सार

कर्नाटक के मूर्तिकार अरूण योगीराज को आज देश-दुनिया के लोग जानते हैं। इस मूर्ति कलाकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो प्रोजेक्ट्स को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पहला केदारनाथ में आदिगुरू शंकराचार्य की मूर्ति और दूसरा इंडिया गेट पर लगी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति। 

Exclusive Interview Arun Yogiraj. एशियानेट न्यूज डायलॉग्स में इस बार हमारे साथ हैं इंडिया गेट पर लगे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा बनाने वाले अरूण योगीराज। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 सितंबर 2022 को इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की इसी प्रतिमा का अनावरण किया। लोगों ने जब नेताजी की यह प्रतिमा को देखा तो उनके जेहन में बस एक ही नाम गूंजा कि आखिर कौन हैं अरूण योगीराज? अरूण ने केदारनाथ में आदि गुरू शंकराचार्य की प्रतिमा को भी बनाने का काम किया है। आइए जानते हैं आखिर कौन हैं अरूण योगीराज और क्या है उनकी सफलता की कहानी। इनसे बात की है एशियानेट न्यूज की भावना नागैया ने...

योगीराज के काम पर देश को गर्व
पूरा देश अरूण योगीराज और उनके काम पर गर्व कर रहा है। यह ऐसा काम है जिसे सदियों तक याद रखा जाएगा। इसके बारे में अरूण बताते हैं कि- मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मैं एक मूर्तिकार परिवार में पैदा हुआ। मेरे दादा और पिता ने मुझे ट्रेंड किया है। उन्होंने ट्रेंड किया है कि पत्थर में कैसे जीवन को तराशा जा सकता है। यही वजह है कि मुझे भारत सरकार और संस्कृति मंत्रालय ने इस प्रोजेक्ट के लिए चुना। मैं उनको शुक्रिया कहता हूं। जब इसका अनावरण पीएम मोदी द्वारा किया गया तो योगीराज ने कहा कि यह अभी भी मेरे लिए सपने की तरह है। मेरे पूरे परिवार ने उस दिन को सेलिब्रेट किया। यह किसी भी आर्टिस्ट के लिए गर्व का क्षण होता है। मुझे यह मौका मिला और मैंने यह काम पूरा किया, यह सब किसी सपने के सच होने जैसा है। यह मेरे लिए प्राउड मोमेंट है।

आखिर क्यों चुना पारंपरिक काम 
हर युवा की तरह अरूण के सामने भी कई तरह के प्रोफेशन को चुनने का मौका था लेकिन परिवार के पारंपरिक काम को ही क्यों चुना? इस पर अरूण कहते हैं कि मेरा बचपन ही इन पत्थरों के साथ बीता है। मैं जब छोटा था तो ब्रेकफास्ट करने के बाद पिता के स्टूडियो चला जाता था और पत्थरों के साथ खेलता था। 11 साल की उम्र में मैंने इस काम को सीरीयसली लेना शुरू किया। मेरे पिता कभी नहीं कहते थे कि आओ और काम करो लेकिन मैं खुद ही जाता था। 11 साल की उम्र में मैं सीनीयर मूर्तिकारों से कंपीटिशन करने लगा। मेरा एजुकेशन और काम साथ-साथ चला। मैंने एमबीए कंपलीट किया और जॉब के लिए बेंगलुरू चला गया। वहां पहुंचने के बाद मैंने पहली बार महसूस किया कि मैं क्या काम करना चाहता हूं। फिर मैं जॉब छोड़कर घर आया और मां को बताया। तब मेरी मां रोने लगीं। वे नहीं चाहती थीं कि पिता की तरह मैं भी यही काम करूं। क्योंकि उन्होंने देखा था कि वे दिन-रात काम करते हैं, धूल-डस्ट से सने रहते हैं। मां चाहती थीं कि मैं व्हाइट कॉलर जॉब करूं। इसलिए उन्हें मनाने में दो साल लग गए। सच कहूं तो यह मैरा पैशन बन गया है।

कैसे मिला आदिगुरू शंकराचार्य की मूर्ति बनाने का मौका
अरूण बताते हैं कि यह काफी रोचक कहानी है। केदारनाथ का रिनोवेशन कराने वाली कंपनी ने देश भर के बेहतर मूर्तिकारों की खोज शुरू की। कंपनी का बेस कर्नाटक में भी है। तब हंपी यूनिवर्सिटी के हेड ऑफ डिपार्टमेंट ने मुझसे मेरे पहले के काम के कुछ सैंपल मांगे। मैंने वह फोटोग्राफ्स उन्हें भेज दिया। फिर सारे प्रोसेस के बाद मैं कर्नाटक से चुना गया। फिर मुझसे कहा गया कि आदिगुरू शंकराचार्य की एक छोटी मूर्ति बनाओ जिसे प्रधानमंत्री को दिखाया जाएगा। मुझे 20 दिन का समय दिया गया। इस दौरान हमने काफी स्टडी किया और टाइम से वह मूर्ति तैयार की। तब देशभर से करीब 8 मूर्तियां प्रधानमंत्री के सामने पेश की गईं। कुछ दिनों बाद मुझे पीएमओ से कॉल आया कि आपकी मूर्ति सेलेक्ट कर ली गई है और इसमें किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं चाहते हैं। यह हमारे लिए सबसे ज्यादा खुशी का दिन था। परिवार में मिठाईयां बांटी गईं। 

कृष्णशिला पत्थरों का किया प्रयोग
योगीराज ने कहा कि हमने कृष्णशिला पत्थर का यूज किया है। यह आग, पानी, हवा के प्रभाव से मुक्त है। इसका टेस्ट भी किया गया है। सारे टेस्ट के बाद इस पत्थर का चयन किया गया। मेन स्टेच्यू बनाने से पहले हमने करीब 1 हजार प्रतिमाएं बनाईं। मेरे पिता कभी मेरे काम की तारीफ नहीं करते। वे हमेशा कहते कि यह करेक्ट करो, यहां करेक्ट करो। लेकिन जब हमने यह फाइनल स्टैच्यू तैयार किया तो पिताजी की आंखों से आंसू आ गए, उन्होंने कहा तुमने आज मेरे पिता का नाम रोशन कर दिया। यह पहला मौका था जब मेरे पिता ने मेरे काम की तारीफ की थी।

केदारनाथ में आईं कैसी दिक्कतें
केदारनाथ का मौसम बिल्कुल अलग होता है, इस दौरान कैसी दिक्कतें आई। इस पर योगीराज ने कहा कि इसके इंस्टालेशन में करीब 1 महीने का वक्त लगा। इससे पहले हमने वहां के मौसम आदि की पूरी जानकारी इकट्ठा की। हमने ऑक्सीजन लेवल तक की जानकारी की। हमारे साथ जो कलाकार थे सभी 35 साल से नीचे के थे सिर्फ मैं ही 38 वर्ष का रहा। वहां माइनस 4 डिग्री के तापमान में काम करना काफी मुश्किल था। लगातार बारिश भी होती थी। हमारे पास संसाधन कम थे, वहां के हालात के अनुसार काम बेहद मुश्किल था लेकिन हमने महीने भर में यह काम सफलतापूर्वक पूरा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका अनावरण किया और वे करीब आधे घंटे तक वहां बैठे रहे। फिर मुझे पीएमओ से कॉल आई कि प्रधानमंत्री मोदी को यह बेहद पसंद आया है और मुझे जल्द ही उनसे मिलने का मौका मिलेगा। 

पत्थर में कैसे फूंकते हैं जान
पत्थर की मूर्ति में भाव-भंगिमा का जीवंत चित्रण करना सबसे मुश्किल है। मूर्तिकार मूर्तियां तो बना देते हैं लेकिन उसमें वह भाव व इमोशन के साथ लाइफ क्रिएट करना कितना मुश्किल होता है। इस पर अरूण कहते हैं कि यह पैशन की बाद है कि आप मूर्ति में उस व्यक्ति को कैसे देखते हैं, किस तरह से महसूस करते हैं। मैं पहले पत्थर को सुबह-शाम और रात को देखता हूं कि यह तीनों समय में कैसा दिखाई पड़ता है। यह आपके भीतर की दिवागनी है जो मूर्ति में जान डालती है। यह फील करने की बात है। वे कहते हैं कि मैं हर तरह की मूर्तियां बनाना पसंद करता हूं जिसे पब्लिक देखना चाहती है। कई बार लोग मूर्तियों में खामियां ढूंढते हैं। मैं क्रिटीसिज्म का वेलकम करता हूं। हम भी मूर्तियों में कमियां ढूंढते हैं लेकिन मेरी पूरी कोशिश होती है 1-1 इंच का ख्याल रखा जाए और उसी के अनुसार काम करता हूं। यदि मुझे 7 फीट की मूर्ति बनानी है तब भी 1-1 इंच के साथ न्याय करने की कोशिश रता हूं। मैं परफेक्ट नहीं हूं लेकिन गलतियों को कम करने की कोशिश करता हूं।

कैसे और कब हुई पीएम मोदी से मुलाकात
आदिगुरू शंकराचार्य की मूर्ति बनाने के बाद पीएम मोदी से मुलाकात हुई और फिर अरूण को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति बनाने का मौका मिला। पीएम मोदी से मुलाकात के बारे में अरूण ने कहा कि जनवरी में जब प्रधानमंत्री मोदी ने सुबाष चंद्र बोस के होलोग्राम को अनावरण किया तभी से मैं उनकी मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया था। फिर अप्रैल में पीएमओ से कॉल आई और मेरी मुलाकाब पीएम मोदी से हुई। पीएम मुझसे मिले और कहा कि कैसे हैं आप। मैंने कहा अच्छा हूं सर। फिर उन्होंने पूछा कि आदि शंकराचार्य की मूर्ति का क्या हाल है तो मैंने कहा कि वह बर्फ से पूरी तरह ढंक गया। मुझे अच्छा लगा कि पीएम मोदी को मेरा काम याद है। फिर पीएम ने ट्वीट भी किया कि अरूण योगीराज से मुलाकात हुई। यह उनका बड़प्पन है कि मेरे काम को तवज्जो दी गई।

नेताजी की प्रतिमा बनाने पर कैसा लगा
अरूण योगीराज ने बताया कि यह काम मैंने जनवरी में शुरू किया। दरअसल, संस्कृति मंत्रालय ने दुनियाभर के बेहतर मूर्तिकारों से वीडियो कांफ्रेंसिंग की। वहां मैंने कहा कि 6 महीने में ग्रेनाइट की मूर्ति तैयार कर सकता हूं और मैं पूरी तरह से बेहतर काम करने की कोशिश करूंगा। कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री ने इंडिया गेट से संबोधन किया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ग्रेनाइट प्रतिमा का अनावरण यहां किया जाएगा। तब मुझे लगा कि मैं इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हूं। दरअसल, 280 टन के ग्रेनाइट पत्थर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा को तैयार करना था। यह भारत में ग्रेनाइट की सबसे बड़ी मूर्ति है। हमने दिन-रात काम किया। हमने 6 महीने का काम 2 महीने में पूरा करने की रणनीति बनाई। तब तमिलनाडु, राजस्थान आदि से कलाकार बुलाकर तीन शिफ्टों में काम किया शुरू किया गया। यह हमारे लिए खुशी का पल भी था और कभी-कभी तनाव भी होता था। शुरू में तो पत्थर काटने में ही समस्या हुई। फिर मैंने मंत्रालय से यह इश्यू बताई। वहां से मुझे कहा गया कि हफ्ते भर पत्थर को समझो और काम करते रहो। यहां का तापमान भी काफी ज्यादा रहता है। काम करने में कई दिक्कतें आईं। फिर मैंने यह सोचना बंद कर दिया कि प्रधानमंत्री इसका उद्धाटन करेंगे। इंडिया गेट पर यह लगाया जाएगा। मैंने सोच लिया कि पहले भी इसे बना चुका हूं। सारे प्रेशर को दूर करके ही मुझे इसमें सफलता मिली।

आगे क्या करना चाहेंगे योगीराज
अरूण योगीराज ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी पूरे प्रोसेस का वीडियो देखा और कहा कि वे सभी खूब मेहनत कर रहे हैं। बाद में पीएमओ के अधिकारी भी आए और काम देखा। इसके अलावा एक कमेटी भी थी जिसके लोग हमारे पास आते थे और प्रोसेस देखते थे। मेरा सबसे पहला और बड़ा प्रोजेक्ट आदिगुरू शंकराचार्य का था। तब इसके कुछ महीने बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा बनाने का सौभाग्य मिला। अब आगे जो भी मौके मिलेंगे, मैं उसे स्वीकार करूंगा। भारत में इस कला का मास्टरपीस की बात करें तो वह बेलुरू है। जब कभी मैं यह सोचता हूं कि मैं अच्छा काम करता हूं, बहुत बढ़िया काम कर रहा हूं तब बेलुरू जाता हूं और समझ में आता है कि मेरा काम कुछ भी नहीं है।

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