सार

एशियानेट न्यूज नेटवर्क को दिए इंटरव्यू में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिमी देशों के लिए मन में बनी नाकात्मक भावना को छोड़ने और विश्व की चुनौतियों को समझने पर जोर दिया। 

नेशनल डेस्क। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के शुभारंभ के सिलसिले में केरल के तिरुअनंतपुरम पहुंचे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एशियानेट न्यूज नेटवर्क को दिए इंटरव्यू में पश्चिमी देशों पर बड़ा बयान दिया और कहा कि पश्चिमी देशों को लेकर आज भी नकरात्मक धारणा बनी हुई है। इस सिंड्रोम से सबको बाहर निकलने की जरुरत है। जयशंकर ने कहा कि एशियाई और अफ्रीकी बाजारों में सस्ते उत्पादों की बाढ़ पश्चिमी देशों की वजह से नहीं आई है। इसलिए हमें हर बात का ठीकरा पश्चिमी देशों पर फोड़ने की मानसिकता को छोड़ना होगा और आगे बढ़ना होगा।

'हमें सिंड्रोम से बाहर निकलने की जरुरत है'

विदेश मंत्री ने आगे कहा कि, पहले की तुलना में दुनिया और अधिक जटिल हो गई है। समस्याएं भी उतनी जटिल हैं। आज दुनिया के सामने जो मुद्दे हैं वो कुछ मिनटों में खड़े नहीं हुए हैं। इन्हें बनने में 15 से 20 साल का वक्त लगा है। ऐसे में कई देशों में सस्ते उत्पादों की बाढ़ आ गई। जिसके कारण उनके उत्पादों को एक्सपोजर नहीं मिल पाया। इन देशों में इसलिए गुस्सा पनप रहा है क्योंकि इन देशों के उत्पादों का प्रयोग दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए किया जा रहा है लेकिन हमें अब ये समझना होगा कि इस स्थिति के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

पश्चिमी देश नहीं है समस्या- जयशंकर

जयशंकर ने ये साफ किया है कि हमें 1980-90 की संकीर्ण मानसिकता से निकलना होगा और दुनिया की चुनौतियों को पहचानना होगा। उन्होंने कहा आप भारत को ले लीजिए जब बाजार जाते हैं दुकानदारों और कारीगरों से सामान लेते हैं तो आपको लगता है वे पश्चिमी देशों के दबाव में है? बाजार का सही प्रयोग और सब्सिडी के जरिए कारीगरों को निखारने के मौका मिल रहा है। वह अपने उत्पाद खुद तैयार कर रहे हैं । ये पश्चिमी देशो से नहीं आ रहे हैं बल्कि देश में ही बनाएं जा रहे हैं। इस दौरान उन्होंने इस बात को भी साफ कर दिया वे पश्चिमी देशों की वकालत या पैरवी नहीं कर रहे हैं।

'ग्लोबल साउथ वैश्विक व्यवस्था नहीं'

विदेश मंत्री ने कहा कि आज का भारत विकास की नई इबारत लिखा रहा है। आत्मविश्वास से भरा हुआ है। कई अंतर्राष्ट्रीय इवेंट की अगुवाई कर रहा है। जी-20 इसका उदाहरण हैं। वहीं उन्होंने ग्लोबल साउथ पर कहा कि, भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर और कई देशों को एक साथ लाकर अपने एजेंडे को आकार दिया है। हालांकि ग्लोब साउथ की कोई परिभाषा नहीं और भारत ने ये कभी नहीं की वह ग्लोबल साउथ का नेता है।

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