कि कई तरह की एस्ट्रोनॉमी होती है। कुछ लोग गैलेक्सी को लेकर काम करते हैं, कुछ स्पेस में काम करते हैं, कुछ फिजिक्स से जुड़े काम करते हैं। कॉस्मोलॉजी, क्लाइमेट चेंज, वेदर साइंस, मेट साइंस यह सब कुछ इसी से जुड़ा हुआ है। हम लोग स्पेस आदि के लिए काम करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि सोलर सिस्टम कैसे काम करता है। इल्यूशन क्या होता है। यह इसलिए होता है ताकि यूनिवर्स को और बेहतर बनाया जा सके।
कैसे इस फील्ड को चुना
डॉ. अश्विन ने बताया कि जैसा कि ज्यादातर यंग किड्स आसमान के तारों को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं, वैसे ही मेरे दिमाग में भी यह चलता था। मैं केरल के एक छोटे से कस्बे से बिलांग करता हूं। पढ़ाई के दौरान ही एक बार में अपने अंकल के यहां नागालैंड, कोहिमा गया। वहां का वातावरण, प्रकृति अलग दिखी। वहां का आसमान बहुत साफ दिखाई देता था। फिर मेरी रूचि इस तरफ बढ़ गई। इसके बाद कई लक फैक्टर ने काम किया और मैं इस फील्ड में आ गया।
कैसी रही केरल से पेरिस तक की जर्नी
मेरी स्कूलिंग छोटे से कस्बे में हुई फिर मैंने त्रिवेंद्रम से अपनी बीएससी पूरी की और तमिलनाडु से एमएससी किया। फिर मैंने न्यूक्लियर फिजिक्स की पढ़ाई कर्नाटक बेंगलुरू से की। फिर मैंने एस्ट्रो फिजिक्स बेंगलुरू और चेन्नई में काम किया। इसी दौरान मुझे सौभाग्य से ब्रिटिश स्कॉलरशिप मिली। फिर मैंने लंदन के क्वींस यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की, पीएचडी पूरी की। इस दौरान मुझे कई फेमस एस्ट्रोनॉमस के साथ काम करने का मौका मिला। न्यूक्लियर साइंस में काम करते वक्त ही हमने नार्वे से फिलॉस्फी पूरी की। फिर मैं कुछ साल के यूके लौटा और वहां काम करने लगा। इसी बीच मुझे पेरिस में काम करने का ऑफर मिला और अब वहीं पर रिसर्च को आगे बढ़ा रहा हूं। मैंने बहुत बड़े संस्थानों जैसे आईआईएम, आईआईटी, हार्वर्ड से पढ़ाई नहीं की। मैं नॉर्मल स्कूलों से पढ़ता रहा, नॉर्मल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। यह जर्नी बहुत लंबी रही है और कई उतार-चढ़ाव भी मिले हैं।
छोटे ग्रह का नाम रखा गया अश्विन
इस सवाल के जवाब में डॉ. अश्विन शेखर ने कहा कि यह मेरे लिए गर्व की बात है और इससे बहुत प्रोत्साहन मिलता है। मुझे यह नहीं पता था कि मेरा नाम रिकमंड किया गया है क्योंकि यह पूरा प्रोसेस बहुत ही गोपनीय तरीके से होता है। अमेरिका एरिजोना में हुए कांफ्रेंस के दौरान जब हम डिनर कर रहे थे, उसी वक्त अमेरिकन साइंटिस्ट ने मेरे नाम का ऐलान किया। यह मेरे लिए सरप्राइजिंग रहा। मैं जिस फील्ड में काम करता हूं, उसमें पूरी दुनिया में कुल मिलाकर करीब 100 लोग ही काम करते हैं। ऐसे में हमें सम्मान मिला तो यह बहुत बड़ा अचीवमेंट भी है।
बच्चों को इस फील्ड के लिए कैसे मोटिवेट किया जाए
डॉ. अश्विन शेखर ने बताया कि इसका सबसे आसान तरीका यह है कि बच्चों को साइंस म्यूजियम का टूर कराया जाए। खगोल विज्ञान और हमारे सौर मंडल के बारे में जिज्ञासा पैदा की जाए। केरल में भी बहुत सारे साइंस म्यूजियम और प्लैनेटोरियम हैं। देश के दूसरे राज्यों में भी हैं, तो जब भी मौका मिले तो बच्चों को वहां जरूर ले जाएं। जैसे अमेरिका में नासा सेंटर पब्लिक के लिए खुलता है, इससे लोगों में स्पेस को लेकर बहुत सारी जानकारी मिलती है। ऐसे ही बच्चों को इन स्थानों का विजिट जरूर कराना चाहिए।
ग्रामीण एरिया में क्या किया जा सकता है
डॉ. अश्विन ने बताया कि ग्रामीण एरिया में एस्ट्रोनॉमी, स्पेस एक्टिविटीज, सौरमंडल के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मीडिया को आगे आना होगा। नेशनल मीडिया सहित लोकल लैंग्वेज मीडिया में भी इसके बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। बहुत सारे लोग हैं, जिनकी रूचि इस फील्ड में होती है लेकिन उन्हें जानकारी नहीं मिल पाती कि आग क्या करना चाहिए। इसके लिए मीडिया को आगे आकर जागरूकता पैदा करना होगा।
ज्यादा से ज्यादा लोग इस फील्ड में आने चाहिए
प्लैनेट, कॉसमॉस, स्पेस कोई इमेजनरी चीजें नहीं हैं। यह रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है। इस फील्ड में अभी और रिसर्य की जरूरत है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस फील्ड में आना चाहिए। आने वाले समय में यह क्षेत्र और भी पॉपुलर होने वाला है। हमें बच्चों के टेक्स्ट बुक्स में प्लैनेट, गैलेक्सी, ब्लैक होल जैसे विषय, फोटो के साथ शामिल करने चाहिए। जहां तक मेरे नाम से प्लैनेट के नाम की बात है तो यह नंबर रैंडमली लिया गया है, इसके पीछे कोई कोड नहीं है।
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