सार

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से 5 साल पहले लापता बच्चा फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर की मदद से मिल गया। बच्चा असम के बाल कल्याण केंद्र में था। पुलिस के मुताबिक, सोम सोनी 14 जुलाई 2015 को प्रयागराज के हंडिया से लापता हो गया। एक हफ्ते बाद असम के गोलपारा में मिला, जिसके बाद उसे स्थानीय बाल कल्याण केंद्र भेज दिया गया। लेकिन तेलंगाना पुलिस द्वारा बनाए गए दर्पण सॉफ्टवेयर की मदद से बच्चे की पहचान की गई और आज वह अपने मां-पिता के पास है।

हैदराबाद. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से 5 साल पहले लापता बच्चा फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर की मदद से मिल गया। बच्चा असम के बाल कल्याण केंद्र में था। पुलिस के मुताबिक, सोम सोनी 14 जुलाई 2015 को प्रयागराज के हंडिया से लापता हो गया। एक हफ्ते बाद असम के गोलपारा में मिला, जिसके बाद उसे स्थानीय बाल कल्याण केंद्र भेज दिया गया। लेकिन तेलंगाना पुलिस द्वारा बनाए गए दर्पण सॉफ्टवेयर की मदद से बच्चे की पहचान की गई और आज वह अपने मां-पिता के पास है।

कैसे काम करता है दर्पण सॉफ्टवेयर?
तेलंगाना पुलिस द्वारा बनाए गए चेहरा पहचानने वाले दर्पण सॉफ्टवेयर में देश के विभिन्न बचाव केंद्रों मे रह रहे बच्चों और उनके परिजनों का डाटा रखा जाता है। इसके अलावा पुलिस स्टेशन में लापता बच्चों की जो रिपोर्ट लिखाई जाती है, उसका भी डाटा रहता है। फिर दोनों का डाटा मैच कराकर बच्चे की पहचान की जाती है।

बच्चे का मां से मिलने का वीडियो वायरल
पुलिस ने जब पांच साल पहले लापता बच्चे को उसकी मां से मिलाता तो दोनों रो पड़े। सोशल मीडिया पर बच्चे का अपने परिवार से मिलने का वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में दिख रहा है कि लड़के की मां और पिता कैसे फूट फूटकर रो रहे हैं। 
 
2018 में लॉन्च किया गया था दर्पण
दर्पण फेस रिकग्निशन सॉफ्टवेयर को 2018 में लॉन्च किया गया था। इसमें देश भर के विभिन्न बचाव घरों में दर्ज बच्चों और व्यक्तियों का डाटा है।

तेलंगाना पुलिस के मुताबिक, हम देश भर में दर्ज एफआईआर से और सीसीटीएनएस (क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स) से डाटा एकत्र करते हैं। चाइल्ड पोर्टल को ट्रैक करते हैं। दूसरी तरफ हमें देश भर के चाइल्ड केयर संस्थानों और महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा ट्रैक चाइल्ड पोर्टल से ट्रेस किए गए बच्चों की तस्वीरें मिलती हैं। सॉफ्टवेयर में लापता और ट्रेस किए गए बच्चों को मैच किया जाता है। इस टूल की मदद से अब तक 23 बच्चों को उनके परिवारों से मिलाया जा चुका है।