सार

सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज नेटवर्क की व्यापक जमीनी मौजूदगी इसे देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज पकड़ने में सक्षम बनाती है। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का पहला एपिसोड, जो आपके लिए लाया है दो चैनलों, म्यूजिकल चेयर और दो अलग-अलग फ्रेम की कहानी।

From India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज नेटवर्क की व्यापक जमीनी मौजूदगी इसे देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज पकड़ने में सक्षम बनाती है। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का पहला एपिसोड, जो आपके लिए लाया है दो चैनलों, म्यूजिकल चेयर और दो अलग-अलग फ्रेम की कहानी।

ब्रेकिंग न्यूज : 

जब से राज्यसभा और लोकसभा चैनलों का संसद टीवी के रूप में विलय हुआ, तब से दोनों के बीच रस्साकशी एक दिलचस्प खेल रही है। अब तक, लोकसभा का पलड़ा भारी था, लेकिन कुछ प्रोटोकॉल बहुत तेजी से लोकसभा और राज्यसभा के अधिकारियों के लिए एक गोर्डियन गांठ बनते जा रहे हैं। राज्यसभा का मुखिया अब क्रम या प्रधानता में नंबर 2 है, जबकि उसका लोकसभा समकक्ष नंबर 6 की पोजिशन पर है।

स्वाभाविक तौर पर संसद के दोनों सदनों में कामकाज की प्रकृति को देखते हुए स्क्रीन टाइम भी आनुपातिक होगा। दिलचस्प बात ये है कि पावर पोर्टल्स में कानाफूसी से संकेत मिलता है कि इस बात पर नजर रखने में व्यस्त हैं कि किसे कितनी देर तक दिखाया गया। यहां तक कि दोनों सचिवालयों के अधिकारी अपने-अपने बॉस के स्क्रीन टाइम को दूसरे की तुलना में कम होने से डरते हैं।

शूट एट साइट..

मौका था विजय दिवस का। आर्मी हाउस में सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे द्वारा आयोजित वार्षिक कार्यक्रम में सेना के बड़े अफसर औपचारिक यूनिफॉर्म और चमचमाते पदकों में नजर आए। हालांकि, इस दौरान नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह की दबी हुई शारीरिक भाषा साफ नजर आ रही थी। वो पहले विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी के पीछे बैठे। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने से ठीक पहले, सबसे आगे वाली लाइन में बाएं कोने की ओर चले गए। 

हालांकि, जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गणमान्य लोगों का अभिवादन किया तो नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ बातचीत में मशगूल नजर आए। चीफ जस्टिस को प्रधानमंत्री के साथ भी बातचीत करते देखा गया। कार्यक्रम में जहां लोगों को मोबाइल ले जाने की परमिशन नहीं थी, वहीं डिप्लोमेटिक कोर को इससे अलग रखा गया था। डिप्लोमेटिक कोर पीएम के साथ सेल्फी खिंचाने के लिए काफी उत्साहित नजर आई। 

अनरिटन 1000 शब्द..

कैप्चर किए गए हर एक पिक्सल की व्याख्या करने वाले शब्दों से कहीं ज्यादा, कुछ तस्वीरें मन में एक अलग तरह के विचार पैदा करती हैं। हाल ही में वायरल हुई इस तस्वीर में मशहूर राजनैतिक हस्तियों को देखकर कुछ ऐसे ही विचार अनायास मन में आते हैं।

इस तस्वीर में सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई के महासचिव डी राजा को प्रधानमंत्री के साथ हल्के-फुल्के पलों को शेयर करते हुए देखा जा सकता है। वास्तव में, प्रधानमंत्री यहां दो कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच सैंडविच की तरह हो गए थे। हालांकि, यह बीजेपी कार्यकर्ताओं, खासकर केरल के कार्यकर्ताओं के लिए बिल्कुल सही राजनीतिक बारूद था। यहां तक ​​कि जो पत्रकार इस दृश्य को भौंहें चढ़ाकर देख रहे थे, वे भी बातचीत के उन सार तत्व को जानने के लिए बेचैन थे, जो उस पल में घटित हुए थे। 

किसी और को यह मौका प्रधानमंत्री से शायद ही मिलेगा। स्वाभाविक रूप से, पत्रकारों के पास वामपंथी नेताओं से पूछने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था। दोनों ही प्रधानमंत्री के राजनीतिक विरोधी माने जाते हैं। लेकिन हमें जो जानकारी मिली, उससे पता चला कि दरअसल, यह प्रधानमंत्री की एक तीखी लेकिन शरारत भरी टिप्पणी थी, जिसने सभी को चौंका दिया था। "मैं तुम्हें अक्सर नहीं देखता, तुम शायद मुझसे दूर होने की कोशिश कर रहे हो, है ना?" जब कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने ये सुना, तो दोनों जोर-जोर से हंस पड़े और पीएम का हाथ पकड़कर पूरी राजनीतिक क्षमता के साथ फोटो कम्प्लीट करने में लग गए।

पास्ट कंटीन्यूअस टेंस..

लेकिन दूसरी तस्वीर में मोदी बिल्कुल अलग थे। यहां वो अभिवादन करते नजर आ रहे थे। इस तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व्हीलचेयर पर बैठे पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के साथ बेहद दोस्ताना तरीके से बातचीत करते हुए नजर आ रहे हैं। बाद में, देवेगौड़ा ने मीडिया को बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ कर्नाटक में दो क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा की, जिससे कर्नाटक चुनाव की पूर्व संध्या पर राजनीतिक सुगबुगाहट शुरू हो गई।

इस पल ने मोदी-गौड़ा मुलाकात के गवाह रहे एक अन्य नेता की कुछ यादें भी ताजा कर दीं। संयोग से, वह उस बैठक में भी मौजूद थे, जिसने 1996 में देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री के रूप में चुना था। दूसरे शब्दों में, ये वो दिन था, जब ऐतिहासिक भूल (जैसा कि सीपीएम ने बाद में स्वीकार किया था) का जन्म हुआ था।

हालांकि वीपी सिंह का नाम शुरू में संयुक्त मोर्चे के संभावित पीएम के रूप में उल्लेखित किया गया था। उन्होंने बदले में ज्योति बसु का प्रस्ताव रखा, जो पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे। लेकिन सीपीएम केंद्रीय समिति ने इस प्रस्ताव को दो बार खारिज कर दिया, जिससे नेताओं को नई दिल्ली के तमिलनाडु भवन में एक और हंगामे के लिए मजबूर होना पड़ा।

आज्ञाकारी ज्योति बसु की निगाहें उनके आसपास के अन्य चेहरों पर उठीं और वहां के प्रमुख नेताओं- जीके मुपनार और देवेगौड़ा पर टिक गईं। उनकी पहली पसंद जीके मुपनार थे। लेकिन इसकी सिफारिश करने से पहले, कॉमरेड ज्योति बसु ने अपने बगल में खड़े एक 'युवा नेता' के कान में फुसफुसाते हुए कहा कि वो पी चिदंबरम से मूपनार के नाम का सुझाव देने पर उनके विचारों के बारे में पूछें।

चिदंबरम ने फौरन 'कभी नहीं' के इशारे से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बाद ज्योति बसु ने देवेगौड़ा के नाम की सिफारिश की। इस पर हैरान होते हुए देवगौड़ा ने कहा- 'मुझे नहीं पता कि मेरा नाम यहां क्यों लिखा गया। हालांकि, फैसला मेरे नेता द्वारा किया जाना चाहिए।'

वो नेता थे लालू प्रसाद यादव, जो गोदी में एक पैर उठा कर अपने अनोखे अंदाज में बैठे थे। उनके चेहरे से जाहिर था कि देवगौड़ा के नाम पर उनका पूरा समर्थन नहीं था। हालांकि, अनिच्छा से लड़ते हुए वो सीधे बैठ गए और कहा- 'ठीक है, ऐसा ही हो। और इस तरह भारत के 11वें प्रधानमंत्री के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। 

कैप्शन : कुछ तस्वीरें न केवल वर्तमान को भविष्य के लिए संजोती हैं बल्कि अतीत की खिड़कियां भी खोलती हैं।