सार

हाल ही में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कांग्रेस को रिफॉर्म करने के कई फॉर्मूले दिए थे। उनके पार्टी में शामिल नहीं होने के बाद पार्टी के लिए गुजरात और आम चुनावों में चुनौतियां बढ़ गई हैं। 

नई दिल्ली। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore denied to jaoin congress) ने कांग्रेस में शामिल होने के प्रस्ताव को पुरानी पार्टी में परिवर्तनकारी सुधारों की आवश्यकता का हवाला देते हुए ठुकरा दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कांग्रेस के उद्देश्य में एक बड़ा झटका हो सकता है। आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव और साथ ही 2024 के आम चुनाव की तैयारियों को झटका लग सकता है। हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस को किशोर की रणनीति में उम्मीद दिख रही थी। 

पार्टी नेता नहीं दे रहे प्रशांत को महत्व
हालांकि, कांग्रेस के नेता पीके के पार्टी में शामिल होने से इनकार करने को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं। खासकर पार्टी के स्पेशल एक्शन ग्रुप में उनकी भूमिका के आधार पर, जिसे 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए तैयार किया गया है। कांग्रेस 2024 में होने वाले आम चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए एक नई रणनीति तैयार कर रही है। 13 मई से 15 मई तक होने वाले उदयपुर नवसंकल्प शिविर में पार्टी के भविष्य का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन उससे पहले प्रशांत किशोर के सुझावों को लागू करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा के लिए एक एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बनाने का फैसला किया। 

पीके की अनुपस्थित में उनके फॉर्मूले लागू करना बड़ी चुनौती
पीके ने कांग्रेस को 370 लोकसभा सीटों पर फोकस करने और अपनी मीडिया रणनीति बदलने की सलाह दी थी। उन्हें एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप के सदस्य के रूप में पद ऑफर किया गया था, लेकिन उन्होंने कांग्रेस को झटका दिया! सवाल यह है कि क्या कांग्रेस उनके सुझावों उनकी अनुपस्थिति में लागू कर पाएगी। 

नए सहयोगियों को साथ लाने के लिए वार्ताकार कौन होगा
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को विपक्षी दलों के केंद्र में रखकर भाजपा के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन बनाने की रणनीति भी शेयर की थी। सूत्रों ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस के कुछ पुराने सहयोगियों को छोड़ने और बिहार में जदयू, बंगाल में टीएमसी और तेलंगाना में टीआरएस सहित नए सहयोगियों के साथ हाथ मिलाने का प्रस्ताव रखा था। इन पार्टियों के अलावा, पीके के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी, और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित अन्य लोगों के साथ अच्छे संबंध हैं। कांग्रेस नेता अहमद पटेल की निधन और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को दरकिनार करने के बाद, कांग्रेस के पास एक मजबूत नेता की कमी थी, जो अन्य दलों के साथ बातचीत कर सके। वर्तमान में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी खुद पार्टी के अन्य नेताओं के साथ बातचीत कर रही हैं।

गठबंधन योजना पर असर पडे़गा
पीके के पार्टी में शामिल नहीं होने के फैसले से कांग्रेस की गठबंधन योजना पर असर पड़ने की संभावना है। सूत्रों ने बताया कि एनसीपी, शिवसेना जैसे सहयोगी दलों ने समय-समय पर कांग्रेस से यूपीए की कमान छोड़ने की मांग की है।
किशोर के फैसले ने गुजरात में कांग्रेस के लिए संकट खड़ा कर दिया है। कांग्रेस इस साल के अंत तक होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदार समुदाय के नेता नरेश पटेल को पार्टी में शामिल कर मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की प्रक्रिया में है। सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे पीके की रणनीति थी।

गुजरात चुनाव की चुनौती भी सामने
नरेश पटेल ने कांग्रेस के सामने प्रशांत किशोर को चुनाव प्रचार की कमान सौंपने की शर्त रखी थी। शुक्रवार को नरेश पटेल दिल्ली आए और उनसे मुलाकात की। उनका कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिलना तय था, लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई। जाहिर है, कांग्रेस की 'गुजरात योजना' धराशायी होती दिख रही है। हालांकि, कांग्रेस के कुछ सूत्र दावा कर रहे हैं कि नरेश पटेल पार्टी में शामिल होंगे।

कांग्रेस के दरवाजे अभी भी पीके के लिए खुले
चुनाव और गठबंधनों के अलावा, पीके कांग्रेस के भीतर बड़े बदलावों की वकालत कर रहे थे, जो अब होने की उम्मीद न के बराबर है। प्रशांत के इनकार के बाद कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा-कांग्रेस ने मूल्यों और काम से पूरे देश में एक पहचान बनाई है। जब हम कांग्रेस की बात करते हैं, तो हम व्यक्तिगत स्तर से ऊपर उठकर मूल्यों की बात करते हैं। रणनीतिकारों से बातचीत जारी है। अलग-अलग समय। हम सभी के सुझावों को स्वीकार करते हैं। खेड़ा ने कहा कि प्रशांत किशोर के पार्टी में शामिल न होने फैसले में कोई बुराई नहीं है। हालांकि, भविष्य में पीके के कांग्रेस के लिए काम करने की संभावना से जुड़े सवाल पर खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस के दरवाजे कभी बंद नहीं होते।